Saturday, 16 April 2016

😊😊😊 संगीत से मेरा वास्ता : भाग तीन . 💐💐💐💐💐

संगीत : भाग तीन 💐💐💐

बनस्थली डायरी : संगीत से मेरा वास्ता -  भाग तीन . 😊😊😊
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#बनस्थलीडायरी       #संगीतसेमेरावास्ता - भाग तीन .

अगले दिन चर्चा चली और उसमे कहा जा रहा था कि संगीत की महफ़िल बड़ी  आनंददायक रही . ये भी उल्लेख आया कि काफी के बाद कोई  गायन जमता नहीं है , बहरहाल पटवर्धन साब को बीच में विश्राम देने को अमीर खां साब ने भी बीच में एक आध बंदिश सुनाई थी और बाकी वे लगातार तबले पर संगत करते रहे थे .

बातों के बीच मैं बापू से कह बैठा :

" पर मैंने तो कॉफी आपके कहने पर ही सर्व की थी , आप कहते तो और ठहर जाता ."

मेरी बात सुनकर वो हंसने लगे  और
तब मुझे अपनी नासमझी का पता लगा. मैं अपनी कॉफी की बात समझ रहा था और वो राग 'काफी' की बात कर रहे थे , जिसमे गाई गई बंदिश के बोल थे :

"..करत ठिठोरी संग की सहेलियां...."

संगीत के लोगों  से मेरा  जो वास्ता पटवर्धन साब के जमाने से शुरु हुआ वो  आर डी वर्मा  और  आर सी एस नाडकर्णी के जमाने तक भी रहा . खैर यहां मैं तब की बात कर रहा हूं जब इन लोगों की अपेक्षाकृत युवा प्राध्यापकों  में गिनती होती थी  और संगीत विभाग में राजा भाऊ देव और मोहन राम नागर सरीखे संगीतविद् भी हुआ करते थे ..

पटवर्धन साब के बनस्थली आने की भी एक कहानी  है . पंडित हीरा लाल शास्त्री ने  पंडित विनायक राव पटवर्धन से मिलकर उन्हें बनस्थली चलने का आग्रह किया . ये पंडित जी जाने माने संगीतविद् थे और पूना में रहते थे . वो बोले  :
" अब इस उमर में मैं घर  छोड़कर नहीं जा सकता , आप ऐसा करो कि मेरे बेटे नारायण को अपने यहां बुला लो , वो आकाशवाणी में काम करता है और  इन दिनों दिल्ली में है . "

एन वी पटवर्धन पहले दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक थे , बाद में आकाशवाणी में गए और वहां से  शास्त्री जी के आह्वान पर बनस्थली आगए . उस जमाने में राजस्थान विश्वविद्यालय में कहीं और संगीत में पोस्ट ग्रेजुएट नहीं था बनस्थली के अतिरिक्त .
एक बार विनायक राव पटवर्धन बनस्थली आए , उनका गायन रखा गया और पटवर्धन पिता पुत्र की  अनोखी जुगलबंदी भी लोगों को सुनने को मिली .
वे दिन और वे लोग ... याद करते ही बनता है .

बनस्थली के सुनहरे दिनों को याद करते हुए .
प्रातःकालीन सभा स्थगित.
इति.
सहयोगManju Pandyadya

सुप्रभात .
Good morning.

सुमन्त .
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
17  अप्रेल 2015 .
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अपडेट :  😊😊
गए बरस भिवाड़ी में थे तब आज के दिन लिखी थी ये पोस्ट , चली आ रही चर्चा की तीसरी कड़ी , आज फेसबुक अपने तरीके से याद दिला रहा है . अब मौका देखकर दो काम किए देता हूं :
1. 😊
इसमें हीरा मोती लगाकर ब्लॉग के अंतर्गत प्रकाशित करना .
2. 😊😊
इस पोस्ट पर फिर एक बार चर्चा चलाना और जीवन संगिनी को प्रेरित करना कि वे फेसबुक पर अपना मौन भंग करें . आखिर इत्ती चुप्पी मैं कब तक सहन करूंगा ?
P- S-
****  हीरा मोती कौन और क्या ? मेरे हीरा मोती बाबत बात शुरु की तो थी 💐💐
ब्लॉग पर भी और फेसबुक प्रोफाइल पर भी वो बात भी आगे  बढाऊंगा .
सुप्रभात .
सुमन्त पंड्या
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
रविवार 17 अप्रेल 2016 .
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1 comment:

  1. #स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी

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