Tuesday, 14 March 2017

परीक्षा की बातें : बनस्थली डायरी 😊

परीक्षा में ड्यूटी की: बनस्थली की बातें .   #sumantpandya

परीक्षा ड्यूटी के मामले में  थोड़ी कड़ी या कहूं लगभग क्रूर प्रशासनिक  व्यवस्था ने मुझसे  सेवाकाल के अंतिम वर्षों में इन्वीजिलेशन ड्यूटी करवाई  आज उसी के  अनुभव कहूंगा . मेरा भी हमेश मानना रहा कि हमें परीक्षा कक्ष में होना ही चाहिए ,ये काम किसी और को कैसे दिया जा सकता है ?
1.
     एक युवा प्राध्यापक कक्ष में मेरे सहयोगी थे , परिचय हुआ . मैंने उनका विषय और आवास पूछा  . पता लगा वो शारीरिक शिक्षा विभाग में तीरंदाजी ( आर्चरी)  के प्रशिक्षक थे और रवीन्द्र निवास 45 में रहते थे .
याने मेरे सामने वाले घर में ही रहते थे और  परिचय हुआ वाणी मंदिर की तीसरी मंजिल पर जाकर  . अगर मैं ड्यूटी पर न गया होता तो शायद अपरिचित ही रहते . मैंने इतना ही कहा कि यहां तो ऐसा नहीं होता था , हम क्यों शहराती होते जा रहे हैं , यहां तो सब सबको जानते आये हैं . पड़ोस में रहते हो तो मिलते क्यों नहीं  ?  खैर परिचय हुआ तो दुआ सलाम भी शुरु हो गई .
2.
एक बार एक युवा प्राध्यापिका , जो उत्तर प्रदेश से आयीं थीं , मेरी सहयोगी थीं .  जब परीक्षा का समय समाप्त होने आया तो बोलीं :      
" दरवाजा बंद कर दूं , एक दरवाजे पर मैं खड़ी हो जाऊं ताकि कोई छात्रा साथ कापी न ले जाय . "
मैंने कहा : तमाम दरवाजे खुले रखिए  , समय बीतने पर कक्ष से जाने को कहिए , कापी कहीं नहीं जाएगी ये मेरी जिम्मेवारी है .
उनका भी सोचना अपनी जगह था , जहां से वे आयीं थीं वहां कुछ परीक्षार्थी कापी साथ भी ले जाया करते थे .

3 .
एक बार एक युवा पंडित जी साथ थे परीक्षा कक्ष में . गिनती करने में एक कापी कम पड़ी . पंडित जी कुछ चिंतित दिखे, बोले:

"  अब क्या होगा सर ?"

" होगा क्या , अभी सप्लीमेंट्री का एक डोरा काट देता हूं  और हो जाएगी गिनती पूरी  ."    मैं बोला था और  भोले पंडित जी की चिंता दूर कर दी थी .

थी  बात मजाक की ही . कापी कक्ष में ही थी और ठीक से गिनने पर हो  गई पूरी .
आज के लिए इतने ही संस्मरण . इति .

सतत सहयोग : Manju Pandya
#बनस्थलीडायरी

#परीक्षा
सुप्रभात .

सुमन्त
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
15 मार्च 2015 .

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