Monday, 13 March 2017
पुराने लोग : जयपुर डायरी
पुराने लोग
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उस दिन घर घंटी चलाने का औसाण नहीं था और मैं टोंक रोड पर अग्रवाल ट्रेडर्स के पिसा पिसाया आटा खरीदने चला गया था ये तो उस दिन की बात है वरना आज दिन तो पांच दस किलो आटा पीस कर धर दिया मैंने बच्चे आएंगे तो चाहिएगा करके . बात चली राजेश उस दिन नहीं था जो अक्सर मिलता है दूकान पर मैंने जब पूछा के बॉस कहां हैं तो उपस्थित व्यक्ति बोला के देर से आएंगे . खैर जो मिला वो उसी का छोटा भाई आनंद था . अपने क्या है वो नहीं ये सही उसी से ले लिया सामान और उसी से कुछ बातचीत हो गई और मैंने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया कि जहां संतोष है वहीँ आनंद है . इसमे गहरी बात छिपी थी . लंबी चर्चा हुई पर अब वो यहां दोहराऊंगा नहीं . अपने नाम से जुड़ी चर्चा से आनंद खुश हुआ .
फिर क्या हुआ ?
----------------- मैंने पांच किलो गेहूं का आटा साथ में आधा आधा किलो मक्का और बाजरे का आटा और इतना ही नहीं कुछ मात्रा में बाजरे की कुटी हुई खिचड़ी अपने झोले में रखवाई और बाएं कंधे पर लटकाई तो आनंद बोला :
“ पुराने जमाने के लोगों की ये ही खसियात होती है ...।”
और और जाने क्या क्या बोला आनंद उसे जाने दीजिए , करने को वो तारीफ़ ही कर रहा था पर असल ये कि इस लडके ने मुझे पुराने जमाने का कह दिया था और ये ही मेरे अटकने की वजह थी .
“ अरे मेरे सामने ही मुझे पुराने जमाने का कह रहा है आनंद जब कि मैं तो समझता हूं कि मैं भी इसी जमाने का हूं . “😊
वो बोला और अच्छा बोला :
“ मैं जो कह रहा हूं आपके पुराने अनुभव की बात कह रहा हूं कोई आप को आउट ऑफ डेट थोड़े ही कह रहा हूं . “
मैंने कहा " मानी तेरी बात आनंद ! '
और फिर
मैंने कहा के चलते चलाते ढेर सा पानी और पिला दे बेटा और मैं फिर घर चला आया था .
इतनी ही कसर रह गई कि ये नहीं कहा मैंने :
“ ज़माना हम से है जमाने से हम नहीं . “
आप पूछ रहे हैं फ़िल्मी जुमला क्यों ?
वो तो आजकल चलन है इसलिए .
आज की बात समाप्त . प्रातःकालीन सभा स्थगित
सुप्रभात
जीवन संगिनी को समर्पित आज की पोस्ट :Manju Pandyaa
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सुमन्त पंड्या
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जगपुर
रविवार 13 मार्च 2016 .
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गए बरस की आज की पोस्ट ब्लॉग पर छापे दे रहा हूं ।
सोमवार १३ मार्च २०१७ .
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