“ …. बिजली कहां गिरेगी ? “😊😊😊😊😊
******************************************* #बनस्थलीडायरी #sumantpandya
इतिहास और भूगोल का विवरण :
----------------------------------- कोई छोटी घटना बताने के लिए भी मुझे पुरानी बातें बतानी पड़ती हैं अतः किस्से पे आने से पहले थोड़ी पृष्ठभूमि बताता चलूं तो आप उस दृष्य प्रपंच को बेहतर समझ पाएंगे जो मैं बताने जा रहा हूं .
जब मैंने बनस्थली में काम करना शुरु किया तो होम साइंस केवल एक विषय (subject ) हुआ करता था और सुधा नारायणन ये विषय पढ़ाया करती थी , पढ़ाने वालों का टोटा था . एक टीचर के लिए काम थोड़ा ज्यादा पड़ता था , पढ़ाई और सिलेबस का एक हिस्सा फिजियोलॉजी था तो मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम कर रहे हरि भाई ( Dr. H B Pandya )को ही ये पढ़ाने का काम बता दिया गया था ये एक समाधान हो गया था .😊 मेरे विषय की शब्दावली में इसे कहते हैं ,” सब्स्टिट्यूटेबिलिटी ऑफ रोल्स “मने एक समय ऐसा था , एक समय क्या वो समय ऐसा था कि मैं और हरि भाई एक ही कॉलेज में पढ़ाया करते थे , मैं रहता उनके पास था ये तो समय समय पर मैं बताता ही रहता हूं .
थोड़ी स्थिति तब बदली जब एक युवती और होम साइंस डिपार्टमेंट में आ गई जिनका नाम था रीता यादव , इनके आने से सुधा जी का भार कुछ कम हुआ . इधर हरि भाई भी तब जयपुर आ गए थे आगे किसी डाक्टर ने होम साइंस डिपार्टमेंट में फिजियोलॉजी पढ़ाई हो मुझे याद नहीं पड़ता .
ये सब तो मैंने बताए होम साइंस के साथ अपने ऐतिहासिक सम्बन्ध . अब आता हूं रीता यादव के व्यक्तित्व बखान पर .
युग बदला : सुधा नारायणन संन्यास लेकर चली गईं और रीता यादव अकेली विभाग का नाम लेवा रह गईं . होम साइंस का वर्तमान विस्तार तो बाद की बातें हैं . एक समय रीता यादव अपने पति के साथ जर्मनी भी हो आईं थीं और उनके सुर्खाब के पर लग गए थे . जिस प्रसंग की ओर मैं धीरे धीरे बढ़ रहा हूं वो उसी दौर का है . मेरा बोला चाला सुधा जी से भी था और रीता यादव से भी , ये उसी दौर की तो बात है जब सब का सब से बोला चाला होता था परिसर में .
संवाद स्थल :😊
********** ये उन दिनों की बात है जब बनस्थली का पोस्ट ऑफिस शांता कुञ्ज में हुआ करता था और हम लोग तो रहे पक्के क्वार्टरों में . गर्मियों की दोपहर का समय जब सड़क सूनी थी मैं घर से चलकर पोस्ट आफिस जा रहा था पैदल पैदल कि सामने से अपने दुपहिया पर आ रही थीं रीता यादव , वो मुझे दूर से आती दिखीं और लगभग शांता भवन की सीध में आड़े आकर मैंने उन्हें ऎसे रोका जैसे ट्रैफिक पुलिस वाले रोकते हैं और जाने मुझे क्या सूझी , मैं छूटते ही बोला :
“....... अजी ये बिजली कहां गिरेगी ..? “ 😊
शायद उन्हें लगा हो कि मैं उनकी साज सज्जा को इंगित कर रहा हूं , हालांकि मुझसे ऐसी उम्मीद तो नहीं ही रही होगी , पर वो थोड़ा अचकचाईं और ,” जी सर , हाँ सर “ जैसा कुछ बोलीं भी .
तभी मैंने उनके दुपहिया की हैड लाइट की ओर इंगित किया जो भर दुपहरिया में जल रही थी और उस वीराने में ठहाका लगा हम दोनों का .
न जाने अब कहां होंगी रीता यादव , देश में या विदेश में , जाने उन्हें ये वाकया याद होगा के न होगा मुझे तो ये याद है तो इसे मैंने दर्ज कर दिया #बनस्थलीडायरी के अंतर्गत .
नमस्कार .
सुमन्त पंड्या
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
गुरूवार 7 अप्रेल 2016 .
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