छोटे मामाजी स्टेशन वाले : भाग दो .
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कल इस प्रसंग पर बात शुरु तो की थी पर समय की कमी के चलते वो पूरी न हो पाई थी आज उसी प्रसंग को आगे बढ़ाता हूं .
ये मामा जी मेरे लिए स्टेशन वाले छोटे मामा जी तो थे ही जब मैं कुछ बड़ा हुआ था तो इनसे एक और आत्मीय और पारिवारिक रिश्ता जुड़ गया . मामा जी जीवन संगिनी के मौसा जी ( गुजराती में कहें तो माहा जी ) भी हुआ करते थे . मुझे ये वाली मामी और जीवन संगिनी को अपनी मौसी याद नहीं , उनका तो बहुत पहले देहावसान हो गया था , पर दोनों का मजबूत आत्मीय रिश्ता तो था ही . इससे जुडी हुई रोचक बातें हैं जो यहां कही जा सकती हैं इनका रिश्तों की बुनावट से सम्बन्ध है . इसी के चलते तो जीवन संगिनी पिछले कई दिनों से मुझे ये पोस्ट लिखने को प्रेरित कर रही थी .
मेरी कल की पोस्ट पर मेरे सभी भतीजे भतीजियों ने “ पान बाबा “ को याद किया ये मुझे बहुत अच्छा लगा इस निमित्त उनका भी आभार .
दोहरे रिश्तेे के सन्दर्भ में एक बात याद आती है वही यहां कहता हूं .
हमारी पहली संतान के जन्म से पहले की बात है . जीवन संगिनी के पीहर वाले इस अवसर पर उन्हें चूंदड़ी ओढ़ाने आए हुए थे . ये बात है हमारे शहर वाले पैतृक आवास के चौक की . दोनों ही पक्ष के लोग इस शुभ अवसर पर उपस्थित थे . स्टेशन वाले छोटे मामा जी को वहां होना ही था उनका तो दोहरा रिश्ता था .
भावी मां को पट्टे पर खड़ा कर सम्मानित करने के बाद सब कोई लोग उनकी कुछ न कुछ सिक्के से वार फेर कर रहे थे तो मामा जी अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने भावी पिता के रूप में मेरी वार फेर की थी . कितनी सुन्दर प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति थी छोटे मामा जी की .
मैं तो चाहूंगा कि कल की तरह ही मामा जी के कुटुंब के बालक गण इस बाबत और बाते जोड़ें और यहां साझा करें .
मेरा अनुमान है कि जीवन संगिनी भी अपने ‘ माहा जी’ ( मौसा जी ) के बारे में कुछ न कुछ जरूर कहेंगी .
आशुतोष ने कल की बात पर ठीक ही कहा ,” हमारे दोनों बाबा सच में ग्रेट थे .”
सुप्रभात .
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
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