हमारी विचारधारा #sumantpandya #बनस्थलीडायरी
उस दिन बनस्थली में लूनिया की दूकान पर गेहूं पिसवाने गया था . लूनिया बंधु चक्की भी चलाया करते थे , अब भी शायद चलती होगी वहां चक्की. ये तब की बात है जब मैं " घर घंटी " नहीं लाया था और परिसर से निकलकर गांव में अनाज पिसवाने जाया करता था . उस दिन अनाज तौलने वाले तंगड़ में एक व्यक्ति विद्यापीठ छात्रावास से लाई रद्दी और कबाड़ तौल रहा था जिसमेँ एक छोटी सी पुस्तिका भी शामिल थी जिसका शीर्षक होता है " हमारी विचारधारा " . इस कृति के आरंभिक और संशोधित संस्करणों का मैं भी साक्षी रहा और तंगड़ में पड़ी यह पुस्तिका मुझे आहत कर रही थी .
मैं बोला : "अरे ये किताब तूने तंगड़ में कैसे तौल दी ? "
तौलने वाला क्या करता उसे तो जो सामान मिला था उसमे वो पुस्तिका भी थी , पर वो भी अच्छा बोला : " आप के काम की हो तो आप ले लो . "
खैर उस दिन तो मैंने उठा ली थी वो पुस्तिका और कहा था कि ऐसा तंगड़ तो बना नहीं जो इसे तौल सके , कहां तक सही था मैं ? आज भी बात याद आती है तो सोच में पड़ जाता हूं . समर्थन : Manju Pandya .
सुप्रभात
सुमन्त गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर . 4 मार्च 2015 .
#हमारीविचारधारा
#बनस्थली
-------------
ब्लॉग पर प्रकाशित
जयपुर शनिवार ४ फ़रवरी २०१७ .
No comments:
Post a Comment