ओहदे में बाबू और कहावें माट साब * : बनस्थलीडायरी
बनस्थली में मेरे सेवाकाल के अंतिम दशक में फैकल्टी का दफ्तर वाणी मंदिर में हुआ करता था . दफ्तर में मुझे भी अपनी हाजरी दर्ज करने तो जाना ही होता था . दफ्तर बाबू लोगों से ही आबाद रहता था और सच कहूं तो मेरा भी उन बाबू लोगों से अच्छा याराना था . ऐसा लगता था जैसे अपनी क्लास के आगे पीछे एक एक्सट्रा क्लास बाबू लोगों की भी मेरे जिम्मे है . उसी दौर का एक बहुत छोटा सा प्रसंग आज याद आ रहा है , वही सुनाता हूं .
वाणी मंदिर दफ्तर में बाबू लाल नाम के एक बाबू काम करते थे , बड़े अच्छे कम्प्यूटर टाइपिस्ट इन बाबू लाल को साथ के दूसरे बाबू 'माट साब' बुलाते थे . यह सम्बोधन मुझे थोड़ा अटपटा इसलिए लगता कि मैं इसे अपने लिए आरक्षित मानता था . आखिर मेरा यार राम निवास जो प्रायः तांबे का रामझारा लिए घूमता था और साधिकार मुझे पानी पिलाने चला आता था वह माट साब ही तो कहता था .
एक दिन मैंने उन बाबू लोगों से पूछा कि आप लोग इनको माट साब क्यों कहते हो . वे सब लोग बताने लगे कि हम लोगों में ये अकेले ऐसे बाबू हैं जिन्होंने टीचर ट्रेनिंग ली है . उनकी सूचना के अनुसार , यदि मुझे ठीक से याद है तो कुछ समय बाबू लाल ने पढ़ाने का काम भी किया पर शायद स्थाई नियुक्ति नहीं मिल पाई .
यह जानकर कि बाबूलाल एक ट्रेंड टीचर हैं मैंने सहज प्रश्न कर लिया :
" आप ने टीचर ट्रेनिंग ली थी तो फिर आप दफ्तर के बाबू क्यों बन गए ?"
ये सुनकर एक और बाबू जो बोले वो ही इस किस्से का उपसंहार कहा जा सकता है :
" ये भी क्या करते सर , ये मजबूर थे , घर वालों ने नाम भी तो बाबू लाल रख दिया था ."
एक प्रकार से बाबू बनाने की बिसात तो बचपन में ही बिछ गई थी .
बाबू लाल अध्यापक बनना चाहते थे पर दफ़्तर का काम करने को मजबूर हुए .
मैंने भी इस मौके पर कहा कि भाई नसीब वाले होते हैं वो बनते हैं
'माट साब'.
आज की पोस्ट तो मैं अपने यार बाबू लोगों को ही समर्पित करता हूं .
अनायास ही राम निवास का ज़िक्र आ गया है , पूसवाड़ी के रामनिवास पर अलग से कोई पोस्ट लिखूंगा और एक अलग पोस्ट लिखूंगा गोपाल नायक पर जो मेरे समय में वहां गार्डन सुप्रिन्डेंटेन्ट हुआ करते थे ,कल उड़ीसा दिवस पर वो बहुत याद आए .
अंग्रेजों के जमाने से ही ये बाबू ओहदा बड़ा ओहदा रहा है , इसी लिए तो आज भी अपने बड़ों को 'बाबू जी' कहने का रिवाज चला आया है . आज की पोस्ट इसी लिए बाबू लोगों को समर्पित करता हूं .
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समर्थन और समीक्षा : मंजु पंड्या .
सुप्रभात .
Good morning .
सुमन्त पंड्या .
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
2 अप्रेल 2015 .
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कोई दो बरस पुरानी पोस्ट है , आज इसे ब्लॉग पर पोस्ट किए देता हूं , आशा है आप सराहेंगे .
सुमन्त पंड्या
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
गुरूवार ९ मार्च २०१७.
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