Saturday, 11 March 2017

गांव के स्कूल का किस्सा : बतर्ज भास्कर : बनस्थली डायरी

            😊😊 देखा सुना : गांव के स्कूल का किस्सा : बतर्ज भास्कर .

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   गांव के स्कूल का परीक्षा कक्ष  :

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माट साब कस्बे से चल कर परीक्षा में ड्यूटी करने आए है  स्कूल में  . हो गई कक्ष में परीक्षा शुरु . कापी पेपर बांट दिए और अब कमरे के दरवाजे के पास कुर्सी लगाकर डटे बैठे हैं माट साब . दरवाजे के पास कुछ हवा तो लगे , कमरे में तो कोई पंखा भी नहीं है . छोरे कर रहे हैं अपना काम सुविधा देखकर . अगर कोई सामग्री साथ लाए हैं तो उसको भी बरत रहे हैं  अब माट साब तो अपनी जगह से उठकर आने से रहे  , छोरे माट साब की इज्जत भी करते हैं और लिबर्टी भी लेते हैं . अब एक छोरे ने जब काफी कुछ सामग्री बरत ली तो माट साब हरकत में आए और बोले :

😊😊 “ छोरा ! करै  मन्नै ! न त रै देख आवूं छूं देख ! “

छोरा  , इत्ते कहे से कब  मानने वाला था  छोरा वो भी जिद्दी , करता रहा अपनी मन मानी  और माट साब को झुल्ला देता रहा :

😊” माट साब ! थोड़ो सो और कल्लेबा द्यो ! अजी माट साब .”

थोड़ी देर और हो  गई , फिर लगाई हांक माट साब ने  और फिर बोले :

😊” देख छोरा करै मन्नै  ! न त रै देख आवूं छूं देख ! “

अब आप पूछे बिना न मानोगे ,” फिर क्या हुआ ? “

😢😢 होना क्या था  , माट साब ने उठ के जाने का श्रम नहीं किया , छोरा माना नहीं  , और छोरों को लाइसेंस और मिल गया .

ऐसे ही  चली परीक्षा  .

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सुप्रभात

सुमन्त पंड्या .

जयपुर

गुरूवार  28 अप्रेल 2016 .

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आज इस किस्से को अपने ब्लॉग पर दर्ज किए देता हूं ।

संध्या वंदन 🔔🔔

@ जयपुर

    ११ मार्च २०१७ .

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