Sunday, 29 October 2017

चाकलेट की घर वापसी  - जयपुर डायरी 

चॉकलेट की घर वापसी : 

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#चॉकलेट_की_घर_वापसी ______________________


ये जन्मदिन के चक्कर में बहुत मटरगश्ती हो गई अब आज कोई न कोई पोस्ट होनी चाहिए ऐसा सोचकर आज भोर में लिखने बैठा हूं . इस वृत्तांत का प्लॉट जयपुर का है जो एक डॉमेस्टिक पैट से वास्ता रखता है . चित्र भी जोड़ने का प्रयास करूंगा जिससे बात समझाने में आसानी हो .

इससे जुडी हुई अन्य बातें यथा स्थान आ ही जाएंगी . सामाजिक सरोकारों से जुडी इस कथा में भी शायद कोई सन्देश मिलेगा ऐसा अनुमान है .

घरेलू पैट मुझे हमेश से ही आकर्षित करते हैं . जयपुर में चाहे महेंद्र की डॉली हो , सोगानी जी का स्कूपी हो , कौमुदी जी की वीनस हो या हो विशाल का किप्पर मैंने हमेशा से ही इनके साथ लाड लड़ाया . 

पीछे मुड़कर देखता हूं तो बनस्थली की याद आ जाती है और उल्लेख करना पड़ता है वर्मा जी के शेरू , नाडकर्णी जी के बोनी और धर्म किशोर जी के गोल्डी का जो अपने समय में परिवार के सदस्य की भांति रहे और मेरे प्यार के हिस्सेदार रहे अब इनमें से कोई भी नहीं बचा इनकी स्मृति ही शेष है .


जयपुर की बात :

~~~~~~~~~ हमारे घर में गए दिनों तामीर के काम की चौकीदारी का काम सीताराम देख रहा था . एक रात की बात कि लैब्राडोर प्रजाति का एक पैट सीताराम की पनाह में आ गया और लगा कि वह अब कहीं जाने को तैयार नहीं है . कठिनाई यह आई कि वो केवल सीताराम की बात माने और बाकी सब पर भोंके . घर आया मेहमान भूखा न रहे ऐसा सोचकर सीताराम ने अपनी बनाई रोटी भी इस अज्ञात लैब्राडोर को ऑफर की दूध भी पिलाने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ वो एक विशिष्ट प्रकार के बिस्किट खाने का आदी था . भला हो छोटे सोगानी का जो स्कूपी के बिस्किटों में से बिस्किट लेकर आया और तब जाकर इस आगंतुक का डिनर हो पाया . अब फिकर ये कि मेहमान की रात भर हिफाजत कैसे हो और गली के आवाराओं से इसे कैसे बचाएं . हारकर सीताराम ने इसे अपनी खाट के पाए से एक रस्सी से बांध दिया . सीताराम के हाथों तो इसे बंधना भी मंजूर था वो तो आया ही सीताराम की पनाह में था सो उसे सबकुछ मंजूर था .


सुबह हुई :

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सीताराम की पनाह में रातभर तो ये आगंतुक आराम से सोया पर सुबह हलचल तब हुई जब दक्षिण दिशा से एक नवयुवक फटफटिया दनदनाता आया और आवाज देने लगा , “ चॉकलेट. .. चॉकलेट….” तब मेहमान ने भी वाकफियत दिखाई लगा ये इसी के परिवार का है और परिजन ने सुबह जाकर सुध ली है . पर देखो तो सही ये युवक सीताराम की ही गलती बताने लगा कि उसके चॉकलेट को रात को बांधा क्यों . मेहमान का नाम भी तभी उजागर हुआ . मैं होता तो इस आगंतुक को एक फटकार लगाता कि अपने पैट को उसने रात को ही सम्भाला क्यों नहीं पर खैर विनोद सीताराम की हिमायत में बाहर निकलकर गया और कहा उस फटफटिया वाले को कि एक तो रात भर तुम्हारे पैट की हिफाजत की और तुम हो कि…. खैर .


अंत भला तो सब भला सुबह चॉकलेट गया अपने घर परिजन के साथ .


चित्र में बाएं से दाएं क्रमशः 1 सीताराम 2 चॉकलेट 3 स्कूपी .

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तस्दीक :. Vinod Pandya

समीक्षा ~ Suman Parmar

इति......

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सुप्रभात .

प्रातःकालीन सभा स्थगित.. 

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सुमन्त पंड्या.

सह अभिवादन : Manju Pandya

@ आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

30 अक्टूबर 2015 .

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दो बरस पुराना क़िस्सा आज ब्लॉग पर दर्ज 

जयपुर 

सोमवार ३० अक्टूबर २०१७ .

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