😊😊 बनस्थली के वे दिन : प्रेमपति के बारे में .
जिन दिनों मैं बनस्थली में काम करने लगा अंग्रेजी विभाग में डी. प्रेमपति भी हुआ करते थे . वे बिलासपुर , मध्यप्रदेश से आये थे और कुछ समय वहां ठहर कर दिल्ली चले गए थे . उन्हें पत्रकारिता और अध्यापन का बहुत अच्छा अनुभव था . उन दिनों की उनकी कही एक बात अब भी यदाकदा याद आ जाती है वही आज बताता हूं :
एक दिन अपनी मौज में प्रेमपति कहने लगे :
" सुमंत , मैं जब अपनी एकेडमी बनाऊंगा तो उसमे दो सब्जेक्ट्स पर बैन लगाऊंगा - संगीत और संस्कृत ."
अब भला ये तो कोई बात नहीं हुई . इतने महत्वपूर्ण विषयों के बगैर एकेडमी क्या बनेगी , मेरी तो समझ से परे थी यह स्थापना .
पर इन विषयों के सहपाठियों से उनकी जो शिकायत थी वही इस धारणा के मूल में थी .
प्रेमपति कहने लगे :
" मैं जब बनारस में पढता था और अंग्रेजी में एम ए कर रहा था , रात को हॉस्टल में अपने कमरे में पढ़ने बैठता तो ये संगीत वाले बराबर के कमरों में अभ्यास शुरु कर देते , पक्का गाना गाने लगते . ये मेरे पढने में विघ्न डालते हमेशा .
और ये संस्कृत वाले चार मंजिल के होस्टल में सुबह चार बजे से ,जब मेरे सोने का बखत होता , स्नान ध्यान करने खड़ाऊ पहन कर मंत्रोच्चार करते हुए उतरते और मुझे चैन से सोने नहीं देते . अब बोलो ..."
आज फिर डी. प्रेमपति की याद आ गई इस लिए थोड़ी झिझक के साथ ये बात मैंने बताई है .
ये बात भी उन दिनों की ही कही हुई है जिन दिनों बनस्थली में भी कालेज की इमारत में पीछे की ओर बनी झोंपड़ियों में हमारी एम ए की क्लासें चलती थीं और पड़ोस की झोंपड़ी में से आता संगीत का स्वर भी सुनाई देता रहता था .
डिस्क्लेमर : ये विचार एक सन्दर्भ में व्यक्त विचार मात्र हैं , इनसे मेरी कोई सहमति नहीं है .
बनस्थली की पुरानी यादों के साथ : सुप्रभात . Good morning .
सह अभिवादन :
सुमन्त
आशियाना आँगन, भिवाड़ी .
5 अप्रेल 2015 .
बनस्थली के वे दिन : प्रेमपति के बारे में .
जिन दिनों मैं बनस्थली में काम करने लगा अंग्रेजी विभाग में डी. प्रेमपति भी हुआ करते थे . वे बिलासपुर , मध्यप्रदेश से आये थे और कुछ समय वहां ठहर कर दिल्ली चले गए थे . उन्हें पत्रकारिता और अध्यापन का बहुत अच्छा अनुभव था . उन दिनों की उनकी कही एक बात अब भी यदाकदा याद आ जाती है वही आज बताता हूं :
एक दिन अपनी मौज में प्रेमपति कहने लगे :
" सुमंत , मैं जब अपनी एकेडमी बनाऊंगा तो उसमे दो सब्जेक्ट्स पर बैन लगाऊंगा - संगीत और संस्कृत ."
अब भला ये तो कोई बात नहीं हुई . इतने महत्वपूर्ण विषयों के बगैर एकेडमी क्या बनेगी , मेरी तो समझ से परे थी यह स्थापना .
पर इन विषयों के सहपाठियों से उनकी जो शिकायत थी वही इस धारणा के मूल में थी .
प्रेमपति कहने लगे :
" मैं जब बनारस में पढता था और अंग्रेजी में एम ए कर रहा था , रात को हॉस्टल में अपने कमरे में पढ़ने बैठता तो ये संगीत वाले बराबर के कमरों में अभ्यास शुरु कर देते , पक्का गाना गाने लगते . ये मेरे पढने में विघ्न डालते हमेशा .
और ये संस्कृत वाले चार मंजिल के होस्टल में सुबह चार बजे से ,जब मेरे सोने का बखत होता , स्नान ध्यान करने खड़ाऊ पहन कर मंत्रोच्चार करते हुए उतरते और मुझे चैन से सोने नहीं देते . अब बोलो ..."
आज फिर डी. प्रेमपति की याद आ गई इस लिए थोड़ी झिझक के साथ ये बात मैंने बताई है .
ये बात भी उन दिनों की ही कही हुई है जिन दिनों बनस्थली में भी कालेज की इमारत में पीछे की ओर बनी झोंपड़ियों में हमारी एम ए की क्लासें चलती थीं और पड़ोस की झोंपड़ी में से आता संगीत का स्वर भी सुनाई देता रहता था .
डिस्क्लेमर : ये विचार एक सन्दर्भ में व्यक्त विचार मात्र हैं , इनसे मेरी कोई सहमति नहीं है .
बनस्थली की पुरानी यादों के साथ : सुप्रभात . Good morning .
सह अभिवादन :
सुमन्त
आशियाना आँगन, भिवाड़ी .
5 अप्रेल 2015 .
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