Saturday, 22 April 2017

ननिहाल की याद :   ग़ांव का भाणजा  🙏

वासुदेव भाई और रामलल्ली भाभी को प्रणाम सर्व प्रथम  🙏



ननिहाल की याद : गांव का भानजा. 💐💐💐💐💐

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#बनस्थलीडायरी #sumantpandya


#ननिहालकीयाद


ये तो उन दिनों की ही बात है जब मैं बनस्थली में काम किया करता था .

मुरारी जी भाईसाब , मेहमान घर वाले , किसी विवाह समारोह में जाकर आये थे और किन्हीं पारीक साब के हवाले से कह रहे थे कि उन्होंने मुझे याद किया . मुरारी जी ने उनसे पूछा बताया," आप उन्हें कैसे जानते हैं ?", तो वो बोले बताए ," वो हमारे गांव के भानजे हैं . " पारीकों की बिरादरी और रिश्तेदारी में ही कोई विवाह था और इसी नाते मुरारी जी भाई साब वहां जाकर आए थे , चूंकि बनस्थली का जिक्र आ गया तो मेरे ननिहाल के उस व्यक्ति ने मेरा जिक्र सहज रूप से ऐसे कर दिया . मैं ने भी इस सन्दर्भ को स्वीकार कर लिया और इस प्रकार उस दिन मेरे ननिहाल की याद ताजा हो गई . इस संस्था से मेरे जुड़ाव की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी अम्मा रही .

कल हिमांशु * ने एक पोस्ट में अम्मा का जिक्र कर दिया और आप सब ने उसकी सराहना की तो स्वाभाविक रूप से मुझे अच्छा लगा और इस बाबत कुछ लिखने का मन किया . अम्मा का बार बार उस गांव जाने का मन करता था जहां उनका बचपन बीता था , हिमांशु भी थोड़ा बड़ा होने पर अम्मा के साथ मेरे ननिहाल हो आया था और हम तीन भाई तो समय समय पर वहां गए ही अम्मा के साथ भी और अम्मा के बाद भी .


मुरारी जी भाई साब की बात पर बड़े पुरोहित मामाजी और छोटे पुरोहित मामाजी और उन दोनों मामाओं के बेटे याद आ गए जो जयपुर में कोई काम से आते तो हमारे शहर वाले घर पर ही ठहरते और अम्मा उनसे कितने समाचार पूछती वो मुझे आज भी याद आता है . असंख्य भाई और बाद में भतीजे आते रहे वहां से उस जमाने में हमारा घर उनकी भुआजी का घर था और इसी नाते दूर किसी कस्बे में बसे किसी व्यक्ति के लिए मैं था उस गांव का भानजा .

एक छोटा सा प्रसंग बहुत बाद का है . गांव जाकर अम्मा की तबीयत काफी खराब हो गई . छोटा भाई विनोद ** 

 साथ था . अम्मा की हालत देखकर गांव के एक व्यापारी की मोटर किराए ली जो उन दिनों बांदीकुई में व्यवसायरत था पर उस दिन गांव में मौजूद था. किसी तरह जयपुर पहुंच कर अम्मा की चिकित्सा करवाई और अम्मा तब तो ठीक हो गई पर उसके कई वर्षों बाद वही व्यवसायी बापूनगर में हमारे घर के बाहर से जाते हुए रुका और पूछने लगा :


"भुआ जी कूं गयां कितेक बरस हो गया ?"

अर्थात अम्मा का स्वर्गवास हुए कितने वर्ष हो गए ?


 और तब उसके सवाल को रद्द करते हुए विनोद बोला :

" अंदर बैठी हैं , आ जाओ मिल लो ."


पर अम्मा को तो जाना ही था . तब ठीक हो गईं पर एक दिन वो भी आया जब नहीं रही अम्मा . अम्मा और ननिहाल की बहुत सी यादें हैं जो अब भी भुलाए नहीं भूलतीं  ।

प्रातःकालीन सभा स्थगित .

इति.

सुप्रभात .

Good morning.

सह अभिवादन  : जीवन संगिनी 

मंजु पंड़्या 

और

सुमन्त पंड़्या 

आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

23 अप्रेल 2015 .

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😊😊 अपडेट : जयपुर से आज शनिवार 23 अप्रेल 2016 .

--------------- आज फिर फेसबुक ने दिखाई है पिछले बरस की ये पोस्ट और मुझे लगता है ये पोस्ट फिर से दिखाऊं आप सब को साथ ही फिर इसे ब्लॉग पर भी प्रकाशित करूं , इस विषय में अपने मिलने वालों के सुझाव आमंत्रित हैं .

फिर एक बार दोहराऊंगा कि मेरी पोस्ट आपकी टिप्पणियों से समृद्ध होती है और मैं हूं कि समयाभाव के चलते समय पर आभार भी व्यक्त नहीं कर पाता , अब जो परिस्थिति है जो है .

मेरे ननिहाल का गांव उजड़ रहा है , वीरान हो रहा है , जल स्रोत सूख गए हैं .

ननिहाल के गांव की कहानी भारत के अन्य गांवों से भिन्न नहीं है .

घर परिवार में भी पीढियां बदल गईं अब मामाजी मामी का ज़माना नहीं रहा , अगली पीढ़ी में भी कोई कोई बहन भाई नहीं रहे - दुःखद .

इत्तफाक वासुदेव भाई और रामलल्ली भाभो जयपुर आए हुए हैं , आदेश ने उनकी तस्वीर ली है , पर ये भी गांव से कहां आए हैं ये भी दौसा में आ बसे . वही से आए हैं और मुझे दौसा बुलाते हैं . सब तरफ लोग गांव छोड़ कस्बों शहरों में जा बस रहे हैं . उनकी तस्वीर तो आपको दिखाऊंगा पर दौसा मेरा ननिहाल नहीं है , मैं तो अपनी बचपन की यादें ताजा करने गाँव ही जाना चाहता हूं जब भी चतुर्भुज नाथ अवसर देवें .

सुप्रभात .

प्रातःकालीन सभा स्थगित ...

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आज का अपडेट डूंगरपुर  से 

सब  कुछ विचार करके ये तय पाया कि इस पूरी चर्चा को ब्लॉग पर लिख दिया जाए  । ये कोई मेरे अकेले की कहानी नहीं हर घर की कहानी है । आपको अच्छा लगेगा । बताइएगा ज़रूर ।

जीवन संगिनी के साथ डूंगरपुर कैम्प आवास से :

जय चतुर्भुज नाथ । 🔔🔔

रविवार २३ अप्रेल २०१७ ।

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5 comments:

  1. ब्लॉग पर बहुत सही लिखा सर आपने ।फिर गांव की याद दिला दी। गांव उजड़ रहे हैं और जो उजड़ नहीं रहे हैं वह बहुत तेजी से अपना स्वभाव बदल रहे हैं ।असुविधाओं और मुफलिसी से निजात पाने के लिए लोग शहरों की ओर भाग रहे हैं और वहीं से आत्म केंद्रितता आयातित हो रही है लेकिन इसके बावजूद आपकी और हमारी पीढ़ी में गांव के लिए और वहां के रिश्तो के लिए कशिश बरकरार है ।आप समय समय पर व्हिसिल ब्लोअर की तरह इन सुप्त भावनाओं को जगाते रहते हैं। बहुत-बहुत शुक्रिया सर! मैंने आपके ब्लॉग पर भी टिप्पणी टाइप की थी लेकिन सही होने के बावजूद Google मेरा अकाउंट गलत बता कर टिप्पणी स्वीकार नहीं कर रहा है ।आपकी ही तरह मेरा भी तकनीकी नवाचार पहली बार में स्वीकार नहीं होता , अगली बार फिर कोशिश करके देखूंगी।

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  2. उपरोक्त कमेंट सज्जन पोसवाल का है । फेसबुक से मैंने लिया और यहां दर्ज किया है ।
    😊

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    1. ये गूगल क्यों अड़ंगा लगा देता है ? इसकी वजह से मेरे ब्लॉग पर कमेंट दर्ज नहीं हो पाते ।
      आगे से फिर प्रयास करके देखना तो ।
      Sajjan Poswal ।

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  3. सज्जन पोसवाल की तरह और लोग भी जो गांव के लिए अपनत्व अनुभव करते हैं यहां आवें और अपने मन की कहें । ये चर्चा लंबी चलाई जाकर एक अच्छा संवाद बन सकती है । संभावनाओं के लिए ये सब किया जाना चाहिए ।

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