नानगा द ग्रेट : ग्यारहवीं कड़ी : दो पीसा को उदयपुर . #नानगादग्रेट
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बात चलती है तो बात याद आती है . कल एक अंतराल के बाद “ नानगा द ग्रेट “ की अगली कड़ी लिखना शुरु किया था और आप स्वजनों ने उसे सराहा ,जो लोग नानगा को जानते रहे उनने तो सराहा ही ,जो मेरे स्टेटस से जाने उनने भी . विलक्षण था नानगा इसमें कोई संदेह नहीं .
नानगा साक्षर भी नहीं हुआ था , उसने श्रम के बल पर जीवन जिया था . उसने कठिनाई झेली थी परंतु उसका अपना एक मूल्य बोध था कहे तो जिसे आप लोग ‘ वैल्यू सिस्टम ‘ बोलते हैं . वो मूल्य बोध उसके बेटे शंकर की बातों में आज भी झलकता है .
शंकर के साथ अपनी फोटो मैंने थोड़े दिनों अपनी फेसबुक टाइम लाइन पर कवर फोटो बनाई थी इन्हीं बातों को रेखांकित करने के लिए .
नगर सभ्यता को नानगा ठेंगे पर रखता था और मसखरी में अव्वल नंबर था ये तो उसको जानने वाले ही जानते रहे . इस बात की और इशारा मेरे प्रिय भतीजे चक्रपाणि ने भी किया जो विट के मामले में मेरा जोड़ीदार है ही , खैर अभी और बातें नानगा संबंधी कहता हूं .
जिन दिनों मैं नानगा बाबत पिछली पोस्ट्स लिख रहा था जीजी ने मुझे फोन कर कई बातें बताई थीं जैसे जब जीजी उदयपुर लौट कर जाती तो सामान बांधने का काम नानगा ही करता बैडिंग बांधने में नानगा का कोई सानी नहीं था , इसे कहते हैं “ बींटा बांधना “.
अब सुनिए एक संवाद :
जीजी पूछती ,” अरै थारै बेई कांई ल्यावां उदयपुर सूं ? “
अर्थात उदयपुर से तेरे लिए क्या लावें .
और नानगा का जवाब होता , जैसी उस की फितरत थी :
“ म्हारै बेई दो पीसा को उदयपुर ली आज्यो ! “
अर्थात मेरे लिए दो पैसे का उदयपुर लेते आना .
इस आप्त वाक्य के आधार पर मैं कहता हूं कि नगर सभ्यता को ठेंगे पर रखता था नानगा .
वाकई ग्रेट था नानगा , इंसान की ये वाली वैराइटी आजकल कम ही देखने में आती है .
आज नानगा जोड़े का चित्र जोड़ता हूं यहां सौजन्य नानगा के बेटे पोते .
नानगा , अपने बचपन और काकाजी ~ अम्मा के साथ बिताए अच्छे दिनों को याद करते हुए प्रातःकालीन सभा स्थगित ..
सुप्रभात .
ब्रेकफास्ट विद : Manju Pandya
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सुमन्त पंड्या .
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
मंगलवार 2 फरवरी 2016 .
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