नंगम नंगा - १.
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अब क्या बताऊं आपको ये शीर्षक ही कुछ ऐसा है कि एक बार तो सेंसर बोर्ड ने ऐसी कोई पोस्ट लिखने को ही मने कर दिया था । सेंसर को लगा इसमें कोई अभद्र और अश्लील बात आएगी । आज की ज़ुबान में क़हूं तो वल्गर या पॉर्न पोस्ट बण रही है ये वहम हो गया सेंसर को । मरता क्या न करता , सारी बात सेंसर को भी बताई , एक आध और लोगों को भी ये बातें सुनाई और उन्हें अंपायर बनाया , पूछा कि बोलो जी इसमें क्या अभद्रता है ? सब तरफ़ से हरी झंडी हो गई तो अब करता हूं ये क़िस्से दर्ज ।
नंगम नंगा --१
ये कहानी मेरे ननिहाल की है और कई पीढ़ियों पुरानी है । पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाकर ये कथा मुझ तक पहुँची है । सच्ची बात है जो आप को ज्यों की त्यों बताए देता हूं । इस में ला ला लू ली की क्या बात । सच्ची बात है तो है ।
भट्ट जी महाराज ग़ांव के बाहर के क़ुए की मुंड़ेर पर नित्यनियम के अनुसार नहा रहे थे जिसके आगे ग़ांव का गोचर प्रदेश था । नहाते नहाते उनका ध्यान पड़ा कि उनके घर की गाय प्रसव वेदना से पीड़ित है और कुछ कठिनाई अनुभव कर रही है । वे नहा तो चुके थे पर अब उनकी प्राथमिकता गाय थी तो जैसे थे वैसे ही चल दिए और ऐसे में धोती लपेटना तो भूल ही गए । बछड़े को बाहर निकालने में उन्होंने मदद भी की और बछड़े को साथ लेकर घर की और चल दिए । मेरे ननिहाल का चतुर्भुज जी का मंदिर ग़ांव के बीचों बीच एक ऊंचे स्थान पर है और चहुं ओर से रास्ते उसको जाते हैं । भट्ट जी महाराज जिस ओर से बछड़े को लेकर चले गाय उनके पीछे पीछे चली , रास्ते भर कई ग्राम वासियों से एक ही संवाद होता रहा उसकी बानगी देखिए :
" भट्ट जी महाराज यो काँईं हो रह्यो छै ?"
( भट्ट जी महाराज ये क्या हो रहा है ?" )
" गाय ब्याई छै , केरड़ो हुयो छै !"
( गाय ब्याई है , बछड़ा हुआ है )
एक ही सवाल बार बार पूछा गया उनसे और वो हर बार ऐसा ही जवाब दोहराते गए । आख़िर किसी तरह वो घर पहुंचे तो वहां भी तो ये ही सवाल उनकी जीवन संगिनी द्वारा पूछा गया :
" ए शूं ? "
( ये क्या हो रहा है ?")
और उनका वही सधा हुआ उत्तर
" गाय व्याई छै , वाछड़ो थयो छै !"
( गाय ब्याई है , बछड़ा हुआ है )
पर जैसे अन्य ग्रामवासी उत्तर सुनकर शांत हो जाते थे ऐसा घर में नहीं हुआ । जीवन संगिनी ने आगे कहा :
" पण नागा काँ छो ?"
( पर नंगे क्यों हो ?" )
अब भट्ट जी महाराज के चोंकने की बारी थी ।
वे जब बार बार पूछे गए सवाल की असलियत समझे तो अपणा ललाट पीट कर बोले :
" अरै पैली पैल का देखबाला !"
माने अरे सबसे पहले देखने वाले !
अपने ननिहाल के उस भोले पूर्वज को नमन करते हुए " नंगम नंगा -१ " कथा समाप्त करता हूं ।
नंगम नंगा - २ भी लिखूंग़ा । आज इत्ता ही ।
तदर्थ सहमति : Manju Pandya .
जयपुर
रविवार १६ अप्रेल २०१७ ।
http://ravindraniwassegulmohar.blogspot.in/2017/04/blog-post_7.html
आपका किस्सागो ।
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