स्थानापन्न : शिक्षा महाविद्यालय में .
बनस्थली में नया नया पढ़ाने लगा था , राजनीतिशास्त्र मेरा विषय भी था और विभाग का नाम भी . उम्र और अनुभव में सबसे छोटा था . छोटे को काम बता दो तो लपक कर करता है ये तो मानी बात है पर एक ऐसा भी प्रसंग आया जो मुझे असमंजस में डालने वाला था आज वही कहता हूं .
आई बी वर्मा साब वहां के शिक्षा महाविद्यालय के प्रिंसिपल थे उन्होंने तय किया कि प्रशिक्षु अध्यापिकाओं को कुछ सब्जेक्ट कंटेंट भी पढ़ाया जाना चाहिए , शायद इसे पाठ्यक्रम का भाग भी बनाया गया और सहोदर महा विद्यालय से मुझपर आन पड़ी ये जिम्मेदारी कि बी एड कक्षाओं को मैं नागरिक शास्त्र का पाठ पढ़ाउं . यहां यह भी कहता चलूं कि तब स्कूल में नागरिक शास्त्र पढ़ाया जाता था और कालेज में राजनीति शास्त्र . ये दस जमा दो का ज़माना आने पर उस ' नागरिक शास्त्र ' विषय का तो लोप ही हो गया है और अब तो संकाय चयन के बाद राजनीति शास्त्र की ही पढ़ाई कराई जाती है , ये एक अलग बहस होगी इसे अभी छोड़ता हूं . लौटता हूं तब की ही बात पर .
ये वो ज़माना था जब जे टी सी और एस टी सी की सनद लेकर भी स्कूल अध्यापक अध्यापिका बन जाया करते थे और सेवा में रहते स्टडी लीव लेकर बी एड किया करते थे जो एक बड़ी डिग्री मानी जाती थी . मुझे ऐसी ही क्लास मिली थी जिसे ' कंटेंट ' पढ़ाने की जिम्मेदारी मुझे मिली थी .
कक्षा का स्वरूप : आयु और अनुभव में मुझसे कमतर तो शायद ही कोई प्रशिक्षु अध्यापिका थी हां मुझसे दोनों तरह से बड़ी तो कई एक थीं जिनमें से केवल तीन का ज़िक्र यहां करूंगा , जम्मू कश्मीर राज्य से आयीं कोई डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स थीं , अरुणा तिवारी थीं जो बनस्थली के ही स्कूल की अध्यापिका थीं और थी राजस्थान विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग में मेरी सीनियर रही लेखा . ये पात्र परिचय तो मुझे आज तक याद है .
मेरा द्वंद्व यह था कि ये अध्यापिकाएं जो कंटेंट पढकर ही आई हैं अब प्रक्षिक्षण लेने तो मैं इन्हें पढ़ाकर क्या सूर्य को दीपक दिखाऊंगा .
अपने इसी प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए मैंने छाना सर गोपीनाथ पुरोहित पुस्तकालय के रैक को और एक किताब ढूंढ लाया जो उन किताबों से इतर थी जो मैंने विद्यार्थी के रूप में पढ़ी थी . ये थी :
Gurumukh Nihaal Singh : The changing concept of citizenship .
मुझे एक सहारा ये मिल गया कि कुछ तो इतर बताऊं इनको जो पहले की पढ़ाई में न आया हो .
जैसे तैसे बन गई बात और हो गया मेरा जिम्मा पूरा . सत्रांत में जब बी एड की प्रशिक्षुअध्यापिकाएं आपस में विदा होने को पार्टी करने लगीं तो मैं भी वहां आमंत्रित था .
महिला दिवस की बधाई .
सहयोग : Manju Pandya
सुप्रभात .
सुमन्त
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर . जयपुर .
8 मार्च 2015 .
#बनस्थलीडायरी
#शिक्षमहाविद्यालय
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