Monday, 3 April 2017

बनस्थली डायरी : गोपाल नायक के बारे में ✅

#स्मृतियोंकेचलचित्र


बनस्थली की बातें क्रम में : गोपाल नायक के बारे में . एक .


उन्नीस सौ चौरासी का साल .

समय : गर्मी की छुट्टियां .

स्थान : बनस्थली विद्यापीठ .

यह कुछ ऐसा दौर था जब घोषित रूप से बनस्थली विश्वविद्यालय तो बन चुका था और रूपांतरण का दौर चल रहा था . पहली जरूरत के तौर पर नए पाठ्यक्रम बनाए जा रहे थे . बाहर से आए नामचीन लोग इसमें मददगार बने थे . स्थानापन्न गेस्ट हाउस के तौर पर ये लोग पर एक छात्रावास में ठहरे हुए थे और इधर ज्ञान मंदिर में पाठ्यक्रम समिति की बैठकें चल रही थीं .

उस दिन दोपहर को बातें करते करते पांच प्रोफेसरान मेरे साथ 44 रवीन्द्र निवास आ गए , इनमे विविध विषयों के लोग थे . जून का महीना , सब कोई गर्मी से बेहाल . कमरे का पंखा खोल दिया पर राहत न मिली, मैं उनके स्वागत के निमित्त रसोई और कमरे के बीच आ जा रहा था . इस बीच बिजली भी आ जा रही थी .एक फ्रोफेसर बोले :


" सुमन्त , बुरा न मानो तो मैं अपना कमीज उतार दूं , गर्मी बहुत है ."


मैं ने तुरंत उन्हें हैंगर दे दिया और कहा :

" अपन ही अपन हैं , इसमे बुरा मानने की क्या बात है ?"


हुआ ये कि थोड़ी देर में सबके कमीज हैंगरों पर टके हुए थे , सिवाय एक के जिन्होंने पसीने से भीगा कमीज धो ही डाला था और चौक में सुखा दिया था . उस दिन शाम की बैठक में वो प्रोफ़ेसर मेरा ही कमीज पहन कर गए , मुझे उनका ये अंदाज बड़ा बढ़िया लगा .


इस परिघटना के बाद मैं अपने दफ्तर के सर्वेसर्वा अधिकारी भंवर लाल जी , जो अब असिस्टेंट रजिस्ट्रार या शायद डिप्टी रजिस्ट्रार बन गए थे , के पास गया और पूरी आप बीती सुनाई . साथ ही एक मांग भी रखी कि मेरे घर 44 रवीन्द्र निवास के बाहर आवश्यक रूप से एक नीम का पेड़ होना चाहिए जिसकी छांव में खाट डाली जा सके और बैठा जा सके . भंवर लाल जी ने मुझे इस विषय में आश्वस्त किया लेकिन साथ ही कहा :


" आपकी तो नायक से दोस्ती है , इस में मैं क्यों बीच में पड़ूं , आप सीधे नायक से कहो , वो लगा देगा आपके यहां नीम का पेड़ ."


 और इस प्रकार मेरी नीम के पेड़ की स्वैर कल्पना प्रारम्भ हुई जिसे साकार किया मेरे अभिन्न मित्र गोपाल नायक ने .


अभी तीन दिन पहले जब उड़ीसा दिवस की बात आई तो मुझे गोपाल नायक बहुत याद आए और साथ ही याद आए वो एक नहीं दो नीम , जो आज भी उस परिसर में 44 रवीन्द्र निवास के बाहर लगे हुए हैं . 

गोपाल नायक उन दिनों वहां गार्डन सुपरिंटेंडेंट हुआ करते थे और मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे .एक एक करके दो नीम मैं उन्हीं से मांग कर लाया था और घर के बाहर लगाए थे , जो आज भी उस परिसर में हैं .


बनस्थली की मधुर स्मृतियों के साथ .


समर्थन : Manju Pandya


#बनस्थली


#गोपालनायक


सुप्रभात . Good morning .


सुमन्त 

आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

शनिवार 4 अप्रेल 2015 .

ब्लॉग पर दर्ज :   मंगलवार ४ अप्रेल २०१७ 

#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी #गोपालनायक 


आज का अपडेट :

आज ये किस्सा अपने ब्लॉग पर दर्ज करूंगा ।

अभी हाल की गतिविधि :

Good morning & private coffee done @ Gulmohar ☕

जय भोले नाथ ।🔔🔔

राम नवमी 

४ अप्रेल २०१७ .


3 comments:

  1. बहुत खूब आदरणीय.....

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    1. आभार इन्दर । 😃 वहां के लोग तस्दीक़ कर रहे हैं कि मेरे दोनों नीम वहां आज भी लहलहा रहे हैं ।

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