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😊😊 “ वेंड्यो ही रह्यो परताप सिंह ! “
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#उदयपुरडायरी। #sumantpandya
मेवाड़ी का ये शब्द माने ,’ वेंड्या ‘ मुझे अतिरिक्त लुभावना लगता रहा है , ठीक वैसे ही जैसे ढूंढाड़ी का शब्द ‘ बावळी ‘😊.
एक बार बावळी को ‘ बावळी ‘ कहकर मैं बुरा फंसा वो बात तो मैंने कभी बताई ही थी , आपको याद न आए तो फिर किसी दिन दोहराऊंगा .
अब आते हैं तब के उदयपुर के प्रताप सिंह के मामले पर जो हमारे माता पिता का गृह सेवक हुआ करता था जब हम तीन भाई माता पिता के साथ भूपालपुरा में रहा करते थे , वर्ष 1962 - 63 की बात .
भोला सा प्रताप सिंह बोलचाल की भाषा में परताप सिंग बन जाता था और एक उसकी जानकार डोकरी तो जाने क्यों उसे मनोहर सिंग बोलती थी उसका स्नेहसिक्त निमंत्रण तो मुझे आज दिन तक याद है , “ 😊 आजे रै मनोर सिंग , आजे !” माने मनोहर सिंह आना . इस डोकरी और परताप सिंह ने कभी डाक्टर दौलत सिंह कोठारी के घर साथ साथ काम किया था , दोनों में आत्मीयता थी .
अब ख़ास वाकये पर आते हैं 😊 जिसका संकेत शीर्षक में आया है :*******************************************************
नागोरी साब काकाजी के दफ्तर याने उदयपुर ट्रेजरी में बाबू थे और दफ्तर का कोई काम लेकर फ़ाइल लेकर हमारे घर आ रहे थे पर यहां शायद पहली बार आए थे और उन्हें ठीक से मकान की लोकेशन का पता नहीं था . बेचारे नागोरी साब ने मकान और गली के आस पास पांच सात चक्कर लगाए पर मकान मिला नहीं खैर थोड़ी देर में घूम फिर कर यहां आ पहुंचे नागोरी साब पर इसमें मजेदार बात ये रही कि नागोरी साब को हर बार घर के आस पास से निकालकर जाते परताप सिंह ने देखा पर बाहर निकल कर टोका नहीं के आखिर वो बार बार इस घर के आस पास चक्कर भला क्यों लगा रहे हैं ? और जब नागोरी साब फाइनली घर आ गए तो ये और बोला :
“ मूं आप नै देख्या हा .😊😊”
माने मैंने आप को इधर चक्कर लगाते देखा था .
और तब ललाट को हाथ से स्पर्श कर नागोरी साब बोले :
“ वेंड्यो ही रह्यो परताप सिंह … मूं साब रै घर न आतो तो कुणी रै जातो ?” 😊😊😊😊
माने वो यहां नहीं तो और कहां जाते और ये पगला कुछ समझा ही नहीं . नागोरी साब घर के आस पास चक्कर लगाते रहे और इसने टोकना मुनासिब नहीं समझा .
उस दौर की और बहुत छोटी छोटी बातें हैं वो फिर कभी .
वो भोला प्रताप सिंह और वो मेवाडी पगडी वाले नागोरी साहब आज भी हमारी स्मृतियों में जिन्दा हैं, काश वह समय लौट आता।
ReplyDeleteआभार भाई साब उन दिनों को याद करने के लिए ।
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