Sunday, 16 April 2017

स्मृतियोंकेचलचित्र : नंगम नंगा    😀

नंगम नंगा - १.

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अब क्या बताऊं आपको ये शीर्षक ही कुछ ऐसा है कि एक बार तो सेंसर बोर्ड ने ऐसी कोई पोस्ट लिखने को ही मने कर दिया था  । सेंसर को लगा इसमें कोई अभद्र और अश्लील बात आएगी । आज की ज़ुबान में क़हूं तो वल्गर या पॉर्न पोस्ट बण रही है ये वहम हो गया सेंसर को । मरता क्या न करता ,  सारी बात सेंसर को भी बताई  , एक आध और लोगों को भी ये बातें सुनाई और उन्हें  अंपायर बनाया   , पूछा कि बोलो जी इसमें क्या अभद्रता है  ? सब  तरफ़ से हरी झंडी हो गई तो अब करता हूं ये क़िस्से दर्ज  ।

नंगम नंगा --१

ये कहानी मेरे ननिहाल  की है और कई पीढ़ियों पुरानी है । पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाकर ये कथा मुझ तक पहुँची है । सच्ची बात है जो आप को ज्यों की त्यों बताए देता हूं । इस में ला ला लू ली की क्या बात  । सच्ची बात है तो है ।

भट्ट जी महाराज  ग़ांव के बाहर के क़ुए  की मुंड़ेर पर नित्यनियम के अनुसार नहा रहे थे जिसके आगे ग़ांव का गोचर प्रदेश था  । नहाते नहाते उनका ध्यान पड़ा कि  उनके घर की गाय  प्रसव वेदना से पीड़ित है और कुछ कठिनाई अनुभव कर रही है  । वे नहा तो चुके थे पर अब उनकी प्राथमिकता गाय थी  तो जैसे थे  वैसे ही चल दिए  और ऐसे में धोती लपेटना तो भूल ही गए  । बछड़े को बाहर निकालने में उन्होंने मदद भी की और बछड़े को साथ लेकर घर की और चल दिए  । मेरे ननिहाल का चतुर्भुज जी का मंदिर  ग़ांव के बीचों बीच एक ऊंचे स्थान पर है  और चहुं ओर से रास्ते उसको जाते हैं । भट्ट जी महाराज जिस ओर से  बछड़े को लेकर चले   गाय उनके पीछे पीछे चली  , रास्ते भर कई ग्राम वासियों से एक ही संवाद होता रहा उसकी बानगी देखिए  :

" भट्ट जी महाराज यो काँईं हो  रह्यो छै  ?"

( भट्ट जी महाराज ये क्या हो रहा है  ?" )

" गाय ब्याई छै  , केरड़ो हुयो छै  !"

( गाय ब्याई है , बछड़ा हुआ है )

एक ही सवाल बार बार पूछा गया उनसे और वो  हर बार ऐसा ही जवाब दोहराते गए  । आख़िर किसी तरह वो घर पहुंचे तो वहां भी तो ये ही सवाल  उनकी जीवन संगिनी द्वारा पूछा गया :

" ए शूं  ? "

( ये क्या हो रहा है ?")

और उनका वही सधा हुआ उत्तर 

" गाय व्याई छै , वाछड़ो थयो छै !" 

( गाय ब्याई है , बछड़ा हुआ है )

पर जैसे अन्य ग्रामवासी उत्तर सुनकर  शांत हो जाते थे  ऐसा घर में नहीं हुआ । जीवन संगिनी ने आगे कहा :

" पण नागा काँ छो ?"

( पर नंगे क्यों हो ?" )

अब भट्ट जी महाराज के चोंकने की बारी थी ।

वे जब बार बार पूछे गए सवाल की असलियत समझे तो अपणा ललाट पीट कर बोले :

" अरै पैली पैल  का देखबाला  !"

माने  अरे सबसे पहले देखने वाले !

अपने ननिहाल के उस भोले पूर्वज को नमन करते हुए  " नंगम नंगा -१ " कथा समाप्त करता हूं  ।

नंगम नंगा - २ भी लिखूंग़ा  । आज इत्ता ही ।

तदर्थ सहमति : Manju Pandya .

जयपुर 

रविवार  १६ अप्रेल २०१७ ।

http://ravindraniwassegulmohar.blogspot.in/2017/04/blog-post_7.html


आपका किस्सागो ।

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