Monday, 25 April 2016

😊😊हीरा - मोती : भाग तीन 😊😊💐💐

    

        😊😊 हीरा - मोती की कहानी : तीसरा भाग - 💐💐

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   विगत दो कड़ियों में मैंने बताने का प्रयास किया कि हीरा मोती की  जोड़ी ने रिश्तों  का एक ऐतिहासिक , प्रामाणिक आधार खोज लिया था और मेरे बनस्थली के सेवाकाल का  आखिरी दशक आते आते मेरे आत्मीय स्वजन के रूप में इन्हें मान्यता मिल चुकी थी . होली पर मेरी दुर्गत कर जाते वो कोई बात नहीं सेवा में समर्पित ऐसे रहते कि मेरे यार दोस्त भी मेरा नाम लेकर इन्हें जोत लेते तो ये  काम को तत्पर रहते .

बताने की ख़ास बात : 😊😊

*******************    जिस बात से आगे के लिए सीख मिली वो बात कल बताने से रह गई थी वही आज बताने का प्रयास होगा .

कल मैंने बताने की शुरुआत तो की थी कि 13 दिसंबर 1995 का दिन नजदीक आ रहा था और मैंने शर्मा जी की मार्फ़त दोनों सालों  पर दबाव बनाया था कि जीजा श्री को वो सिल्वर जुबली के मौके पर सम्मानित करते हुए सूट का कपड़ा तो देवें ही देवें  .

“ अकेले नहीं दे सकते तो दोनों मिलकर देवो .”

शर्मा जी ने थोड़ा बचत का रास्ता भी निकाल दिया था .

पर अब सोचता हूं ये लोभ मेरे मन में आया ही क्यूँ  ? ऐसा मंगत्या तो मैं था नहीं , पहनने ओढ़ने के कपड़ों का कोई घाटा भी नहीं था

बनस्थली से बचे खुचे सामानों के जो अवशेष यहां  गुलमोहर तक आए हैं  उनमें से वारड्रोब की एक झलक आप को दिखाऊं तो आप भी कह बैठेंगे कि क्यों नीयत बिगाड़ी पर जो कुछ हुआ वो होनहार की बात .

आखिर बात कैसे बिगड़ी ?

***********************        13 दिसंबर से कुछ दिनों पहले ही मुझे बुखार चढ़ने लगा और बुखार तो उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया . ये तो भली जाणो कि इला यादव के पति डॉक्टर अशोक यादव उन दिनों  परिसर के ही गार्गी निवास में रह रहे थे और चिकित्सकीय देखभाल के लिए उपलब्ध थे उन्होंने स्थिति को सम्हाला .अंदेशा था कि कहीं ये  सेरेब्रल मलेरिया बुखार न हो और इसके लिए डाक्टर साब ने उस समय खून की जांच के लिए निवाई के अस्पताल में बुलाया जब बुखार चरम पर हो .

नतीजतन एक सौ पांच डिग्री बुखार की हालत में मुझे व्यास जी निवाई लेकर गए ताकि खून की जांच हो सके और ये नौबत आई  थी ठीक सिल्वर जुबली के दिन  याने 13 दिसंबर 1995 को . अच्छी मनी जुबली . मैं किसी समारोह में सम्मिलित नहीं हो पाया और जान के लाले पड़े सो अलग .

इस वाकए ने मुझे ये सीख दी कि उपहार सूंत लेने के मेरे कपटी विचार ने ही ये नौबत ला दी . अच्छी  मनी जुबली . मैं तो यहां तक कहने लग गया था कि सारे खोटे काम इसी तारीख को होते हैं . उस दिन मैंने ये भी सौगन खाई कि आगे किसी जुबली पर सालों से किसी उपहार की मांग करके मंगत्या नहीं बनूंगा .

ये भी स्पष्टीकरण आवश्यक है कि हीरा - मोती भी किसी दबाव के आगे झुके नहीं , अडिग रहे दोनों , मुझे दोनों से ऐसी ही उम्मीद थी , जुबली के मौके पर  इन्होंने कुछ नहीं  परखाया . और तो और , शायद उन्हें स्थिति की गंभीरता का पता भी नहीं चला , मेरी तबियत पूछने भी नहीं आए .

पर जो भी हुआ ये रहेंगे तो मेरे हीरा - मोती ही . इनकी बाबत फुटकर संस्मरण और आगे जोड़ूंगा .

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सुप्रभात .

सुमन्त पंड्या .

 @ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

 मंगलवार 26 अप्रेल 2016 .

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