ये उपहार में मिली अपनी ही तस्वीर है जो आज के अवसर के लिए उपयुक्त जान पड़ती है । फ़ोटो कलाकारी का श्रेय आनंद जोशी को ।
अब बात आगे की :
पहली अप्रेल : बूच्या के श्री राम जी !
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#sumantpandya
आज पहली अप्रेल है , नई सभ्यता में में ये दिन मूर्खों के लिए मुक़र्रर है .
आज सोचता हूं अपनी इस कहावत का इतिहास और अभिप्राय खोल दूं जो है :
"बूच्या के 'श्री राम जी'..."
पात्र परिचय :
सूरतगढ़ के अम्बा लाल बाबा का प्यारा बेटा हुआ करता था बूच्या , स्वभाव से थोडा सीधा लेकिन बुद्धि से ठस्स . पढ़ाई में कमजोर . गिनती सीखने के मामले में उसे कठिनाई होती थी .
उसके नामकरण के पीछे की बात यह थी कि उसका एक कान दूसरे कान से थोड़ा छोटा था और इसी लिए उसका घर का , प्यार का नाम प्रचलित हो गया था . उसका लोक नाम कुछ और भी रहा हो तो मुझे पता नहीं क्योंकि ये पिछली शताब्दी के मध्य भाग की बात है और इस विवेच्य कहावत के साथ यही नाम सटीक बैठता भी है .
हुआ क्या था जो कहावत बनी :
आज वही बताने जा रहा हूं . बूच्या जब गिनती सीखता और बोलता तो गिनती का क्रम चलता " .....एक दो तीन चार ..... पांच छह सात ......."
और आगे उसे कुछ याद न आता , उसे कुछ सूझता ही नहीं . क्या बोले बेचारा जब आगे गिनती याद ही न आवे . थोड़ी देर याददाश्त पर जोर डालता और जब पार न पड़ती , कुछ भी न सूझता तो बूच्या जोर से बोल कर इस गिनती अभ्यास का समापन करता :
"श्री राम जी ..."
इस कहावत में आये श्री राम जी कोई बूच्या की निजी संपत्ति तो नहीं हैं इनका नाम बरतने में उसका नाम साथ में जुड़ गया है और तब से मेरे घर में तो कम से कम यह कहावत चल पड़ी है , जहां अटक जावे वहीँ ' बूच्या के श्री राम जी '
इतना अवश्य है कि कभी कभी राम जी का नामोच्चार थोड़ा लंबा अवश्य हो जाता है , इस प्रकार - "श्री राआआआ म जी ".
जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास 'एनीमल फ़ार्म ' में भी मेरी कहावत के नायक समान कुछ पात्रों का उल्लेख आया है .
आधुनिक लोकतंत्र में जहां दादागिरी करने वाले शासक बन बैठते हैं वहां ऎसे पात्र शासकों को बहुत भाते हैं यह कहने की शायद आवश्यकता नहीं है .
#बूच्याकेश्रीरामजी
#पहलीअप्रैल
समर्थन : Manju Pandya
सुप्रभात .
Good morning .
सुमन्त
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
पहली अप्रैल 2015 .
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पुनः प्रकाशित : बूच्या के श्री राम जी.
आवृत्ति : 1 अप्रेल 2016 .
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
ब्लॉग पर प्रकाशित :
शनिवार पहली अप्रेल २०१७ ।
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