इस कड़ी में पहली दो पोस्ट में शिक्षा के बारे में मैंने कुछ प्रश्न उठाये हैं जिन पर विचार की आवश्यकता है , जिन पर कोई अंतिम उत्तर मैं नहीं दे सकता पर अपनी बात ही कह सकता हूं . आज कुछ छोटे छोटे प्रसंग बताऊंगा उनसे शायद बात आगे बढ़े .
बनस्थली में एक बार की बात , कैलाश नाम की एक लड़की हमारे घर में काम करने आती थी . उसे कुछ प्रौढ़ शिक्षा की पुस्तकें दी गई थीं और जीवन संगिनी उसे पढ़ाया करती थी . एक दिन वे किसी काम में व्यस्त थीं और कैलाश पढ़ना चाहती थी . परिस्थिति देख बड़ा बेटा बोला ," मम्मी को अभी फुरसत नहीं है , आ आज मैं पढ़ा दूं ." इस पर कैलाश बोली :" आप क्या पढ़ाओगे , आप तो खुद ही अभी पढ़ रहे हो ? " इसके पीछे समझ ये थी कि जो पढ़ चुका वो पढ़ावे , जो खुद ही अभी पढ़ रहा है वो भला पढ़ाने का अधिकारी कैसे हो सकता है ? . इसमे एक गहरी बात भी छुपी है , जो पढ़ाने लग गया उसने आगे पढ़ना बंद कर दिया . हमारे आस पास के सरकारी स्कूलों में ख़ास तौर से और सरकारी कॉलेजों में आम तौर से पुस्तकालयों की दुर्दशा इस प्रसंग में देखी जा सकती है जो स्पष्ट ही शोचनीय है . एक ओर संचार के नए उपकरणों पर अनाप शनाप व्यय हो रहा है , जो अधिक कारगर भी नहीं हो रहा दूसरी ओर पुस्तकालय लगभग बंद पड़ा है . उस दिन मैं नहीं जानता था कि आगे चलकर बेटा भी इस अराजक शिक्षा जगत में पढ़ाने का ही काम करेगा और अपनी पहचान बनाएगा .
कल की मेरी पोस्ट पर अपूर्व और भूषण , दोनों ने महत्वपूर्ण टिपण्णी की . यह अनायास ही मुझे याद आया कि ईवान इलिच जब भारत आया था तो इंदिरा जी का ज़माना था . इंदिरा जी ने उसे बनस्थली देखने को कहा था . वो बनस्थली आया था और उससे हम लोगों की मुलाक़ात भी हुई थी . इलिच अपनी कृति " डी स्कूलिंग सोसायटी " के कारण चर्चा में आया था . उसकी किताब का यह समर्पण वाक्य बहुत गजब है :" माय मदर वांटेड मी टू स्टडी देयरफोर शी नेवर सेन्ट मी टू स्कूल ." मेरी मां चाहती थी कि मैं पढूं , इसलिए उसने मुझे कभी स्कूल नहीं भेजा . स्कूल में शिक्षा हो या घर में शिक्षा हो ? महत्वपूर्ण प्रश्न है . इन दोनों जगह समाजीकरण भी एक जैसा हो . इतने प्रशिक्षित अध्यापक आज उपलब्ध हैं फिर शिक्षा का ये क्षेत्र पिछड़ा क्यों रहे . पहले तो अध्यापक नियुक्त पहले हो जाते थे , उन्हें प्रशिक्षित सेवा में रहते किया जाता था . यदि डाक्टर अपने घर बैठे चिकित्सा का कार्य कर सकता है तो प्रक्षिक्षित अध्यापक क्यों नहीं .
आज के लिए चर्चा स्थगित करूं , इति .
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