#बनस्थलीडायरी : शिक्षा के आचार्यों से संवाद . ----------------------------------------------- बहुत पुरानी बात हो गई ये तो पिछली शताब्दी की बात है और तब की बात है जब बनस्थली विद्यापीठ विश्वविद्यालय बना भी नहीं था , राजस्थान विश्वविद्यालय के ही अंतर्गत आता था , इसी विश्वविद्यालय के अधीन स्वायत्तता अर्जित करने की बातें चल रही थीं . फिर जो कुछ हुआ वो पुराने लोग जानते हैं वो बातें अभी मेरा अभीष्ट नहीं है . उस समय दो प्रीमियर कॉलेज थे विद्यापीठ में 1. ज्ञान विज्ञान महाविद्यालय , जिसमें मैं भी था समय समय पर कई नामी लोग यहां आए जिनकी बड़ी इज्जत थी . 2 . शिक्षा महाविद्यालय , जिसकी बड़ी महत्ता थी . आज की तरह बहुत से बी एड की डिग्री दिलाने वाले कॉलेज प्रांत में नहीं थे , यहां तक कि राजस्थान विश्वविद्यालय का मौजूदा शिक्षा संकाय भी जन्मा नहीं था . तब के बनस्थली के प्रिंसिपल एल के ओड साब ही इस विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ एजूकेशन के डीन हुआ करते थे और भी अच्छे शिक्षा विशेषज्ञ थे कॉलेज में . आगे जो कहने जा रहा हूं उसी जमाने की बात है आशा है बात के मायने ठीक समझे जाएंगे , वरना तो आजकल लोग जाने क्या का क्या समझने लगते हैं और सामान्य शिष्टाचार में भी बदलाव आ जाता है . होनहार की बात : मेरी बस यात्रा : ----------------------------------- मुझे याद है बनस्थली से जयपुर की यात्रा के लिए मैं बस में बैठा था मेरे आगे सीट पर ओड साब भी बैठे थे और साथ में थे रवीन्द्र अग्निहोत्री और वीरेंद्र सब्बरवाल , ओड साब तब प्रिंसिपल थे और बाकी दोनों प्राध्यापक . ये लोग समय समय पर राजस्थान बोर्ड द्वारा स्कूलों के निरीक्षण के लिए भेजे जाते थे . दोनों प्राध्यापक एक स्कूल के निरीक्षण के लिए जा रहे थे , ओड साब कहां जा रहे थे ये तो मुझे पता नहीं पर ये खूब याद है कि उन्होंने अपने साथियों से एक स्कूल के बारे में क्या कहा था . वो बोले थे कि स्कूल तो यों ही है और लड़के भी यों ही हैं . स्कूल का नाम सुनकर मेरे कान खड़े हो गए तब मेरी उमर कम थी तो ये कहना भी उचित होगा कि रोंगटे खड़े हो गए . मैंने ओड साब को पीछे झंकाया और पूछा कि आप उस स्कूल के पढ़े लडके से मिले हो कभी ? न मिले हो तो अभी मिल लेओ . आप निरीक्षण करने जा रहे लोगों को क्यों ऐसे प्रभावित कर रहे हो . मेरी व्यथा को समझकर ओड साब ने अपनी बात वापिस ली ये बड़प्पन था उनका . आज दिन ये कोई छिपी बात नहीं है कि पुराना तोपखाना में चलने वाला दरबार मल्टी परपज हायर सैकेंडरी स्कूल ( आगे फिर नाम बदल गया ) किस खूबी से बंद कर दिया गया , कितना बड़ा खेल हुआ पैसे वालों की लॉबी का . भू माफिया और सत्ता का गठजोड़ क्या न करवा देवे . अगर पूंजी और सत्ता का गठजोड़ ऐसा ही रहा और जो आज दीख ही रहा है , शिक्षा बाजार के हवाले ही रही तो आगे उदारवादी शिक्षा का क्या होगा ये चिंतनीय है ही . और भी कहूंगा पर अभी हाल के लिए प्रातःकालीन सभा स्थगन से पहले एक शेर कहता हूँ : “ गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए .”
शेर ख़ातिर गज़नवी का है और इसे पूरा याद करने में मेरी मदद को हिमांशु आया है . (हिमांशु उल हक़ }
वो चलते चलते इस बात को भी स्वीकारूं कि बौद्धिक विमर्श में संतान और और अपनी छात्राओं से परास्त होना मुझे भी अच्छा ही लगता है . जो लोग हिसा की भाषा बोलते हैं मैं उनकी निंदा करता हूँ सुप्रभात . 🌻 सुमन्त पंड्या . समर्थन : Manju Pandya @ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर . सोमवार 7 फरवरी 2016 . -------- आज का अपडेट ************#स्मृतियोंकेचलचित्र #जयपुरडायरी #बनस्थलीडायरी
गुलमोहर कैम्प जयपुर से सुप्रभात 🔔🔔
Good morning & private coffee done ☕. आज इस पोस्ट को अपने ब्लॉग पर जोड़ता हूं . मंगलवार ७ मार्च २०१७ . संलग्न मेरी उस ज़माने की तस्वीर जब मैं स्कूल में पढ़ा करता था . एक और तस्वीर ब्लॉग से जोड़ने की कोशिश है जो बाद की है . ये बनस्थली में सेवाकाल के अंतिम दशक की है . इसका श्रेय मिहिर को .
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