निवाई डायरी -- भाग दो ।
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कल की पोस्ट में निवाई की बात क्या छेड़ी हम दोनों निवाई बनस्थली हलके की यादों में खो गए । भाई यादवेन्द्र की टिप्पणी ने कल की पोस्ट पर सुन्दर उपसंहार लिख दिया ।
विमल जी और निवाई के उस घर का सुन्दर परिवेश याद आता रहा ।
कैसे अच्छे लोग थे वहां । कित्ती बातें हैं बताने लायक , आज थोड़ी सी और सही ।
कल जीवन संगिनी ने एक कौतुक प्रश्न पूछ लिया मुझसे के अपण नए जमाने के लोग हैं या के पुराने जमाने के और आप सच्ची जाणो मैंने भी मान लिया के अपण तो पुराने जमाने के ही हैं ।
क्यों ?
क्योंकि अपण एक दूसरे को नाम लेकर कब बुलाते हैं ?
मैं इनको अक्सर परमेसरी ( my Godess ) कहकर बुलाता और तब परमेश्वरी मेरी क्लास में पढ़ती थी जो उसकी सहेलियां समझती के उसका ज़िक्र है । ये तो ऐसे ही बनस्थली की बात याद आ गई जो यहां बता दी है ।
बात तो निवाई की चल रही है । वहां तो बराबरी की बात थी । न तो वो उनका नाम लेवें और न वो उनका । ऐसी थी बात ।
बड़े सवेरे पानी की सप्लाई आती । हम लोगों के जागने से पहले मालिक मकान हमारी रसोई में पानी भर देते । ऐसे कौन करता है बड़े शहरों में । बड़े शहरों में तो पानी के लिए गृह युद्ध होवेंगे ये आसार आगे आगे दीख रहे हैं ।
एक दिन तो हद हो गई !
हम लोग महिमा और नूनू को साथ लेकर कहीं निकल गए थे । हमें तो ख़याल भी नहीं था वो कोई जैन पर्व का दिन था । तब ले देकर महिमा के पास एक मोबाइल फोन हुआ करता था । सन्देश मिला कि विमल दम्पति चाहते हैं कि हम जल्द घर आएं । खैर साब आए हम लोग । और बात ज़रा सी थी , पर जरा सी बात ही बड़ी बात भी थी ।
क्या बात थी ?
विमल जी चाहते थे कि मंदिर जाने से पहले घर में बड़े बुजुर्ग का आशीर्वाद लेकर जाएं । उस दिन का चयनित बड़ा बुजुर्ग मैं था उनके लिए । ये पांव छुआना चाहे मुझे कितना भी अटपटा लगता हो उस दिन तो ये भूमिका स्वीकार की मैंने ।
विमल जी ने मेरे पांव छूए और बड़ा जैन मंदिर के लिए रवाना हो गए । ये दृष्य आज भी मुझे याद है ।
ये गाथा तो लंबी चल सकती है पर समय की सीमा है । आज निवाई डायरी को यहीं स्थगित करता हूं ।
अब जीवन संगिनी का मन रखने को एक बात ऐसे कह देता हूं :
अपण नए जमाने के पुराणे लोग हैं ।
@ डूंगरपुर भोर की सभा स्थगित …..
शनिवार २२ अप्रेल २०१७ .
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