Saturday, 4 March 2017

  गांव के स्कूल में हाजिरी दर्ज कराई : बनस्थलीडायरी 📙

   गांव के स्कूल में : मैंने कराई हाजिरी दर्ज. #बनस्थलीडायरी .

बनस्थली विद्यापीठ में जिन दिनों मैंने काम किया लड़कियों की तो पढ़ाई की बहुत माकूल व्यवस्था  थी  पर लड़का एक 'तड़ी पार' प्रजाति हुआ करता था . नतीजतन  प्राथमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने के बाद छोटे वाले को गांव के सैकेंडरी  बॉयज स्कूल में पढने भेजा . एक उसके कद के अनुकूल सायकल दिला दी , वह उस स्कूल में पढने लगा .उसी दौर का एक प्रसंग कहता हूं .

एक दिन संरक्षक के नाते मेरे नाम 'रैड कार्ड ' जारी हो गया . इस कार्ड का अभिप्राय यह था कि  छात्र का संरक्षक स्कूल में उपस्थित होकर शिकायत सुने और आगे के लिए  छात्र के सुधरने का भरोसा दिलावे . शिकायतें दो ही हुआ करती थीं, या तो होम वर्क अधूरा रहा या फिर उपस्थिति कम रही . कार्ड पर कक्षा अध्यापिका के भी  हस्ताक्षर थे . हमारी ही पूर्व छात्रा दुर्गेश नंदिनी ने  मुझे बुला भेजा था सो मुझे जाना ही था और मैं स्कूल गया था .

दुर्गेश नंदिनी से पीढ़ियों का रिश्ता था पर वह बताना बात को लंबी करना हो जाएगा अतः स्थगित करता हूं .

कैसे पहुंचा स्कूल :

       उन दिनों आर्थराइटीज ने मुझे सताया था अतः पैरों में दर्द रहने लगा था पर स्कूल तो जाना ही था सो गया . गांव में घुसते ही एक माट साब मिल गए उन्होंने स्कूल के दरवाजे तक मोटर सायकल से मुझे   पहुंचाया . स्कूल थोड़ा ऊंचाई पर बना हुआ है , दो चार सीढ़ी चढ़कर स्कूल के अहाते में पहुंचा तो पाया कि वहां मैदान में बिछायत पर छात्र समुदाय बैठा था और कुर्सियों  पर अध्यापक अध्यापिकाएं  और कोई सभा चल रही थी . यह एस यू पी डब्लू   कैम्प का समापन समारोह था , थोड़ी देर में मुझे समझ आ गया . हैड माट साब और आशा जी , सरिता  जी  सरीखी अध्यापिकाओं ने आगे बढ़कर मेरा स्वागत किया और मुझे उस सभा - समारोह में सम्मिलित कर लिया . मैं तो इस परिस्थिति से अनभिज्ञ था  और जिस काम से आया था उसे पूरा करना चाहता था  . सभा में दुर्गेश नंदिनी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी . सभा समापन तक मैं वहां बैठा रहा और जैसा मुझे लग ही रहा था अंत में मुझे उस समारोह का मुख्य अतिथि घोषित करते हुए आशा जी ने मुझे बोलने को कह दिया . वह भूमिका भी मैंने निभाई , ' आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास .'

सभा - समारोह तो हो गए पर मेरा निमित्त तो बाकी रह गया . मुझे बताया गया कि मुझे परिसर में आता देख दुर्गेश नंदिनी साथी अध्यापिकाओं को ये युक्ति बताकर चली गई और इस भागीदारी में ही संरक्षक के रूप में मेरी हाजिरी मान ली गयी .

आज इतना ही .

समर्थन :

1 . मंजु पंड़्या

2 . मिहिर पंड़्या

सुप्रभात.

सुमन्त .

आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

27 मार्च  2015 .

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आज इस पोस्ट को ब्लॉग पर प्रकाशित किए देता हूं

जयपुर

शनिवार ४ मार्च २०१७ .  

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