Monday, 15 January 2018

देयर फेट .. : जयपुर डायरी .

....देयर फेट !

उस दिन अनायास ही दुर्गानारायण जी मास्टर साब बैंक में दिखाई दिए   और मैं उनसे मिलने का लोभ संवरण नहीं कर सका . मास्टर साब का हमारे घर में तब से आना जाना  था जब हम लोग छोटे छोटे बच्चे थे .  मास्टर  साब जीजी को घर पर पढ़ाने आते थे . वैसे वो रेलवे  में काम करते थे और  अतिरिक्त समय में  पढ़ाने का काम भी करते थे . तब तक जीजी को स्कूल नहीं भेजा गया था  और दुर्गानारायण जी  मास्टर साब घर पर ही पढ़ाने आते थे और इस प्रकार  जीजी की पढ़ाई चल रही थी  . मास्टर साब से  एक पारिवारिक सम्बन्ध बन गया था . जीजी विधिवत स्कूल और कालेज पढ़ने जाने लगी  तब भी मास्टर साब का हमारे घर आना जाना था और इस नाते मैं मास्टर साब को जानता था .

उस बात को बहुत समय बीत गया था , जब मैं दुर्गानारायण जी से मिला  तब मैं बनस्थली में काम करने लग गया था और  वे किसी काम से बैंक में आए हुए थे . मैंने उनके पास जाकर  अपना  परिचय दिया तो बड़े खुश हुए  और  बोले :" अरे यार तुम आज मिले हो , पहले मिलते तो एक काम बताता ."  मुझे भी उत्सुकता हुई भला  उनको  मुझसे क्या काम पड़ा होगा .  पूछने पर पता लगा कि उनकी बेटी का  वाद्य संगीत का प्रैक्टीकल था और  बनस्थली वाले नागर जी  बनारस से चलकर आये थे परीक्षा लेने .  कोई सिफारिश कर सकता ऐसे व्यक्ति की उन्हें तलाश थी . वह अवसर तो जा चुका था  , अब मुझे भी यह बताने में हर्ज नहीं लगा कि नागर जी का जयपुर यात्रा से पहले मुझे पत्र मिला था और मैं  कालेज में वहीँ जाकर  उनसे मिला भी था जहां  नागर जी  परीक्षा ले रहे थे .  खैर वह अवसर तो जा चुका था . दुर्गानारायण जी से अनायास  हुई मुलाक़ात बड़ी बढ़िया रही  और  उन्हों ने  अनायास एक  बात कह दी :"  फिर मैंने सोचा यार लड़की का मामला है ....आफ्टर आल शी इज नाट आवर फेट , शी इज देयर फेट . "

दुर्गानारायण जी मास्टर साब ने अंत में  जो हिंदुस्तानी सोच  कह दिया था वो तो एक अलग बात है पर इतना जरूर है कि मेरे घर में तो पढ़ाई का दीपक लेकर  वो ही आये थे , आखिर उन्हों ने जीजी को पढ़ाया था .  दुर्गानारायण जी अब रहे नहीं जीजी भी अस्सी पार पहुंच गई  जिनका जन्म दिन गई दीपावली पर मनाया गया . ये तो कुछ ऐसी बातें हैं जो बाद तक याद रहती  हैं .

आज के लिए विराम . इति .

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