गणितज्ञों के सम्मेलन में : बनस्थली की बातें . #बनस्थलीडायरी
एक दिन बनस्थली की सड़क पर चलते हुए गणित के प्रोफ़ेसर वशिष्ट साहब मुझसे बोले: " शिव बिहारी जी तो बाहर गए हुए हैं , हमारी कांफ्रेंस होने वाली है जिसमे चुनाव होने वाले हैं, आप चुनाव करवा दोगे क्या ? " ऐसे रस्ते चलते मैं ब्रदर का #स्थानापन्न माना जाकर निर्वाचन अधिकारी नियुक्त हो गया . वशिष्ट जी के प्रश्न में ही मेरी नियुक्ति सन्निहित थी . चूंकि मुझसे प्रश्न किया गया था अतःमुझे हां तो कहना ही था . मैंने ' हां ' कह दिया .
राजनीतिशास्त्र और चुनाव :
: ऐसा बनस्थली के सामाजिक जीवन में माना जाता था कि चुनाव करवाने का काम राजनीति शास्त्र के लोगों के क्षेत्राधिकार में आता है . घूम फिर कर हमी लोगों में से कोई कोऑपरेटिव सोसाइटी के भी चुनाव करवाता आया था अतः कोई आश्चर्य नहीं था कि ब्रदर के बाहर होने की स्थिति में उन्होंने मुझ से ऐसा कहा था और राह चलते मेरी स्वीकृति ले ली . ये स्थानापन्न होने की कई एक कहानियां है जो आगे कहूंगा पर ये तो उस दिन की बात है वही आगे बताऊं . उन्होंने कुछ कहा मैंने हां भरी ,बात आई गई हो गई हो गई और कई दिन निकल गए इस बाबत कोई पत्र व्यवहार भी नहीं हुआ . मैं भी शायद उस बात को भूल गया . गणितज्ञों का सम्मेलन होने लगा . उदघाटन सत्र में मैं भी हो आया जहां सारा बनस्थली परिवार आया हुआ था और शेष कार्य सत्रों से दूर रहा , मेरे विषय और रूचि की वहां कोई बात न होगी ऐसा मैंने सोचा था . आखिरकार समापन सत्र का दिन आ गया जो पहले से ही तय था . समापन सत्र चल रहा था जिसे नई रौशनी में " वैलेडिक्टरी सैशन " कहा जाता था . ये सब गतिविधि ज्ञान मंदिर के सभागार में चल रही थी जब कि मैं 44 रवीन्द्र निवास के बाहर अपनी सायंकालीन सभा में मशगूल था और निश्चिन्त था " लैट अस कॉल इट ए डे " के मूड में कि तभी विद्यापीठ की अरमाडा गाड़ी नागालैंड राज्य भवन के बोर्ड के पास से मुड़कर मेरे घर की ओर आती दिखाई दी . पास आकर मेरे अभिन्न मित्र नीलकांत उतरे , उनके पास तो मानों मेरे लिए वाटेंट ऑफ़ अरेस्ट था अतः बोले :" ल्यो चालो चुनाव कराणा छै ." मुझे जाना था आखिर मेरा कमिटमेंट था . मैंने दो मिनिट की मोहलत मांगी , घर के अंदर गया शकल ठीक की खादी का कोट पहना , शायद जूते भी बदले और साथ हो लिया .नीलकान्त मुझे सीधे ज्ञान मंदिर ले जाना चाहते थे लेकिन मैं वहां सीधे न जाकर वाणी मंदिर जाना जाना चाहता था और मैंने वही किया . चुनाव करवाने के लिए जो लॉजिस्टिक सपोर्ट मिलना चाहिए उसके लिए मिश्रा जी को साथ ले लिया . मेरे पास आखिर और कौनसा कार्यालय और मशीनरी थी . मिश्रा जी से कहा , " मत पत्र छपवाने पड़ेंगे , बाबू लोगों को तैयार रखो . " मिश्रा जी ने भरोसा दिलाया और मैं निश्चिन्त हो गया .
ज्ञान मंदिर सभागार में :
समापन सत्र के दौरान मुझे सभागार की प्रथम पंक्ति में बैठाया गया और ज्यों ही निर्वाचन प्रक्रिया प्रारम्भ होने का समय आया मुझे एक संक्षिप्त परिचय के साथ मंच सौंप दिया गया . पुरोहित जी जो स्थानीय संयोजन से जुड़े थे , ने मुझे कार्य कारिणी के पदों की सूची सौंप दी और मैंने मंच अधिग्रहण के तुरंत बाद टाइम टेबल की घोषणा के साथ नामांकन आमंत्रित करना प्रारम्भ कर दिया . उम्मीदवार प्रस्तावक समर्थक खड़े होने लगे . नाम वापस लेने की समय सीमा समाप्त हो रही थी , एक से अधिक उम्मीदवारों के नाम आ गए थे , लगता था वोट ही डलवाने पड़ेंगे कि तभी एक युवा गणितज्ञ मंच के पास आये और मुझसे जो बोले वह आज तक याद है :" सर थोड़ा सा समय और दीजिए हम आपस में तय कर लेते हैं." मुझे कहां दिक्कत थी , दिया समय . सभागार लॉबी में परिवर्तित हो गया , छोटे समूहों में आपस में बात होने लगी और आशा के अनुरूप निर्विरोध कार्यकारिणी का चयन हो गया . सम्मेलन की फ़ाइल के लिए निर्वाचन अधिकारी के प्रमाण पत्र की आवश्यकता थी . मेरे हाथ के लिखे एक सुपाठ्य पत्र को ही उन्होंने प्रमाणपत्र के रूप में स्वीकार कर लिया और इस प्रकार मेरा प्रिय #सर्वानुमति सिद्धांत यहां भी कारगर रहा . परंपरा के अनुरूप पुरोहित जी नई कार्यकारिणी के अध्यक्ष बने . हंसी ख़ुशी के वातावरण में सम्मेलन समाप्त हुआ .वैसे मेरी भूमिका तो निर्वाचन परिणाम का प्रमाणपत्र देकर ही समाप्त हो गई थी पर गणितज्ञों ने अब मुझे घर आने नहीं दिया . लोकल टेलेंट का बनाया चूरमा , दाल , बाटी का भोजन शाम पड़े ही तैयार था क्योकि बाहर से आये अधिकांश लोगों को जाना था . मैंने भी विशिष्ट अतिथियों के साथ खाना खाया और उस दिन तो वाहन योग प्रबल था अतः आयोजकों की सवारी से ही घर आया .
और बहुत सी बातें हैं पर आज के लिए इति .
सहयोग : Manju Pandya
सुप्रभात
Good morning .सुमन्त
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापूनगर , जयपुर . 2 फरवरी 2015 .-----------------------------------------
आप इस सम्मेलन में भी आए थे सोमप्रकाश गोयल । याद कीजिए ।
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