Monday, 20 March 2017
औचक कार्रवाई : बनस्थली डायरी .
औचक कार्रवाही #sumantpandya
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अचानक एक बहुत पुरानी बात याद आ गई तो लगा कि आज वही बता दूं .
बनस्थली से जयपुर की ग्रामीण सरकारी बस सेवा से असंख्य बार यात्रा की उसी से जुड़ी लोक व्यवहार की एक याद है .
बस में एक तरफ तीन सवारी की सीट होती है और दूसरी तरफ दो सवारी की इनमें से मैं दो सवारी की सीट पर ं बैठा था और एक और सहयात्री था . अब ये तो याद नहीं आ रहा कि पहले कौन बैठा था , शायद मैं ही क्योंकि बस बनस्थली से ही शुरु होती थी . उस सहयात्री से मुझे कोई असुविधा नहीं थी , आखिर मुझे टिकने को जगह ही कितनी चाहिए थी .
असुविधा प्रारम्भ तब हुई कि सहयात्री ने जेब से बीड़ी - पेटी निकाली और टाइम पास को बीड़ी सुलगा ली . उसने जब एक आध कश खींच लिए तो मैं बोला :
" जरा बीड़ी देना तो . "
मुझे सह उपभोक्ता जानकार बड़ा खुश हुआ सहयात्री और उसने सुलगती बीड़ी मुझे दे दी . लोग मिल बांट कर बीड़ी पीते हैं ये भी एक सामान्य प्रचलित रिवाज है , चिलम का तो और भी ज्यादा . भोला सहयात्री मेरे हाथों ठगा गया .
ज्यों ही बीड़ी मेरे हाथ में आई मैंने वही किया जो मन में सोच रखा था .
बीड़ी खिड़की से बाहर फेंक दी .
सहयात्री ठगा सा मेरे मुंह की तरफ देखने लगा .
अब बारी मेरी थी अपनी औचक कार्रवाही को उचित सिद्ध करने की.
मैं बोला :
" सामने देखो क्या लिखा है ? अगर पांच सौ रुपये का जुर्माना हो जाता तो कैसी रहती? "
जहां ड्राइवर कंडक्टर ड्राइवर सीट के पास बैठकर साथ साथ बीड़ी पीते हों वहां ऐसे कानूनों की तो डेमोक्रेसी रोज ही होती आई है , पर मेरी बात तो सध गई .
डिस्क्लेमर और चेतावनी :
ये केवल एक घटना का बयान है कोई मेरी रोज बरोज की आदत का बखान नहीं है . मेरे बच्चों , कभी सहयात्री से ऐसे आमने सामने की भिड़ंत ( फ्रंटल एनकाउंटर ) मत करना . जरूरत पड़ने पर सुझाव देना , निवेदन करना . मेरी तो अटकने और फंदा मोल लेने की आदत है सो कभी ऐसी औचक कार्रवाही कर बैठता हूं . मैं आदत से मजबूर हूं , तुम लोग ऐसे मत करना .
संवत्सर की बधाई .
#बनस्थलीडायरी
#औचक्कारर्वाही
सुप्रभात :
सुमन्त
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
चैत्र शुक्ला प्रतिपदा, वि . सं . 2072 .
21 मार्च , 2015 .
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पुराना किस्सा है आज दर्ज करता हूं ब्लॉग पर ।
@गुलमोहर , जयपुर .
21 मार्च २०१७ .
*********************बनस्थली ड़ायरी
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