Tuesday, 16 January 2018

एनिमल हसबेंड्री  : बनस्थली डायरी .

एनिमल हसबेंडरी :बनस्थली डायरी ✍🏼

 कल

दोपहर भिवाड़ी में कुछ एक बुज़ुर्गों से बात हो रही थी और मेरे परिचय के साथ बनस्थली का ज़िक्र आ गया , स्वाभाविक था . एक बुज़ुर्ग पिछली शताब्दी की बातें बता रहे थे जब वो बनस्थली जाकर आए थे तब बहुत कुछ परिसर का खुला मैदान था और उसके अंतर्गत एक बड़ा गोचर प्रदेश था . परिसर चारों ओर से खुला हुआ था और आज की तरह चार दीवारी भी बनी हुई नहीं थी . ख़ैर उन्हें तो मैंने बताया कि तब से अब में बहुत विस्तार हो गया है , ख़ाली ज़मीन कम हुई है और चार दीवारी भी बन गई है इत्यादि . पर ऐसे में मैं उस दौर को याद करने लगा जब बनस्थली विश्वविद्यालय तो बन चुका था पर आज जितना विस्तार नहीं हुआ था , ये तब की ही बात है .


उन दिनों इमारतें आज से कम थीं , पुराने हैंगर को अनुदेश शिविर बनाकर पढ़ाने के कक्ष बना दिए गए थे उसी दौर की बात है . कुछ एक लोग दूधारू पशु भी पाल लेते थे . हमारे साथी अंतर सिंह भी उन दिनों भैंस पालते थे . तब का एक दृष्य मुझे याद आता है . दोपहर विवेकानंद आवास से आते हुए वे अपनी भैंस साथ ले आए थे और भैंस मैदान में चर रही थी उसे ताड़ने के लिए एक डंडी इनके पास थी . जब क्लास में जाने का बखत आया तो वे भैंस को शिविर के बाहर छोड़ , उस डंडी को पटक कर पढ़ाने चले गए . और भी दूधारू पशुओं की कई बातें हैं पर वो फिर कभी , अभी तो सिर्फ़ एक बात कि उसी दिन मैंने अपना ये सिद्धांत प्रतिपादित किया था :


Animal husbandry & University system can conveniently go together .”


आज की प्रातःक़ालीन सभा बनस्थली की ऐसी ही मधुर स्मृतियों के साथ स्थगित ……


सुप्रभात 🌻🌻

नमस्कार 🙏


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