Tuesday, 19 April 2016

😊😊😊विशिष्ट व्यक्ति का आगमन : बनस्थली डायरी .💐💐💐💐

    😊😊  44 रवीन्द्र निवास : मेरा घर : विशिष्ट व्यक्ति का आगमन भाग एक 💐💐💐💐💐
     

       44 रवीन्द्र निवास : बनस्थली में मेरा घर : विशिष्ट अतिथि का आगमन .

-------------------------------------------   -----------------------------    बनस्थली में एक साल काम करने के बाद मुझे ये घर मिला था . जब तक परिसर में रहा वहीँ रहा . कितनी छोटी छोटी बातें हैं उस जमाने की जो यदा कदा आज भी याद आ जाती हैं . कितने अतिथि साधिकार वहां आए और रहे वो स्मृतियों की चित्रशाला में आज भी बसे हैं . उसी चित्रशाला का एक दृश्य आज प्रस्तुत करता हूं .

पूरा मकान :

-----------    ये उस जमाने की बात है जब पक्के मकान थोड़े थे परिसर में . मांग ज्यादा थी मकानों की , मकान उस अनुपात में कम थे . मुझे तो पूरा मकान अलाट हो गया था सिर्फ इस लिए कि  बीते सत्र में मेरा विवाह हो गया था और मुझे गृहस्थ मान लिया गया था , उस बाबत भी फिर कभी बताऊंगा , उसी दौर में अकेले अकेले लोगों को दो दो तीन तीन को एक साझा मकान मिलता था .

गौतम की बात :

---------------  जिस सत्र में मैं अलग मकान में रहने लगा उसी साल कृपा कृष्ण गौतम अंग्रेजी विभाग में नियुक्त होकर आए , उनसे जुडी हुई कुछ एक यादें हैं जो मैं साझा किया करता हूं . गौतम राजस्थान कालेज और  विश्वविद्यालय में मेरे सीनियर रहे थे और इधर  अच्छी भली इनकम टैक्स इन्स्पेक्टर की नौकरी छोड़कर पहले नवलगढ़ में कालेज में पढ़ाने लगे थे , वहां से बनस्थली आ गए थे . गौतम अरविन्द निवास की तीसरी लाइन के एक मकान में आधे हिस्से में रह रहे थे और फर्नीचर के नाम पर उनके पास मेहमान घर से किराए पर ली गई एक खाट मात्र थी , परिवार साथ लाए नहीं थे , मेहमान घर में खाना खाते थे और कालेज में पढ़ा आते थे .

     जेटली परिवार में बसन्त के मित्र होने के नाते उनका भी आना जाना था.

इसी नाते , किस निमित्त जो कि मुझे पता नहीं , माता पिता को बनस्थली आने का न्योता दे आए . हुआ ये कि गौतम के बुलावे पर राजस्थान विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के प्रोफ़ेसर रमा शंकर जेटली और श्रीमती जेटली रात की बस से  बनस्थली पहुंचे और गौतम उन्हें बस से उतार कर मेहमान घर में ठहराने पहुंचे तब जो कुछ हुआ और तब के कैसे हाल थे वही बताता हूं . शांताकुंज के पास पुराने मेहमान घर में कच्ची दीवार और कच्ची जमीन वाले छोटे छोटे कमरे थे जिनमें एक बाण की खाट बिछी होती . उस समय तो बिजली के पास कीट पतंगे भी उस छोटे से छप्पर वाले कमरे में बहुत थे  . श्रीमती जेटली (े इन्कार ही  हो  गईं और गौतम से अपने घर ले चलने को कहा . गौतम के पास अपने घर में ठहराने के लिए न तो जगह थी , न  ओढ़ने बिछाने को अतिरिक्त बिस्तर थे और न रसोई का कोई इंतजाम था . पर गौतम के पास एक वैकल्पिक व्यवस्था थी जो उन्होंने बताई . गौतम बोले :

"मेरा एक दोस्त है  सुमन्त , आपको उसके घर ले  चलता हूं उसकी वाइफ तो आजकल बाहर गई हुई है , वहां पूरा मकान  है आप लोग वहां ठहर जाइएगा ."

ऐसा सुनकर मम्मी तुरन्त बोली :

" पहले क्यों नहीं बताया सुमन्त यहां है ? हम तो उसके यहां ही चलेंगे .

तू क्या ठहराएगा ? हमें तो बता दे उसका घर कहां है , वहीँ रुकेंगे आज रात ."

और इस प्रकार गौतम के बताए से तीनों लोग आए 44 रवीन्द्र निवास . अचानक उनका आना मेरे लिए आश्चर्य और ख़ुशी का कारण बना उस दिन .  माता पिता के अतिरिक्त गौतम भी उस रात वहीँ रुके .

अभी तो उस रात की और अगले दिन की भी बात बतानी है पर समयाभाव के कारण प्रातःकालीन सभा स्थगित .

(आगे जारी.)

सुप्रभात .

सह अभिवादन .

सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

14 अगस्त 2015 .
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