ज्योतिष ज्ञान
१.
ये पिछली शताब्दी के उन दिनों की बात है जब ज्योतिष का जुनून मेरे सिर पर सवार था और होनहार कुछ ऐसी थी काका भी ज्योतिष में दखल रखा करते थे .
आज भी काका याद आ जाते हैं , जो असमय चले गए , तो उन की एक सीख बहुत याद आती है वही आज बताने का मन है . हालांकि एक जोखिम भी है कि इस मामले में बात भर करने पर मैं दकियानूसी , अंधविश्वासी समझा जावूंगा जो शायद मेरे बारे में सही न हो पर मैं भी अपने बारे कितना जानता हूं वो अलग बात है . यही तो मानव मन का एक दुर्बल पक्ष है कि अच्छे भले लोग अपने ही कर्मों का फल लाल बुझक्कड़ से पूछने जाया करते हैं , भविष्य के बारे में अटकल सभी लगाया करते हैं . जो भविष्य के बारे में मन गमती बात कह दे वो आदर का पात्र बन जाया करता है . खैर इस विचार विमर्श को स्थगित कर मुद्दे की बात पर आवूं जो मुझे आज बताने का मन हो आया है .
एक दिन काका हमारे शहर वाले घर आए हुए थे और मैं कई प्रकार के पंचांगों और मिस्टिक साहित्य में उलझा हुआ था कि काका कहने लगे :
“ सुमन्त , अच्छा है तू ये सब करने लगा है पर कभी किसी की मृत्यु की ज्योतिष मत करना . अगर मर जाएगा तो तुझे उलाहना देने नहीं आएगा और जो बच गया तो जिंदगी को तेरी दी हुई सौगात समझेगा . “
बड़ी मार्के की बात बता दी थी काका ने . उस दिन का दिन है और आज का दिन है कभी किसी को खोटी बात नहीं बताई .
मेरे कई आत्मीय जनो ने तो तब यहां तक कहना शुरु कर दिया कि मुझे वाक् सिद्धि ही प्राप्त हो गई है .
ये भी संयोग ही है कि जिस दौर की बात है तभी मैंने चश्मा लगाना शुरु किया था , मैं तब चश्मा उतार कर कहा करता था :
“ ये मेरा चश्मा ही कुछ ऐसा है कि इसमें कोई खोटी बात दिखाई नहीं देती .”
और हुआ भी कुछ ऐसा कि जिसके साथ अनर्थ ही होना होता वो मेरे सामने पृच्छक बनकर आता ही नहीं .
खैर ये सब उस जुनूनी दौर की बातें हैं जो बरबस याद आ जाती हैं .
उस दौर के मेरे संपर्कों को याद करते हुए , काका को याद करते हुए , पिछड़ा समझे जाने के खतरे को झेलते हुए , जीवन संगिनी की समीक्षार्थ आज की पोस्ट प्रस्तुत करते हुए ~
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
ये है काका का एक यादगार फ़ोटो जब वे जैसलमेर गए थे और विनोद के सरकारी बंगले पर ठहरे थे .
२. ज्योतिष और मेरी परीक्षा : छोटे लाल जी द्वारा.
वैसे तो ये दो अलग अलग मामले हैं , ज्योतिष से मेरा वास्ता और छोटे लाल जी पर यहां दोनों बातें साथ आ रही हैं , ज्योतिष का प्रसंग भी और और छोटे लाल जी का उल्लेख भी . ये बात उन दिनों की है जब मैं बनस्थली में था और ज्योतिष में हस्तक्षेप करने लगा था . पता नहीं क्यों ज्योतिष को लेकर सबके ही मन में कुछ न कुछ कौतुक रहता ही है . मैं इस मामले में अधिक से अधिक लोगों से अटकने को उन दिनों तत्पर रहता था . ऐसे ही एक दिन क्रिसमस के कारण अवकाश था , उद्बोधन मंदिर में कार्यक्रम में सम्मिलित होकर मैं घर आया था और अनायास ही प्रोफ़ेसर छोटे लाल जी मेरे घर 44 रवीन्द्र निवास चले आये .
वे क्यों आये ये मेरे मन में प्रश्न था पर उनके मन में भी कोई प्रश्न ही था और उन्होंने अपना मंतव्य भी कह दिया : मेरा मूक प्रश्न है और उसका उत्तर दो .
छोटे लाल जी ने मेरे सामने एक परीक्षा की स्थिति उत्पन्न कर दी थी , प्रश्न भी बताना था और उत्तर भी देना था . मेरा राजनीति शास्त्र के प्रश्नपत्रों से तो वास्ता पड़ा था पर ज्योतिष का मेरा ज्ञान तो था जैसा ही था , जीवन के प्रश्नों का भला मेरे पास क्या उत्तर था और वो भी यदि मूक प्रश्न है तो वह क्या प्रश्न है भला मुझे क्या पता . खैर अब परीक्षा तो मेरी थी , या तो पास होना था या फेल . मैंने सोचा प्रयास करने में क्या हर्ज है और मैं पंचांग तथा कागज़ कलम लेकर बैठ गया और यह दरसाया कि किसी गंभीर गणना में व्यस्त हूं . प्रश्नलग्न बनाया और अपने आप से प्रश्न किया कि मन का स्वामी कौन है ,उत्तर मिला कि चन्द्रमा है . चन्द्रमा कहां बैठा है ? चौथे भाव में जो मां का घर है . मुझे एक सूत्र मिल गया था , मैंने कहा : डाक्टर साब प्रश्न मां के बारे में है . वे सहमत दिखाई दिए , अब मुझे बात बताना कुछ आसान लगा . मैंने कहा : आपको उनके बारे में ही चिंता है आप बिना कोई समय गंवाए गांव चले जाओ , दर्शन हो जाएंगे . उस दिन छोटे लाल जी मेरा प्रश्नोत्तर सुनकर , संतुष्ट होकर चले गए और बाद में मेरे लिए सबसे बड़ा टेस्टीमोनियल उन्होंने जबानी जारी किया , कैम्पस में वे यह कहते हुए सुने गए कि ये एक लड़का है यहां जो ज्योतिष जानता है , बाकी किसी को कुछ नहीं आता . बहरहाल मैं छोटे लाल जी द्वारा ली गई परीक्षा में पास हो गया था . और बहुत सी बातें हैं . अब छोटे लाल जी भी नहीं रहे , मेरा वो जूनून भी नहीं रहा , उस परिसर से भी आ गए , ये सब तो तब की बातें हैं .
Saral sahaj sateek
ReplyDeleteआभार , खुश रहो गरिमा ।
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