परीक्षा में ड्यूटी की: बनस्थली की बातें . #sumantpandya
परीक्षा ड्यूटी के मामले में थोड़ी कड़ी या कहूं लगभग क्रूर प्रशासनिक व्यवस्था ने मुझसे सेवाकाल के अंतिम वर्षों में इन्वीजिलेशन ड्यूटी करवाई आज उसी के अनुभव कहूंगा . मेरा भी हमेश मानना रहा कि हमें परीक्षा कक्ष में होना ही चाहिए ,ये काम किसी और को कैसे दिया जा सकता है ?
1.
एक युवा प्राध्यापक कक्ष में मेरे सहयोगी थे , परिचय हुआ . मैंने उनका विषय और आवास पूछा . पता लगा वो शारीरिक शिक्षा विभाग में तीरंदाजी ( आर्चरी) के प्रशिक्षक थे और रवीन्द्र निवास 45 में रहते थे .
याने मेरे सामने वाले घर में ही रहते थे और परिचय हुआ वाणी मंदिर की तीसरी मंजिल पर जाकर . अगर मैं ड्यूटी पर न गया होता तो शायद अपरिचित ही रहते . मैंने इतना ही कहा कि यहां तो ऐसा नहीं होता था , हम क्यों शहराती होते जा रहे हैं , यहां तो सब सबको जानते आये हैं . पड़ोस में रहते हो तो मिलते क्यों नहीं ? खैर परिचय हुआ तो दुआ सलाम भी शुरु हो गई .
2.
एक बार एक युवा प्राध्यापिका , जो उत्तर प्रदेश से आयीं थीं , मेरी सहयोगी थीं . जब परीक्षा का समय समाप्त होने आया तो बोलीं :
" दरवाजा बंद कर दूं , एक दरवाजे पर मैं खड़ी हो जाऊं ताकि कोई छात्रा साथ कापी न ले जाय . "
मैंने कहा : तमाम दरवाजे खुले रखिए , समय बीतने पर कक्ष से जाने को कहिए , कापी कहीं नहीं जाएगी ये मेरी जिम्मेवारी है .
उनका भी सोचना अपनी जगह था , जहां से वे आयीं थीं वहां कुछ परीक्षार्थी कापी साथ भी ले जाया करते थे .
3 .
एक बार एक युवा पंडित जी साथ थे परीक्षा कक्ष में . गिनती करने में एक कापी कम पड़ी . पंडित जी कुछ चिंतित दिखे, बोले:
" अब क्या होगा सर ?"
" होगा क्या , अभी सप्लीमेंट्री का एक डोरा काट देता हूं और हो जाएगी गिनती पूरी ." मैं बोला था और भोले पंडित जी की चिंता दूर कर दी थी .
थी बात मजाक की ही . कापी कक्ष में ही थी और ठीक से गिनने पर हो गई पूरी .
आज के लिए इतने ही संस्मरण . इति .
सतत सहयोग : Manju Pandya
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#परीक्षा
सुप्रभात .
सुमन्त
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
15 मार्च 2015 .
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