Tuesday, 5 April 2016

डी . प्रेमपति .

   
    😊😊 बनस्थली के वे दिन : प्रेमपति के बारे में .

जिन दिनों मैं बनस्थली में काम करने लगा अंग्रेजी विभाग में डी. प्रेमपति भी हुआ करते थे . वे  बिलासपुर , मध्यप्रदेश से आये थे और कुछ समय वहां ठहर कर दिल्ली चले गए थे . उन्हें पत्रकारिता और अध्यापन का बहुत अच्छा अनुभव था . उन दिनों की उनकी कही एक बात अब भी यदाकदा याद आ जाती है वही आज बताता हूं :

एक दिन  अपनी मौज में प्रेमपति कहने लगे :

" सुमंत , मैं जब अपनी एकेडमी  बनाऊंगा तो उसमे दो सब्जेक्ट्स पर बैन लगाऊंगा - संगीत और संस्कृत ."

अब भला ये तो कोई बात नहीं हुई . इतने महत्वपूर्ण विषयों के बगैर एकेडमी क्या बनेगी , मेरी तो समझ से परे थी यह स्थापना .

पर इन विषयों के सहपाठियों से उनकी जो शिकायत थी वही इस धारणा के मूल में थी .

प्रेमपति कहने लगे :

" मैं जब बनारस में पढता था और अंग्रेजी में एम ए कर रहा था , रात को हॉस्टल  में  अपने कमरे में पढ़ने  बैठता तो ये संगीत वाले बराबर के कमरों में अभ्यास शुरु कर देते , पक्का गाना गाने लगते . ये मेरे पढने में विघ्न डालते  हमेशा .

और ये संस्कृत वाले चार मंजिल के होस्टल में सुबह चार  बजे  से ,जब मेरे सोने  का बखत होता , स्नान ध्यान करने खड़ाऊ पहन कर मंत्रोच्चार करते हुए उतरते और मुझे चैन से सोने नहीं देते . अब बोलो ..."

आज फिर डी. प्रेमपति की याद आ गई इस लिए थोड़ी झिझक के साथ ये बात मैंने बताई है .

ये बात भी उन दिनों की ही कही हुई है जिन दिनों बनस्थली में भी कालेज की इमारत में पीछे की ओर बनी  झोंपड़ियों में हमारी एम ए की क्लासें चलती थीं और पड़ोस की झोंपड़ी में से आता संगीत का स्वर भी सुनाई देता रहता था .

डिस्क्लेमर :  ये विचार एक सन्दर्भ में व्यक्त विचार मात्र हैं , इनसे मेरी कोई सहमति नहीं है .

बनस्थली की पुरानी यादों के साथ : सुप्रभात . Good morning .

सह अभिवादन :

सुमन्त

आशियाना आँगन, भिवाड़ी .

5 अप्रेल 2015 .

बनस्थली के वे दिन : प्रेमपति के बारे में .

जिन दिनों मैं बनस्थली में काम करने लगा अंग्रेजी विभाग में डी. प्रेमपति भी हुआ करते थे . वे  बिलासपुर , मध्यप्रदेश से आये थे और कुछ समय वहां ठहर कर दिल्ली चले गए थे . उन्हें पत्रकारिता और अध्यापन का बहुत अच्छा अनुभव था . उन दिनों की उनकी कही एक बात अब भी यदाकदा याद आ जाती है वही आज बताता हूं :

एक दिन  अपनी मौज में प्रेमपति कहने लगे :

" सुमंत , मैं जब अपनी एकेडमी  बनाऊंगा तो उसमे दो सब्जेक्ट्स पर बैन लगाऊंगा - संगीत और संस्कृत ."

अब भला ये तो कोई बात नहीं हुई . इतने महत्वपूर्ण विषयों के बगैर एकेडमी क्या बनेगी , मेरी तो समझ से परे थी यह स्थापना .

पर इन विषयों के सहपाठियों से उनकी जो शिकायत थी वही इस धारणा के मूल में थी .

प्रेमपति कहने लगे :

" मैं जब बनारस में पढता था और अंग्रेजी में एम ए कर रहा था , रात को हॉस्टल  में  अपने कमरे में पढ़ने  बैठता तो ये संगीत वाले बराबर के कमरों में अभ्यास शुरु कर देते , पक्का गाना गाने लगते . ये मेरे पढने में विघ्न डालते  हमेशा .

और ये संस्कृत वाले चार मंजिल के होस्टल में सुबह चार  बजे  से ,जब मेरे सोने  का बखत होता , स्नान ध्यान करने खड़ाऊ पहन कर मंत्रोच्चार करते हुए उतरते और मुझे चैन से सोने नहीं देते . अब बोलो ..."

आज फिर डी. प्रेमपति की याद आ गई इस लिए थोड़ी झिझक के साथ ये बात मैंने बताई है .

ये बात भी उन दिनों की ही कही हुई है जिन दिनों बनस्थली में भी कालेज की इमारत में पीछे की ओर बनी  झोंपड़ियों में हमारी एम ए की क्लासें चलती थीं और पड़ोस की झोंपड़ी में से आता संगीत का स्वर भी सुनाई देता रहता था .

डिस्क्लेमर :  ये विचार एक सन्दर्भ में व्यक्त विचार मात्र हैं , इनसे मेरी कोई सहमति नहीं है .

बनस्थली की पुरानी यादों के साथ : सुप्रभात . Good morning .

सह अभिवादन :

सुमन्त

आशियाना आँगन, भिवाड़ी .

5 अप्रेल 2015 .

☺☺ ☺☺☺☺👍👍

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