#स्मृतियोंकेचलचित्र #निवाईडायरी #बनस्थलीडायरी
आज एक छोटी सी बात बताऊं आपको जो पिछले दशक की यादों से जुड़ी हुई है । यह बनस्थली - निवाई हलके की बात है ।
ये उन दिनों की बात है है जब बनस्थली में मेरा सेवा काल समाप्त हो चुका था और हम लोग गुलमोहर , जयपुर में आ बसे थे । महिमा की नियुक्ति हमारे बनस्थली में रहते ही निवाई के सरकारी सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में हो चुकी थी । जब तक हम लोग वहां थे महिमा बनस्थली से ही निवाई जा आया करती थी । बाद में अगले बरस एक समय ऐसा भी आया जब अल्प अवधि के लिए हम निवाई जा रहे । उस दौर की कई एक यादें हैं जो बताने लायक हैं । उन यादों पर बहुत कुछ कहा जा सकता है , पर आज समय कम है तो थोड़ा ही क़हूंगा और एक प्यारे दोस्त की बहुत ही रोमांटिक बात पर इस चर्चा का समापन करूंग़ा ।
बीच की अवधि की बात :
------------------ ये बताए बिना पूरी बात साफ़ न होगी अतः कुछ पूरक सूचनाएँ यहां जोड़ रहा हूं । जब हम लोग मय सामान जयपुर चले गए तो इधर आकर फिर रहने की कोई बात तो नहीं थी पर साब कुछ स्थान आपको वापस बुलाते ही हैं , निवाई उनमें से ही एक है उस क़स्बे से आज भी कम से कम मुझे तो बहुत लगाव है ।
इधर महिमा का विवाह हो चुका था । Anuj Bhatt अनुज मानेसर में काम करते थे और गुड़गाँव में रहते थे । थोड़े समय बाद नूनू जी भी आ गए और उन्हें साथ लेकर नौकरी का तालमेल बैठाने के कई एक प्रयोग हुए । इसी दौर की बात है कि महिमा ने निवाई बस स्टैंड के पास ही बस्ती में एक कमरा किराए ले लिया । बा हैसियत नूनू के नाना नानी हम दोनों भी निवाई जा रहे । आज की पोस्ट में उसी दौर की कुछ छोटी छोटी बातें हैं और एक है ख़ास बात ।
बात १.
सब कोई हमें बनस्थली वाला ही समझते थे । कौन माने कि हम तो निवाई वाले बन गए थे , चाहे थोड़े ही समय के लिए सही । अनजान लोग हमें कह जाते आप की बस आ गई , बस स्टैंड पर खड़ी है , जल्दी पहुँचो ।
निवाई में हम बहुतों को जानते थे , आख़िर बनस्थली में लम्बे रहवास का ये तो नतीजा होना ही था । पर इस अल्प अवधि में ये भी पता चला कि जिन्हें हम नहीं जानते थे वो भी हमें जानते थे । ये सब जानकर कित्ता अच्छा लगता है ये समझा पाना मुश्किल है ।
बात २
नूनू उस मोहल्ले में पहुँचकर सब का प्यारा बन गया था । बग़ल के घर से बच्चियाँ उसके साथ खेलने आ जातीं । मालिक मकान घर लौटने के बाद यदि कहीं बाहर निकलते तो नूनू को गोद में ले जाना ज़रूरी समझते । मकान मालकिन इसे अपने साथ ले जातीं , इसको पास बैठाकर अपना काम करती रहती । वो ही रोज़मर्रा के घर के काम काज ।
मैं नूनू को लेकर घर से निकलता कुछ तमाशा दिखाने और स्टार प्रोपर्टीज के चबूतरे पर जा बैठते हम लोग । नूनू बमुश्किल साल भर का था हम नाना दोहिता घर से निकलते , ये मेरा हाथ छुड़ाकर मेरे लिए अनजान घर में घुस जाता । वो लोग इसे पहले से जानते होते और इसके साथ मेरा भी आव आदर करते ।
मोहल्ले की ऐसी आपसदारी छोटी जगहों पर ही होती है , महानगरों में तो ऐसा कम ही देखने को मिलता है ।
बात ३ : ख़ास बात 😀
ये बात सबसे ख़ास है । निवाई में हम जिस घर में रह रहे थे उसके मालिक मकान थे विमल जैन । वैसे उस मोहल्ले में विमल जैन भी सात बताए पर अपणा तो दो से ही वास्ता था , एक ये मालिक मकान विमल जी और दूसरे वो जो बनस्थली विद्यापीठ के लेखानुभाग़ में काम करते थे , मेरे पूर्व परिचित , बाक़ी पांच से अभी अपण को क्या मतलब ।
अब इन विमल जी की , जोड़े की ख़ास बात :
पति पत्नी का एक दूसरे को हेला पाड़ने का बड़ा प्यारा तरीक़ा था । विमल जी को यदि श्रीमती को पुकारना होता तो वो आवाज़ देते सुरभि को और इसी प्रकार यदि श्रीमती को पति को पुकारना होता तो वो आवाज़ देतीं सौरभ को । प्रभु जिनेंद्र की कृपा से सौरभ और सुरभि इनके बेटा बेटी थे और दोनों ही अपनी अपनी उच्च शिक्षा के लिए घर से बाहर थे ।
पुराने लोग ए जी , ओ जी ऐसे कहकर एक दूसरे को हेला पाड़ते हैं उसका कित्ता सुंदर विकल्प बनाया था इनने हम दोनों को तो बहुत प्यारा लगा ये तरीक़ा । अब आज की पीढ़ी के छोरे छोरी तो क्या ही समझेंगे इस बात को !
उस मधुर समय और समुदाय को याद करते हुए @डूंगरपुर प्रातःक़ालीन सभा स्थगित ........
जय भोले नाथ : 🔔🔔
शुक्रवार २१ अप्रेल २०१७ .
नोट : फ़ाइल चित्र भी जोड़ूंगा ।
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Very nice
ReplyDeleteआभार 🌷
Deleteआभार वसुधा । ब्लॉग पर सराहाना पाकर अच्छा लगता है ।
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