***********************************************************
गोटे की खरीददारी -
***************
अस्सी के दशक की बात है मैं फैलोशिप के दौरान जयपुर में था । मेरे ननिहाल से भाई साब और भाभीजी बेटी की शादी के लिए सामान खरीदने जयपुर आये । बाजार जाने लगे तो भाई साब बोले ,' सुमन्त तू भी चल , तेरी बहू को भी ले ले ।'
भाई साब भाभी जी और हम दोनों बाजार गए । जौहरी बाजार त्रिपोलिया होकर लौट आये तो छोटी चौपड़ के पास भाई साब बोले - अरे गुड्डी की सास के बेस के लिए गोटा लाना तो भूल ही गए ! मैं बोला , अब मिसर राजाजी के रास्ते में चलते हैं वहां गोटे के कारखाने हैं वहां से गोटा ले लेंगे ।'
एक कारखाने में पहुंचे ' गोटा लेना है ।'
कई सौ रुपये के गोटे देखकर भाई साब बोले ,' चलो यहाँ से ।" और दूसरे कारखाने में पहुंचे । वहां भी बात नहीं बनी । दो चार जगह देखकर हम लोग वापस लौट रहे थे कि एक दूकानदार ने हमें बुलाया । बह कुछ ग्रामीणों से घिरा हुवा था । उन्हें और सामान को एक और हटाकर हमें सफ़ेद चादर पर बैठाया ।
गोटा लेना है ।
लीजिये कहकर उसने कई तरह के गोटे दिखाए । पर कोई गोटा पसंद नहीं आया ।
मेरी जीवन संगिनी ने इस बीच कई एक बार्डर भी देख डाले पर तब लेना नहीं था । बहुत समय हो गया पर गोटे का चुनाव नहीं हो सका । तभी भाई साब का ध्यान उस सामान पर गया जो हमारे आने पर हटाया गया था । उसमे एक रील या पयिपिन जैसी कोई चीज थी जो भाई साब भाभीजी दोनों को खूब पसंद आई ।
यही ठीक है । बमुश्किल कोई पांच रुपये की चीज थी ।
और कुछ ?
यही पैक कर दीजिये ।
अब जब हम ये खरीदारी कर उठने लगे तो गोटे वाला बोला :
" साब गोटा लेना एक चार चार जने आये ,इतनी क्यों तकलीफ की ,मुझे कहलवा दिया होता तो मैं आपके घर ही भिजवा देता ।"
हम तो उसकी बात ठीक से समझ रहे थे कि वो ऐसा क्यों कह रहा है पर भोले
भाई साब को तो लगा कि ये सुमन्त के साथ की वजह से है ,बोलो घर ही भिजवाने की कह रहा था।
हम समझ रहे थे बात हो गयी और आई गयी हो गयी पर नहीं एक दिन वही गोटे वाला हारि भाई के अस्पताल में मिल गया और मिलते ही तपाक से बोला ,"बाबूजी नमस्ते ! "
हारि भाई ने पूछा " आप लोग एक दूसरे को जानते हो क्या ?" गोटे वाला उनका मरीज था ।
बाबूजी हमारे यहाँ गोटा खरीदने आते हैं , उसने बड़े गर्व से कहा । मानो हम गोटे के नियमित खरीदार हों ।
आगे चलकर हम लोग सचमुच उसके ग्राहक बने और शहर में रहने के दौरान उससे संपर्क बना रहा । पहली मुलाकात का यह कथन हमेशा याद रहा
" बाबूजी गोटा लेना एक और चार चार जने आये , इतनी क्यों तकलीफ़ की ? मुझे कहलवा दिया होता मैं आपके घर ही भिजवा देता ।"
और फिर मेरा यह कहकर परिचय देना कि "बाबूजी हमारे यहां गोटा खरीदने आते हैं ।"
👍👍👌👌
************************************************************
No comments:
Post a Comment