अभी अभी अळसेटे में पड़ी एक फोटो उठाकर मैंने अपनी दीवार पर टांक दी । बात इत्ती है कि इसमें मैं खुश दिखाई दे रहा हूं ।
मेरे साथ ऐसा प्रायः होता है कि जहां जहां दूकानों पर जाता हूं और दूकानदारों से अटकता हूं , माने बातचीत करता हूं , कालान्तर में वो काउंटर पर दीखना बंद हो जाते हैं । कभी कभी तो पहचान का संकट हो जाता है । अया मैं सही दूकान पर भी आया हूं के नहीं । पर थोड़ा गौर करने पर दूकानदार की फोटो दीवार पर दीख जाती है नकली फूलों की माला से सजी हुई ।
ऐसे पीढियां बदलती हैं । अगली पीढी अपने काम की एक फोटो छांटकर दीवार पर लगा देती है और गुडविल चली आती है ।
ऐसे ही फोटो देखकर फोटो का ये किस्सा याद आ गया जो यहां जड़ दिया है ।( जोड़ दिया न कहकर जड़ दिया ही कहा है ।) इसमें और कोई गहरे निहितार्थ नहीं है ।
आजकल किस्से कई नए पुराने याद आ रहे हैं पर थोड़ा टाइम टेबिल सख्त है इसलिए ब्लॉग पर भी कम किस्से दर्ज हो रहे हैं और फेसबुक पर भी । फोटो और किस्सों का संतुलन भी थोड़ा गड़बड़ा रहा है , माने अनुपात गड़बड़ा रहा है । अब इत्ता कुछ मांड दिया तो इसके साथ एक फोटो तो बनती है ।
कोई न कोई फोटो तो जोड़ूंगा यहां , अगले एडिट में , अब ढूंढूंगा तब न जोड़ूंगा ।
अभी हाल तो प्रातःकालीन भ्रमण की तैयारी और क्या ?
जय भोलेनाथ ।🔔🔔
डूंगरपुर से सुप्रभात ।🌕
बुधवार २६ अप्रेल २०१७ ।
फ़ोटो फ़ाइल से ।
कहने को एक फ़ोटो और सही । सब काम अलटप्पे और क्या !
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अपडेट :
ये स्टेटस मैंने प्रोफ़ाइल पर जोड़ी ही थी कि तत्काल निर्मल शर्मा ने टिप्पणी की जो इस बात को दूर तक ले जाने वाली है । वो टिप्पणी यहां जोड़ता हूं :
" किस्सा मजेदार ।परन्तु दुकानों का कई बार भ्रम हो जाता है जैसे की हवामहल बाज़ार (सिरेड्योढ़ी बाज़ार )में जयपुरी रजाइयों की प्रसिद्ध दूकान क़ादरबक्स पटेल के नाम से है ।लेकिन कालांतर में पीढ़ियों के बढ़ने व् दुकानों के विभाजन बाद वहां इसी नाम की कई दुकाने हो गयी हैं ,आज पहचान मुश्किल हो गयी है कि असली दुकान कौन सी है । "
इस टिप्पणी के लिए तो निर्मल का विशेष आभार । यहां मुद्दा है कि सच्चा वारिस कौन । देखिए गुड़विल की बात दूर तलक जाती है के नहीं ? इस पर तो अलग ही पोस्ट बणेगी किसी दिन ।
डूंगरपुर से पुनः सुप्रभात और नमस्कार ।🙏
जय भोलेनाथ । 🔔🔔
बुधवार २६ अप्रेल २०१७ ।
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