Saturday, 11 March 2017

इश्यो तिश्यो मन भावै न ....

राजस्थानी कहावतें .

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गए दिनों प्रियंकर जी ने बहुत अच्छी राजस्थानी कहावतें  फेसबुक पर उद्धृत कीं और जरूरत पड़ने पर उनकी व्याख्या भी की  तो बड़ा अच्छा लगा . एक  छोटा सा प्रयास इसी सन्दर्भ में ये भी है . मुझे केवल इस बात का डर है कि इन कहावतों को कहीं सेंसर बोर्ड ( मेरा अपना सेंसर बोर्ड ) रद्द न कर देवे . उस  स्थिति में मैं तत्काल प्रभाव से इस पोस्ट को हटा लेवूंगा . अभी हाल के लिए दो कहावतें विचारार्थ रखता हूं .

1.

--- इशो तिशो .....

विवाह की आयु निकल रही थी और विवाह नहीं हो रहा था.

" किसका ?"

उसे रहने दीजिए , उससे क्या काम है . कोई भी इस बात का बुरा न माने इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा .

मैंने तो स्थिति के स्पष्टीकरण के लिए एक कहावत कही थी वही दोहराता हूं :

" इशो तिश्यो मन भावै न , अर मोत्यां  वाळो आवै न ."

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पहली कहावत का अर्थ है ( इशो तिश्यो ...)  कि  ऐसा वैसा तो मन को भाता नहीं और मन भावन , मोतियों वाला आता नहीं . कहावत हर उस परिस्थिति पर चरितार्थ है जब सामने उपलब्ध स्वीकार न   हो और मनचाहा विकल्प मिलता न हो .

2.

-- बाई सा का ....

लेकिन विवाह तो हो गया , मेरी कही कहावत उस दिन रद्द हो गई .

मुझसे पूछा गया ,' अब क्या कहते हो? '

मैंने उस दिन दूसरी कहावत दोहराई थी :

" बाई साब का कंवार  गिरह उतरगा अर  कंवर साब की रिबरिबी मिटगी ."

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ये सुविधा का संतुलन वाली बात है .

ये केवल कहावतें हैं , जीवन अनुभव पर आधारित , किसी को भी आहत करने के लिए नहीं हैं .

कुछ कहावतें मेरी अपनी  गढ़ी  हुई हैं , समय आने पर उन्हें भी साझा करूंगा . कुछ एक तो पहले साझा की भी हैं .

प्रातःकालीन सभा स्थगित .

इति.

सुप्रभात .

समीक्षा : मंजु पंड्या .

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सुमन्त पंड्या .

आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

11 अगस्त 2015 .

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फेसबुक पर सराहना मिली थी इस पोस्ट को ।

आज इसे जस की तस अपने ब्लॉग पर साझा करता हूं  ।

@ जयपुर

 ११ मार्च २०१७ .

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