छोटे मामा जी स्टेशन वाले : भाग एक .
मैंने बड़े मामाजी ~ स्टेशन वाले बाबत संस्मरण लिखा था उसे पढ़कर मेरे भतीजे अनंत , अख्खी , आशुतोष , राजीव , संजीव तो बहुत खुश हुए ही इन्होंने इसमे बातें भी जोड़ीं . और तो और उस संस्मरण को श्रीकांत भाई को भी पढवाया . संजीव मुझे कहने लगा कि जैसे मैंने बड़े बाबा के बारे में लिखा कुछ बातें मैं छोटे बाबा के बारे में भी लिखूं . ये पुरानी बातें बीते समय का ऐसा दस्तावेज हैं जिनसे उस दौर के चलन और समाज के बारे में भी पता चलता है .
संजीव ने जब मुझे ऐसा जब कहा तो फिर एक दुखद प्रसंग आया था , घीस्या भाई याने लक्ष्मीकांत भट्ट , छोटे मामाजी के बड़े बेटे भी नहीं रहे समय कितना आगे बढ़ गया . उस दिन मैंने तय किया था कि स्टेशन वाले छोटे मामाजी के बारे में भी लिखूंगा .
हमारी अम्मा बाद के समय में अपने कुटुंब में एक मात्र बहन थी जो स्टेशन वाले छोटे मामाजी को राखी बांधने जाया करती थी किसी न किसी बेटे ख़ास तौर से विनोद को साथ लेकर .
ये मामाजी पान के शौक़ीन थे मुझे बचपन की बात याद आती है जब भी मामाजी मिलते हम लोग पान की मांग करते और मामाजी तब के दो पैसे दे देते , दो पैसे में पान आ जाता , तब एक रूपए के चौंसठ पैसे हुआ करते थे .
बड़े मामाजी की तरह ही छोटे मामा जी रेलवे में स्टेशन मास्टर थे . एक बार की बात याद आती है हम बच्चे रेल से काकाजी और अम्मा , हमारे माता पिता , के साथ उदयपुर से जयपुर आ रहे थे . मामाजी तब किशनगढ़ में स्टेशन मास्टर थे . अब सोचता हूं कितना पत्र व्यवहार होता रहा होगा मामाजी को पता था कि इस गाड़ी से उनकी बहन परिवार के साथ आ रही है . मुझे याद है गाड़ी रुकते ही कोच के पास मामाजी आए और उनके पीछे खोमचे वालों का रेला था , मामाजी ने हम बच्चों से पूछा :
“ क्या खाओगे ? “
मेरी बाल समझ मैं बोला :
“ पर मामाजी गाड़ी तो थोड़ी ही देर में रवाना होने वाली है .”
तिस पर मामाजी का कहा मुझे आज तक याद है , मामाजी बोले :
“ मैं खड़ा हूं न यहां , मेरे इजाजत दिए बगैर गाड़ी जाएगी कैसे ? “
तो ऐसे थे छोटे मामाजी स्टेशन वाले , बातें तो और भी बहुत सी याद आ रही हैं पर अभी हाल के लिए नैट बरतने का समय बीत रहा है अतः हाल के लिए प्रातःकालीन सभा को स्थगित करता हूं .
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