Monday, 30 October 2017

भरोसा बात का

गये दिनों ब्रज प्रदेश में घूमकर आया तो एक पुराना प्रसंग याद आ गया :

एक नगर के मथुरा मिष्ठान भंडार में एक प्रतियोगिता आयोजित हुई ।चुनौती थी बीस लीटर दूध पीने की । जो पी पाने  में सफल होता वह पुरस्कृत होता  और विफल होते वह दूध का मोल चुकाते  । पुरस्कृत  होने की नौबत आ नहीं रही  थी : लोग पांच सात लीटर  दूध पीकर ठंडे हुए जा रहे थे और मात खा रहे थे ।

एक मरगिल्ला सा आदमी बैठा बैठा देख रहा था  । थोड़ी देर के लिए वह उठकर  चला  गया और फिर वापस आया :

मैं पीउँगा  बीस लीटर दूध ,  ले आओ ।

दूध लाया गया और वह पीने लगा । लोग दम साध  कर  देखते रहे । आशा नहीं थी कि  वो पी पाएगा  पर तब उनके आश्चर्य  की  सीमा न रही जब वह  चुनौती के अनुसार दूध पी गया । अब जो संवाद हुआ वह इस प्रकार था :

आपको देखकर भरोसा नहीं होता कि आप बीस लीटर दूध पी सकते हैं  ।

भरोसा  तो मुझे भी नहीं था तभी  तो मैं  बीच में वृंदावन  मिष्ठान भंडार गया वहां बीस लीटर  दूध पीकर आया , जब भरोसा हो गया  तब  यहां आया ।

लोग चमत्कृत हुये  ! वो  परस्कृत हुआ ।


पुराना क़िस्सा आज ब्लॉग पर प्रकाशित —

जयपुर 

मंगलवार ३१ अक्टूबर २०१७ .

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Sunday, 29 October 2017

“ टाई आप बांध दो ! “  : बनस्थली डायरी 

एक बहुत पुरानी घटना याद हो आई । अपना आलम ये था कि बनस्थली में आ गए - बनस्थली के हो गए । खादी का बन्द गले का कोट पहन लिया और हो गए तैयार । शाम आठ बजे के आसपास सभाएं भी बहुत बार होतीं तो शाल ओढ़ लेते । कम सर्दी में जवाहर जाकट खूब काम आती । ऐसी ही एक सर्दी की शाम एक दोस्त (वय में मुझसे बड़े ) के बेटे की निकासी में सम्मिलित होने जा रहा था । रवीन्द्र निवास से निकल कर ज्यों ही सड़क पर आया देखता क्या हूँ कि एक साथी प्राध्यापक , जो एक छोटे महानगर से आये थे और हमारे पहनावे में नहीं ढले थे ,चले आ रहे हैं । सूट पहन रखा है , आक्सफोर्ड शूज भी पहन रखे हैं मगर टाई हाथ में है , जैसे कभी लोग मफलर हाथ में रखते हैं कि वक्त जरूरत काम आये । मैंने बिला वजह ही हस्तक्षेप किया - 

“   टाई हाथ में लेकर क्यों जा रहे हो ? “

 उत्तर में उन्होंने बताया कि उन्हें टाई बांधना नहीं आता । एक तीसरे का नाम लेकर बोले कि उससे बंधवाएगे ।

“   टाई तो मैं ही बांध दूंगा “ 

 मैं बोला । हालांकि मेरी सूरत देखकर उन्हें शायद भरोसा नहीं होगा कि इस पहनावे में मेरा कोई हस्तक्षेप हो सकता है । पर वो मान गए और वहीँ टाई हाथ में देकर बोले , लो आप बांध दो ।

मैं बोला ,  “अब यहां सड़क पर ही टाई बंधवाओगे क्या ? मेरा घर पास ही है वहां लौट चलते हैं ।”

मित्र 44 रवीन्द्र निवास में मेरे साथ आ गए ।

 कोट उतारो , कालर खड़ी करो आदि निर्देशों के बाद मैंने प्रश्न किया ,

“ सिंगल नाट बांधूं या डबल नाट ?”

 आप ही तय करो , वो बोले । खैर मैंने टाई बांध दी , उन्हों ने वापिस कोट पहन लिया और वहां से चल पड़े अरविन्द निवास की ओर जहां शामियाने में लोग इकठ्ठा हो रहे थे । बाजे वाले आ चुके थे , निकासी की तैयारी थी । वहां जाकर कुर्सिओं पर बैठ गए ।

वर का मामा पोशाक लेकर आया था । वर अन्दर तैयार हो रहा था । मामा बाहर आया बैठे लोगों पर नजर दौड़ाई और मेरे टाई वाले साथी को बुलाकर अन्दर ले गया । माजरा समझ कर साथी वापस आये , मुझसे बोले ," सुमन्त जी आप अन्दर चलो ।"

कहने की आवशकता नहीं कि वो मुझे ही क्यों ले गए ।

इन में से कई मुख्य पात्र अब रहे नहीं पर वे दिन और वे लोग स्मृतियों से कैसे जा सकते हैं ?

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पुराना क़िस्सा है , आज ब्लॉग पर दर्ज .

जयपुर 

सोमवार 

३०  अक्टूबर  २०१७ .

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चाकलेट की घर वापसी  - जयपुर डायरी 

चॉकलेट की घर वापसी : 

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#चॉकलेट_की_घर_वापसी ______________________


ये जन्मदिन के चक्कर में बहुत मटरगश्ती हो गई अब आज कोई न कोई पोस्ट होनी चाहिए ऐसा सोचकर आज भोर में लिखने बैठा हूं . इस वृत्तांत का प्लॉट जयपुर का है जो एक डॉमेस्टिक पैट से वास्ता रखता है . चित्र भी जोड़ने का प्रयास करूंगा जिससे बात समझाने में आसानी हो .

इससे जुडी हुई अन्य बातें यथा स्थान आ ही जाएंगी . सामाजिक सरोकारों से जुडी इस कथा में भी शायद कोई सन्देश मिलेगा ऐसा अनुमान है .

घरेलू पैट मुझे हमेश से ही आकर्षित करते हैं . जयपुर में चाहे महेंद्र की डॉली हो , सोगानी जी का स्कूपी हो , कौमुदी जी की वीनस हो या हो विशाल का किप्पर मैंने हमेशा से ही इनके साथ लाड लड़ाया . 

पीछे मुड़कर देखता हूं तो बनस्थली की याद आ जाती है और उल्लेख करना पड़ता है वर्मा जी के शेरू , नाडकर्णी जी के बोनी और धर्म किशोर जी के गोल्डी का जो अपने समय में परिवार के सदस्य की भांति रहे और मेरे प्यार के हिस्सेदार रहे अब इनमें से कोई भी नहीं बचा इनकी स्मृति ही शेष है .


जयपुर की बात :

~~~~~~~~~ हमारे घर में गए दिनों तामीर के काम की चौकीदारी का काम सीताराम देख रहा था . एक रात की बात कि लैब्राडोर प्रजाति का एक पैट सीताराम की पनाह में आ गया और लगा कि वह अब कहीं जाने को तैयार नहीं है . कठिनाई यह आई कि वो केवल सीताराम की बात माने और बाकी सब पर भोंके . घर आया मेहमान भूखा न रहे ऐसा सोचकर सीताराम ने अपनी बनाई रोटी भी इस अज्ञात लैब्राडोर को ऑफर की दूध भी पिलाने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ वो एक विशिष्ट प्रकार के बिस्किट खाने का आदी था . भला हो छोटे सोगानी का जो स्कूपी के बिस्किटों में से बिस्किट लेकर आया और तब जाकर इस आगंतुक का डिनर हो पाया . अब फिकर ये कि मेहमान की रात भर हिफाजत कैसे हो और गली के आवाराओं से इसे कैसे बचाएं . हारकर सीताराम ने इसे अपनी खाट के पाए से एक रस्सी से बांध दिया . सीताराम के हाथों तो इसे बंधना भी मंजूर था वो तो आया ही सीताराम की पनाह में था सो उसे सबकुछ मंजूर था .


सुबह हुई :

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सीताराम की पनाह में रातभर तो ये आगंतुक आराम से सोया पर सुबह हलचल तब हुई जब दक्षिण दिशा से एक नवयुवक फटफटिया दनदनाता आया और आवाज देने लगा , “ चॉकलेट. .. चॉकलेट….” तब मेहमान ने भी वाकफियत दिखाई लगा ये इसी के परिवार का है और परिजन ने सुबह जाकर सुध ली है . पर देखो तो सही ये युवक सीताराम की ही गलती बताने लगा कि उसके चॉकलेट को रात को बांधा क्यों . मेहमान का नाम भी तभी उजागर हुआ . मैं होता तो इस आगंतुक को एक फटकार लगाता कि अपने पैट को उसने रात को ही सम्भाला क्यों नहीं पर खैर विनोद सीताराम की हिमायत में बाहर निकलकर गया और कहा उस फटफटिया वाले को कि एक तो रात भर तुम्हारे पैट की हिफाजत की और तुम हो कि…. खैर .


अंत भला तो सब भला सुबह चॉकलेट गया अपने घर परिजन के साथ .


चित्र में बाएं से दाएं क्रमशः 1 सीताराम 2 चॉकलेट 3 स्कूपी .

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तस्दीक :. Vinod Pandya

समीक्षा ~ Suman Parmar

इति......

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सुप्रभात .

प्रातःकालीन सभा स्थगित.. 

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सुमन्त पंड्या.

सह अभिवादन : Manju Pandya

@ आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

30 अक्टूबर 2015 .

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दो बरस पुराना क़िस्सा आज ब्लॉग पर दर्ज 

जयपुर 

सोमवार ३० अक्टूबर २०१७ .

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Saturday, 28 October 2017

उपकरण सफ़ाई  — जयपुर डायरी 

जयपुर से नमस्कार 🙏 


गए दिनों उपकरणों की सफ़ाई का बीड़ा उठाया था . लुब्बोलुबाब ये कि कुछ भी नहीं हो पाया .

अळसेटा बहुत है : ज़रूरी चीज़ें ढूंढ़ने में दिक़्क़त होती है और किसी चीज़ को ग़ैर ज़रूरी मानकर हटाने से पहले दस बार सोचता हूं : ये ही मेरी समस्या है .

सोशल मीडिया पर उपस्थिति दर्ज कराने को अभी हाल प्रज्ञा का चार साल पहले बनाया एक स्केच यहां जोड़ता हूं और अभी हाल के लिए सफ़ाई अभियान स्थगित करता हूं .

प्रातःक़ालीन सभा स्थगित .....


जयपुर 

रविवार २९ अक्टूबर २०१७




Wednesday, 25 October 2017

नो मोर टल्लम टल्ला 😔😔

सुप्रभात , नमस्कार 🙏


नो मोर टल्लम टल्ला 😔

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“ ये पुरानी फ़ोटो क्यों चला देते हो दुबारा ?”

“ फ़ोटो डालने की इत्ती जल्दी क्या थी ?”


ये कुछ टिप्पणियाँ हैं जो रोज़ ही सुननी पड़ती हैं मुझे पर क्या करूं गए दिनों कुछ ऐसा ही हो गया कि इबारत रही कम और फ़ोटोएं रही ज़्यादा अपनी टाइम लाइन पे .

वो पहले कभी ऐसा भी हुआ था कि फ़ेसबुक कई दिनों तक फ़ोटो जोड़ने और टैग करने पर ऐतराज कर देता था पर बाद में वो मामला सुलझ गया था . ख़ैर वो मामला तो सुलझ ही गया था पर मैंने खीजकर स्टेटस लिखी थी —

“ क़ुण बोया , कुण काटिया कुण कै लागी लाय  ? “


पर अब तो अच्छे दिन आ गए हैं , ऐसा कोई ऐतराज नहीं है . फिर भी बात याद आ गई तो वैसे ही बता दी है .


फिर अब क्या ?

अब ये ही कि ये कोरी फ़ोटो दिखाकर टल्लम टल्ला नहीं करूंग़ा और इबारत ज़्यादा ज़्यादा लिखूंग़ा .अब देखो जितना सम्भव हो जाय .


गुलमोहर , जयपुर 

गुरुवार २६ अक्टूबर २०१७ .

Tuesday, 24 October 2017

जयपुर डायरी — गुरु चेला संवाद  

पंडित जी का चेले से संवाद -

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“ छोरा पठ्ठा तू ज्यां ज्यां न पंडत समझै छै मैं सै न मूरख समझूं छूं ।”


“ म्हाराज मैं तो थां नै भी पंडत ही समझूं छूं ।”

गुरुजी निरुत्तर !!!!

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पंडित जी का चेले से संवाद ---

“ छोकरे पठ्ठे तू जिन जिन को पंडित समझता है मैं सब को मूर्ख समझता हूँ ।”


“ महाराज मैं तो आपको भी पंडित ही समझता हूँ ।”

गुरूजी निरुत्तर !!!!!

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क़िस्सा आज ब्लॉग पर प्रकाशित 🔔🔔

जयपुर 

बुधवार  २५ अक्टूबर २०१७ .

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स्मृतियोंकेचलचित्र  — अपण सोशल मीडिया पर  😀

गुलमोहर से सुप्रभात 🌹🌹

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आप सब को यह जानकर अपार हर्ष का अनुभव होगा कि बावजूव सारी विघ्न बाधाओं के मैंने सोशल मीडिया पर बने रहने का निश्चय किया है .

ये उपस्थिति वैसे तो स्वान्तःसुखाय है , हम हैं और जागे हैं ये सब को बताए देते हैं यहां आकर , आपको हमारी उपस्थिति से यदि कोई कंपनी मिलती है तो ये बाई प्रोडक्ट है इस उपस्थिति का कोई किसी पर अहसान नहीं है .

अब कुछ अट्ट पट्ट बातें :

1

रात को जो लोग अनिद्रा के शिकार होते हैं उन्हें सोये हुए सब लोग अपने दुश्मन जैसे लगते हैं ये मानव स्वभाव है और जब लोग जागते हैं तो मित्रवत लगने लगते हैं . इससे अरस्तू की पुरानी कही बात की ही पुष्टि होती है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है .

सोशल मीडिया एक ऐसा मंच है जहां चौबीसों घंटे जगार रहती है और ये सामाजिकता बरकरार रह सकती है . पर फिर वो ही बात लोग भी तो सब तरह के हैं समाज में ही असामाजिक प्राणी भी पाए जाते हैं , रात बिरात खोटी भी कर सकते हैं .


भोर में जागने वाले प्राणी भी इसी समाज में पाए जाते हैं , मैं भी उनमें से एक हूं , ये प्राणी कई प्रकार के होते हैं जैसे मंदिर जाने वाले , घूमने जाने वाले , बागों में जाकर व्यायाम और हा हा ठी ठी करने वाले इत्यादि इत्यादि . अरे तो तू कौन है सुमन्त ? मेरा प्रयास होता है बागों में जाकर और वहां बैठकर जाने अनजाने लोगों से अटकना और इसी सामाजिकता का विस्तार करना . देखते हैं आज क्या ढब बैठता है .


स्टेटस होने को तो अधूरी रही पर आज फिर मोती पार्क जाने का समय हो गया तो सब बात स्थगित करता हूँ , कोशिश होगी कि कोई और स्टेटस ठेल देवूं आगे से लौटकर .

3

अब कल से मोबाइल फोन बंद है तो हुआ करे कोई बागों में जाना बंद थोड़े करेंगे , रजनीश कुछ भी कहवे . आखिर तो बागों में बहार है .


4

प्रातःकालीन सभा का की नोट मैंने डाल दिया है अब आप जो चाहो अटको यहां सामाजिकता की यही दरकार है और क्या ?

चलता हूं , लौटकर बात में बात मिला दूंगा

अब कुछ न कुछ तो करना ही है .


सुमन्त पंड्या

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

मंगलवार 25 अक्टूबर 2016 .

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आज  ये स्टेटस ब्लॉग पर प्रकाशित  —

जयपुर

२५ अक्टूबर २०१७ .

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स्मृतियों के चलचित्र —पचास साल पहले अपण ब्रह्मपुरी में .


पहले पहल कल की बात --

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कल पारिवारिक कारणों से उदय ब्रह्मपुरी गया था और अपने ससुराल में पुराना एल्बम देख रहा था , वहां उसे कुछ दुर्लभ फ़ोटोएं देखने को मिली . ये ही तो कमाल है आज के डिजिटल माध्यम का कि उदय ने वहीं से वो फ़ोटोएं हम लोगों को भेजीं , उदय तो फिर शाम को आकर हम लीगों से मिला . मैंने देखा कि इसमें से एक फ़ोटो में किनारे पर मैं भी खड़ा हूं . ख़ास बात ये कि लगभग सभी पात्रों को तो हम पहचान ही गए मेरे ठीक बराबर खड़े राज कुमार भी पहचान में आ गए .


अब दो साल पुरानी एक बात --

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एक दिन राज कुमार मेरे बराबर बैठे थे और ज़ित्ता सा मुझे आता था मैंने उनके साथ सेल्फ़ी ली थी . इस सेल्फ़ी को उनको सौंपने का वहां कोई उपाय नहीं था तो मैंने ब्राह्मपुरी के कुछ बच्चों को ये फ़ोटो भेजी . साथ ही फ़ोटो को " सेल्फ़ी विद राज कुमार " शीर्षक से साझा भी किया . मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे मित्र Govindram Kejriwal का इस सेल्फ़ी बाबत कहना था कि मैं इन्हें राज कुमार कह रहा हूं जबकि ये तो बादशाह लगते हैं . सच भी है अब ये किसी बादशाह से कम नहीं हैं .


अब मैं दोनों ही फ़ोटोएं यहां जोड़ता हूं १ . पचास साल पुरानी और २. दो साल पुरानी सेल्फ़ी . और ३. एक और फ़ोटो पहली फ़ोटो से एडिटेड जिसमें मैं और राजकुमार साथ खड़े हैं .


विशेष सराहना Udai Pandya.

जयपुर 

रविवार २२ अक्टूबर २०१७ .

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ब्लॉग पर यथावत प्रकाशित 

मंगलवार  २४  अक्टूबर २०१७ .

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Sunday, 22 October 2017

बनस्थली डायरी __ ब्रह्ममंदिर पर पिकनिक - एक बिसरी हुई याद . 

ब्रह्म मंदिर पर पिकनिक : एक बिसरी हुई याद 💐

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#बनस्थलीडायरी #स्मृतियोंकेचलचित्र #sumantpandya


जो लोग बनस्थली को जानते हैं उन्हें बताने की जरूरत नहीं कि बनस्थली में चिरकाल से ब्रह्म मंदिर एक ऐतिहासिक स्थान रहा है , बाद में तो यहां शास्त्री जी और उनकी जीवन संगिनी का स्मारक भी बना , उनके जीवन काल में ही मंदिर तो बनकर तैयार हो गया था जो शास्त्रोक्त स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है पर मंदिर के पहले से ही वहां एक कुटिया है जिसका ही मूलतः नाम जीवन कुटीर रखा गया था . इस कुटिया का विशेष महत्त्व इसलिए है कि पंडित शास्त्री ने यहीं अपना पहला आवास बनाया था , बाकी सब संरचनाएँ बाद की हैं , उस समय के कुछ ऐतिहासिक पेड़ और एक कुआ आज भी वहां हैं .


पिकनिक :

******* हर जमाने में ये स्थान पिकनिक के लिए चयनित स्थान रहा , अतिथि के लिए दर्शनीय और श्रद्धा सुमन अर्पित करने का स्थान रहा . मंदिर परिसर बनने से विभिन्न व्रत त्योंहारों पर यहां मेळे खेळे का सा भी वातावरण होने लगा .


अब एक छोटा सा किस्सा

******************** एक पिकनिक उस जमाने की पचास - पचपन पार महिलाओं की भी हुई एक बार . उसमें होना क्या था सब प्रौढ़ाएं घर से जाजम और खाना लेकर गईं , कुछ समय मनोरंजन कर बिताया , साथ बैठकर खाना खाया और घरों को लौट आयीं .

इस पिकनिक की ख़ास बात ये थी कि छोरी छापरी महिलाएं इसमें शामिल नहीं की गईं , ये थी ," सीनियर लेडीज पिकनिक . "  

अब चूंकि कथानक में इनका विशेष उल्लेख है अतः मैं तीन प्रौढ़ाओं का संक्षिप्त परिचय दूंगा :

1  

मिसेज नाग , ये नाग साब की पत्नी थीं , नाग साब रिटायर होकर बनस्थली में काम कर रहे थे पहले विधान सभा में डिप्टी सेक्रेटरी थे .

2

मिसेज राव , ये डाक्टर राव की पत्नी थीं , डाक्टर साब सीनियर मेडिकल आफिसर थे कमला नेहरू अस्पताल में . बाय द वे राव साब पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के साढू भाई थे .

3

मिसेज पटवर्धन , ये प्रोफेसर पटवर्धन की पत्नी थीं , प्रोफेसर संगीत के विभागाध्यक्ष थे .


अब किस्सा ख़ास :

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अपनी पारी आने पर मिसेज नाग ने तल्लीनता से एक गाना सुनाया , गाने के बोल थे :


" धीरे धीरे बोल कोई सुन ना ले ...... सुन ना ले.."


अब यहां पूरक जानकारी मुझे जोड़नी पड़ेगी कि नाग साब बहुत ऊंचा सुनते थे और उन्हें हीयरिग एड लगानी पड़ती थी .


मिसेज राव को ये गाना सुनकर सहेली को छेड़ने का मौका मिल गया और उन्होंने मिसेज नाग को टोका :

" पर धीरे धीरे बोलोगी कैसे ? नाग साब तो इतना ऊंचा सुनते हैं ." 😊


नोट :

अब मैं कौनसा वहां मौजूद था , मुझे तो ये ऐतिहासिक किस्सा मिसेज पटवर्धन ने सुनाया था . कहने की आवश्यकता नहीं इन सभी परिवारों से हमारा अपनत्व था .


वे दिन और वे लोग और उस जमाने की बनस्थली बहुत याद आते हैं 


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आज ब्लॉग पर प्रकाशित 

जयपुर 

सोमवार २३ अक्टूबर २०१७ .

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Friday, 20 October 2017

पोस्ट आफिस का लोप : ठेकेदारी का उभार -- शेष भाग .

पोस्ट ऑफिस का लोप : ठेकेदारी का उभार ~ भाग तीन .

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#पोस्ट_ऑफिस_का_लोप


     इस शीर्षक से पहली और दूसरी पोस्ट में मैंने ये बताने का प्रयास किया था कि बापू नगर के जनता स्टोर परिसर से पोस्ट ऑफिस को नदारद देखकर मुझे अटपटा लगा था और मैं वहीँ के कूरियर सेवा एजेंट कैलाशजी के पास पहुंचा था इस लोप के बाबत जानने को . चूंकि कैलाश जी के साथ बैठकर थोड़ी देर में बहुत सी बातें हुई थीं तो उनका भी उल्लेख करूंग और डाक तार विभाग से अपने पुराने वास्ते का भी .


क्या क्या बात हुई :

------------------ बहुतेरी बातें हुईं जिनमें से कुछ एक बताता हूं .

 मैं ने कहा कि जिस जगह पोस्ट ऑफिस था इमारत थी तो बहुत जर्जर अवस्था में पर मरम्मत हो जाती और चलता रहता पोस्ट ऑफिस तो बढ़िया रहता . इस पर कैलाश जी बताने लगे :

" मकान मालिक और सरकार के बीच मुक़दमा चल रहा था सर , सरकार हार गई और मालिक मकान जीत गया इसलिए खाली करना पड़ा पोस्ट ऑफिस को यहां . "

 कैलाश जी ये भी बोले :

" मेरा भी खाता था इस पोस्ट ऑफिस में , आप यूनिवर्सिटी चले जाओ अगर अपना खाता संभालना है तो , वहां के इंचार्ज पोस्ट मास्टर भी बहुत अच्छे हैं . आपका काम हो जाएगा . " 

अब उनसे अपनी बाते साझा करना मुझे सहज लगा , मुझे लगा हम एक ही कश्ती में सवार हैं .

मैंने उनको बताया कि गाढ़े वक्त के लिए रुपल्ली दुपल्ली इस पोस्ट ऑफिस में रख छोड़ी थी अब जवाहर लाल नेहरू मार्ग जैसी व्यस्त सड़क पार करके जावूं वहां पर , जाने साबुत वन पीस में पहुंचूं के नहीं . इस पर कैलाश जी कहने लगे कि आगे के लिए गांधीनगर पोस्ट ऑफिस में खाता ले आना बेहतर रहेगा .

हम भी तो उस जमाने के लोग हैं जो पोस्ट ऑफिस की जमा को ज्यादा सुरक्षित मानते आए हैं और पोस्ट मास्टरों के पुराने हिमायती हैं . बैंकों का कारोबार जरा और तरह का होता है . पोस्ट ऑफिस तो बैंकों वाला काम करने के अलावा और बहुत से काम करते आए हैं .

अब पोस्ट ऑफिस तो यहां से गया ही मान लिया गया पर ये बात तो अभी और चलेगी ....

प्रातःकालीन सभास्थगित ...

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सुप्रभात .

सह अभिवादन : Manju Pandya

सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया, बापू नगर , जयपुर .

20 अक्टूबर 2015 .

आज  ब्लॉग पर प्रकाशित 

जयपुर  २० अक्टूबर २०१७ .

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Wednesday, 18 October 2017

उस दिन कहना भूल न जाना 

भूल न जाना उस दिन कहना 😃😃


हुआ क्या था कि पिछले दिनों भिवाड़ी में विक्रम संवत की तिथि के अनुसार मेरा जन्मदिन मनाया गया और उसी दिन शाम को दोस्तों और बच्चों ने मिलकर धूम धड़ाका भी करवा दिया . उस दिन से मित्रगणों की ओर से मेरी फ़ेसबुक टाइम लाइन पर बधाई संदेश आ रहे हैं और मैं यथा सम्भव आभार भी व्यक्त कर रहा हूं .


अब और क्या ?


वो बात इत्ती सी है कि अब ईसवी सन के हिसाब से २७ ( सत्ताईस ) अक्टूबर को मेरा जन्मदिन पड़ेगा , उस दिन हैप्पी बर्थ डे कहना आप भूल न जाना .

इधर एक अपनी फ़ोटो और एक ब्लॉग पोस्ट का लिंक भी यहां जोड़ने का प्रयास करता हूं .


बुधवार १८ अक्टूबर २०१७ .


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http://ravindraniwassegulmohar.blogspot.in/2017/01/blog-post.html

Monday, 16 October 2017

पोस्ट आफिस का लोप : ठेकेदारी का उभार .

पोस्ट ऑफिस का लोप : ठेकेदारी का उभार .

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#पोस्टऑफिस_का_लोप

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पिछले दिनों बापू नगर के जनता स्टोर चौक में ये कोना देखकर बहुत आघात लगा मन को . जितनी बातें मन में आई गईँ वो ही आपसे साझा करने की गरज से ये स्टेटस मांड रहा हूं .


              वैसे गया कोई और काम से था पर जब इधर देखा तो बड़ा अटपटा लगा , अरे यहां तो पोस्ट ऑफिस हुआ करता था . दिन में लोग यहां डाक सम्बन्धी काम से लगाकर बचत खातों के लेन देन तक के लिए आया जाया करते थे और अब देखो पोस्ट ऑफिस का तो बोर्ड ही नदारद है और यहां कोई सूचना भी लगी हुई नहीं है . क्या पोस्ट ऑफिस भी आए दिन कारोबार बंद कर भाग लेने वाली फाइनेंस कंपनियों की तरह भाग लिया यहां से ? मेरी उत्सुकता जागी , क्या करूं किससे पूछूं , आसपास के कारोबारी दूकानदार अपने अपने कार्य व्यापार में लगे हुए उन्हें अपने ग्राहकों से मतलब या मेरी जिज्ञासा से . पर मुझे तो पता करना ही करना कि आखिर पोस्ट ऑफिस का क्या हुआ . हालांकि और दूकानदारों से भी मैं अपनी ' राहुल के ताऊ ' हैसियत के दम पर अटक ही सकता था पर मैं सोचने लगा कोई भला व्यक्ति और उसका स्थान देखकर बैठकर बात करूं कि आखिर पोस्ट ऑफिस का लोप क्योंकर हुआ .

इसी चर्चा और पोस्ट ऑफिस संबंधी विस्तृत शोध आधारित स्टेटस की एक सिरीज बनेगी पर अब समय नहीं है अतः चर्चा को विराम देना पड़ेगा .

ये चर्चा पोस्ट ऑफिस और उससे जुड़े सामाजिक सरोकारों तक जाएगी पर थोड़ा समय तो मिले .


क्या कहा ," ये राहुल के ताऊ का क्या चक्कर है ?"


 नहीं नहीं वो भी बताऊंगा अगर आपको पहले से पता नहीं है . न तो पुरानी पोस्ट फिर साझा कर दूंगा पर अभी हाल इजाजत दीजिए .

प्रातःकालीन सभा स्थगित ....

सुप्रभात .

सह अभिवादन : Manju Pandya

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सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर . जयपुर .

16 अक्टूबर 2015 .

आज ब्लॉग पर प्रकाशित  भाग एक 

जयपुर 

१७ अक्टूबर २०१७ .

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पोस्ट ऑफिस का लोप : ठेकेदारी का उभार ~ भाग दो .

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#पोस्ट_ऑफिस_का_लोप

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      कल भोर में इस बाबत लिखना शुरु किया था पर बात अधूरी छोड़नी पड़ी मजबूरी थी इसलिए . पर कुल मिलाकर अच्छा ही हुआ . आगे की बात यों तो टिप्पणियों में आ गई . उजली तस्वीर मेरे दोस्त सुभाष ने बता दी और और यहां पोस्ट ऑफिस की इमारत की क्या हालत थी ये बात मेरे भतीजे चक्रपाणि ने बता दी . ये पोस्ट ऑफिस यूनिवर्सिटी के पोस्ट ऑफिस में जा मिला ये बात तो आपको पता लग ही गई अब इसमें बताने को भला क्या बचा . महिमा ने भी तत्काल पूछा था कि फिर पोस्ट ऑफिस गया कहां तो उसको पता लग ही गया होगा .


अब अच्छा तो ये होता 

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कि ये जनता स्टोर का पोस्ट ऑफिस जिस पोस्ट ऑफिस में खप गया वहां हो आता , वहां की भी तस्वीर उतार कर लाता और तब आगे की पोस्ट लिखता तो बेहतर होता , पर वो संभव नहीं हुआ और इस रंबाद को छेड़ा है तो आज भी कुछ बात तो बनानी है इस लिए उस घड़ी की ही बात करता हूं जब मैं जनता स्टोर के उस कोने में था जहां से हुआ पोस्ट ऑफिस का लदान मुझे बुरा लग रहा था . पोस्ट ऑफिस की शाखाएं बढ़नी चाहिए या कि सिमटनी चाहिए सवाल तो ये है ,खैर गया यहां से पोस्ट ऑफिस और अब यहां आने का नहीं , इससे वरिष्ठ नागरिकों को सुविधा थी उसकी बात तो खैर जाने दीजिए .


नए ठेकेदार :

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पते की बात ये है कि डाक विभाग जिस काम के लिए जाना और सराहा जाता था , कहीं कहीं आज भी सराहा जाता है उसका पैसाव नगर सभ्यता में कम होता जा रहा है और जो नए ठेकेदार गली गली में दिखाई देने लगे हैं वो हैं कूरियर कंपनियों के एजेंट . जिस कोने की तस्वीर मैंने कल चस्पां की थी उसमें इस हाथ को पोस्ट आफिस की त्यागी हुई दूकान है और उस हाथ को एक फोटोस्टेट और कूरियर सेवा की दूकान है . पोस्ट ऑफिस के लोप बाबत मेरी शोध वहीँ से प्रारम्भ हुई . बात वहीँ से शुरु हुई 


संवाद ज्यों का त्यों :

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   आप इस दूकान में कर्मचारी हैं या मालिक हैं ?


   जी मालिक हूं .


  आप से एक बात पूछनी थी , ये पड़ोस में जो आपके दुश्मन थे वो दूकान 

   बंद करके कहां चले गए ?


   आप पोस्ट ऑफिस की बात कर रहे है साब तो वो तो यूनिवर्सिटी कैम्पस में चला गया .


  अस्थाई रूप से गया या हमेशा के लिए चला गया ?


  उसमे मर्ज हो गया साब .

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 इस प्रकार बात शुरु हुई कैलाश जी से और परिचय हुआ तो पता चला इनकी तो बनस्थली में ससुराल भी है और आपणो रेडियो के दफ्तर में इनके साले आज भी काम करते हैं .

कहां कहां मिल जाते हैं अपने लोग बशर्ते आप उन्हें अपना मानें ....


बहुत बात हुई उनसे .....


अनायास समयाभाव के चलते प्रातःकालीन सभा स्थगित ....

बातें और भी बताऊंगा . क्रमशः ....

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पात्र उल्लेख :

चक्रपाणि : Chakrapani Sharma

सुभाष : Subhash Mathur

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सुप्रभात.

सह अभिवादन : Manju Pandya


सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

17 अक्टूबर 2015 .

आज ब्लॉग पर प्रकाशित 

जयपुर 

१७ अक्टूबर २०१७ .

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Wednesday, 11 October 2017

हजामत की ज़रूरत : भिवाड़ी डायरी .

सुबह उठा तो ऐसी सूरत . आईने में सूरत देखने का मन न करे . गर्दन पर हाथ फ़ेरूं तो इत्ते बाल टटोलने में आवें या तो बाल कुछ जल्दी बढ़ गए या फिर पिछले वाले हज्जाम ने ज़्यादा अच्छे से काटे ही नहीं और तो क्या ?

अब मुझे तो एक ही बात सूझी फिर चलो बाम्बे हेयर कट के यहां और क्या ? 

पहुंचे , बैठे कुर्सी पर और आख़िरकार बण गई हजामत .

सूरत प्रमाण के लिए इमरान के साथ एक सेल्फ़ी भी ली जो जोडूंग़ा आगे .

लो जी अब निर्मल शर्मा टोकते हैं के अभी “ रूप चतुर्दशी “ में तो एक सप्ताह की देर है .

पर अपण ने तो आज ही बणवा ली हजामत .

गई कुछ दिनों की .


संध्या वंदन के साथ सायंकालीन सभा स्थगित …..


१२ अक्टूबर २०१७ .

 सुबह उठा तो ऐसी सूरत . आईने में सूरत देखने का मन न करे . गर्दन पर हाथ फ़ेरूं तो इत्ते बाल टटोलने में आवें या तो बाल कुछ जल्दी बढ़ गए या फिर पिछले वाले हज्जाम ने ज़्यादा अच्छे से काटे ही नहीं और तो क्या ?

अब मुझे तो एक ही बात सूझी फिर चलो बाम्बे हेयर कट के यहां और क्या ? 

पहुंचे , बैठे कुर्सी पर और आख़िरकार बण गई हजामत .

सूरत प्रमाण के लिए इमरान के साथ एक सेल्फ़ी भी ली जो जोडूंग़ा आगे .

लो जी अब निर्मल शर्मा टोकते हैं के अभी “ रूप चतुर्दशी “ में तो एक सप्ताह की देर है .

पर अपण ने तो आज ही बणवा ली हजामत .

गई कुछ दिनों की .


संध्या वंदन के साथ सायंकालीन सभा स्थगित …..


१२ अक्टूबर २०१७ .

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बनस्थली डायरी --  निकोबार की लड़कियां .

बनस्थलीडायरी  : निकोबार की लड़कियां  💐💐💐💐

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#sumantpandya #स्मृतियोंकेचलचित्र  #बनस्थलीडायरी

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ये गई शताब्दी की बनस्थली की बातें हैं  , अभी थोड़ा सा लिखने का समय मिला है तो वो बातें  दर्ज करके बताने की कोशिश करता हूं  , देखते हैं कितना संभव हो पाता है .

ये कुछ ऐसा समय था जब निकोबार द्वीप समूह से अहिन्दीभाषी लड़कियों का बनस्थली आने का सिलसिला शुरु हुआ था . इनमें से कॉलेज तक पढ़ने आई लड़कियों के नाम आज भी मुझे  याद आते हैं , इनमें एस्थर , एग्नेस , मारग्रेट , एलिजाबेथ  साल दर साल मेरे पास पढ़ने आईं और अपनी  उच्च शिक्षा पूरी करके निकोबार द्वीप समूह को लौटीं  . भला हो फेसबुक का कि इनमें कोई कोई बाहैसियत अब मेरे संपर्क में आई हैं  और गए बरस एग्नेस को पुलिस अधिकारी की वर्दी में देखकर तो  मुझे कित्ती ख़ुशी हुई है आपको क्या बताऊं .

ये सिलसिला क्यों और कैसे शुरु हुआ ये तो फिर कभी सुनाऊंगा , वो एक अलग कहानी बन जाएगी  वरना , पर इन लड़कियों बाबत थोड़ा कुछ आज कहने की कोशिश करता हूं .

इसे मेरा सौभाग्य ही कहूंगा कि अपनी उच्च शिक्षा पूरी करते करते इनका मुझसे संपर्क तो मेरे  और साथियों के मुकाबले अधिकतम हुआ करता था बनस्थली में . इसका एक कारण शायद ये  भी था कि इनकी हिंदी सामान्य लड़कियों के मुकाबले प्रायः कमजोर होती थी और अध्यापक को विषय की  शिक्षा देने के साथ साथ भाषा की शिक्षा भी देनी होती थी . इधर मुझे निकोबार द्वीप समूह के जन जीवन और समाज - परिवार के बारे में जानने का अवसर मिलता था इनसे बात करके . जन जातियों के जीवन के बारे में इनसे अनोखी बातें मुझे जानने को मिली थीं उस दौरान जब  ये लडकियां  एम फिल शोध प्रबंध तैयार करने बाबत मेरे पास आतीं .

मुझे याद आता है कि एक बरस तो अकेली एस्थर के लिए ही एम फिल  - राजनीति शास्त्र का कोर्स चलाया गया क्योंकि एल जी साब की ख़ास सिफारिश थी कि उसकी अनवरत  शिक्षा अभी स्थगित न होवे  . एल जी इन्हें छोड़ने और लेने को हर साल एक जिम्मेदार शिक्षा अधिकारी  केंद्र शाशित प्रदेश से बनस्थली भेजते और  सत्र पर्यन्त ये लड़कियां बनस्थली में ही रहतीं  . सत्रांत में  आये अधिकारी एस्कोर्ट के साथ ये लडकियां अपने घरों को लौटती थीं .

ये बात इन लड़कियों के संपर्क में आने से मैं बहुत अच्छे से जाना कि इनके समाज में मातृ सत्तात्मक परिवार  होते आए हैं और मेरी ये लडकियां अब  अपने समाज में लौटकर घर  गृहस्थी और परिवार की मुखिया हैं . ये बात इधर मुख्यभूमि भारत में हम्मा  तुम्मा को अभी मुश्किल से स्वीकार हो सकती है .  यहां आजकल महिला सशक्तिकरण की बातें   बहुत प्रासंगिक मानी जाती हैं  और तमाम रूढ़िवादी शक्तियां भी बात में बात मिलाती हैं ताकि  आधुनिक कहा सकें . उधर निकोबार द्वीप समूह में मेरी ये ख़ास लड़कियां  हैं ही शक्तिशाली  , कम से कम मुझे तो

ये देखकर बड़ा अच्छा लगता है . कहने की आवश्यकता नहीं कि शिक्षा ने इन्हें और अधिक शक्तिशाली बनाया है .

एक बार की बात  :

------------------      सत्रांत का समय था  और उस दिन जब मैं स्टाफ रूम में पहुंचा तो निकोबार की छोटी लडकियां मुझे आकर बताने लगीं कि कोई कुलदीप मैडम मुझे ढूंढते हुए थोड़ी देर पहले वहां आयी थी   , मुझे वहां न पाकर कहीं और चली गई .

“ कौन हैं कुलदीप मैडम ? “   मुझे बताया गया कि  पोर्ट ब्लेयर से इन्हें लेने आई कोई शिक्षा अधिकारी हैं .  मुझे लगा कि एलिजाबेथ की पढ़ाई में रह रही कचाई  के लिए जरूर से मुझे उलाहना देना चाहती  रही होगी , खैर उस समय बात आई गई हो गई और मैं घर आ गया .

शाम को  ये कुलदीप मैडम दफ्तर से पता कर  मुझसे मिलने घर पर आयीं  और तब मुझे पता लगा वो कोई उलाहना देने के लिए मुझे नहीं खोज रही थी  , वो तो बरसों पहले मेरे पास पढ़के गई हुई  मेरी लड़की थी और  आभार ज्ञापन के लिए मिलने आई थी .

उसके साथ एक और महिला थी जो बनस्थली देखने के लिए ही साथ आई थी  . बरसों बाद अपनी छात्रा से मिलकर हमको ( मैं और जीवन संगिनी )  बहुत ख़ुशी हुई . वो हमें पोर्ट ब्लेयर आने का निमंत्रण भी देकर गई , हालांकि हमारा उधर जाना कभी हो नहीं पाया .

बता रहे हैं आज इंटरनेशनल गर्ल्स डे है .  अब वैसे तो मेरा वास्ता लड़कियों से ही ख़ास रहा है , अपनी सभी लड़कियां मुझे प्रिय हैं , पर  उनमें भी  ख़ास हैं मेरे लिए निकोबार की लडकियां  और अधिक अब क्या बताऊं .

अभी बुखार से  उठा हूं  पर अब ठीक हो गया हूं . आज के लिए ये पोस्ट  एग्नेस की पुलिस वर्दी में में एक फोटो के साथ जारी करता हूं .

इंटरनेशनल गर्ल्स डे की बधाई . 💐

नमस्कार .

सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

मंगलवार 11 अक्टूबर 2016 .

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ब्लॉग पर प्रकाशित .

१२ अक्टूबर २०१७ .