ब्रह्म मंदिर पर पिकनिक : एक बिसरी हुई याद 💐
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जो लोग बनस्थली को जानते हैं उन्हें बताने की जरूरत नहीं कि बनस्थली में चिरकाल से ब्रह्म मंदिर एक ऐतिहासिक स्थान रहा है , बाद में तो यहां शास्त्री जी और उनकी जीवन संगिनी का स्मारक भी बना , उनके जीवन काल में ही मंदिर तो बनकर तैयार हो गया था जो शास्त्रोक्त स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है पर मंदिर के पहले से ही वहां एक कुटिया है जिसका ही मूलतः नाम जीवन कुटीर रखा गया था . इस कुटिया का विशेष महत्त्व इसलिए है कि पंडित शास्त्री ने यहीं अपना पहला आवास बनाया था , बाकी सब संरचनाएँ बाद की हैं , उस समय के कुछ ऐतिहासिक पेड़ और एक कुआ आज भी वहां हैं .
पिकनिक :
******* हर जमाने में ये स्थान पिकनिक के लिए चयनित स्थान रहा , अतिथि के लिए दर्शनीय और श्रद्धा सुमन अर्पित करने का स्थान रहा . मंदिर परिसर बनने से विभिन्न व्रत त्योंहारों पर यहां मेळे खेळे का सा भी वातावरण होने लगा .
अब एक छोटा सा किस्सा
******************** एक पिकनिक उस जमाने की पचास - पचपन पार महिलाओं की भी हुई एक बार . उसमें होना क्या था सब प्रौढ़ाएं घर से जाजम और खाना लेकर गईं , कुछ समय मनोरंजन कर बिताया , साथ बैठकर खाना खाया और घरों को लौट आयीं .
इस पिकनिक की ख़ास बात ये थी कि छोरी छापरी महिलाएं इसमें शामिल नहीं की गईं , ये थी ," सीनियर लेडीज पिकनिक . "
अब चूंकि कथानक में इनका विशेष उल्लेख है अतः मैं तीन प्रौढ़ाओं का संक्षिप्त परिचय दूंगा :
1
मिसेज नाग , ये नाग साब की पत्नी थीं , नाग साब रिटायर होकर बनस्थली में काम कर रहे थे पहले विधान सभा में डिप्टी सेक्रेटरी थे .
2
मिसेज राव , ये डाक्टर राव की पत्नी थीं , डाक्टर साब सीनियर मेडिकल आफिसर थे कमला नेहरू अस्पताल में . बाय द वे राव साब पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के साढू भाई थे .
3
मिसेज पटवर्धन , ये प्रोफेसर पटवर्धन की पत्नी थीं , प्रोफेसर संगीत के विभागाध्यक्ष थे .
अब किस्सा ख़ास :
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अपनी पारी आने पर मिसेज नाग ने तल्लीनता से एक गाना सुनाया , गाने के बोल थे :
" धीरे धीरे बोल कोई सुन ना ले ...... सुन ना ले.."
अब यहां पूरक जानकारी मुझे जोड़नी पड़ेगी कि नाग साब बहुत ऊंचा सुनते थे और उन्हें हीयरिग एड लगानी पड़ती थी .
मिसेज राव को ये गाना सुनकर सहेली को छेड़ने का मौका मिल गया और उन्होंने मिसेज नाग को टोका :
" पर धीरे धीरे बोलोगी कैसे ? नाग साब तो इतना ऊंचा सुनते हैं ." 😊
नोट :
अब मैं कौनसा वहां मौजूद था , मुझे तो ये ऐतिहासिक किस्सा मिसेज पटवर्धन ने सुनाया था . कहने की आवश्यकता नहीं इन सभी परिवारों से हमारा अपनत्व था .
वे दिन और वे लोग और उस जमाने की बनस्थली बहुत याद आते हैं
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आज ब्लॉग पर प्रकाशित
जयपुर
सोमवार २३ अक्टूबर २०१७ .
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बढ़िया बात। पुरानी याद। आप स्मृतियों को सहेजना सीखा रहे हैं।
ReplyDeleteआभार पल्लव ��
ReplyDeleteअभी सीख रहा हूं .
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