Wednesday, 8 February 2017

हवा महलां सैं पगां पगां 🚮


      हवा महलां सैं  पगां पगां  :
#sumantpandya

कल की मेरी पोस्ट में  रोहित  का जिक्र आया है  जो आज  की तारीख में नामी और सिद्धहस्त  डाक्टर सर्जन है , आज उसी की बताई एक बात कहता हूं . ये तब की बात है जब   बाबू याने रोहित  सवाई मान सिंह अस्पताल में इंटर्न था और मेडिकल कालेज में  पोस्ट ग्रेजुएट पढ़ाई पढ़ रहा था . मांगीलाल कारीगर  की मां बीमार हो गई थी  और उसे दिखाने और चिकित्सा करवाने के लिए उसने बाबू से मदद मांगी थी .

मांगीलाल कारीगर का हम लोगों , पंड्या  परिवार , के घरों में आना जाना था और समय समय पर तामीर के काम के लिए उसे  बुलाते ही रहते थे . उसका भाई कन्हैया बेटा ढोलू  हमारे शहर वाले घर को रहने लायक बनाए रखने में हमेशा मददगार रहे . बाबूजी के बंगले पर भी इन लोगों ने बहुत दिनों काम किया .  यह भी बताता चलूं कि  ढोलू  अब दौलतराम कारीगर के रूप में बड़ा ठेकेदार   बन गया है , बापू नगर वाले हमारे मकान का पहले बना भाग उसी ने बनाया है  . खैर ये तो मैंने पारिवारिक संबंधों की  प्रगाढ़ता बताई , अब आता हूं उस बात पर जिसके लिए  आज चर्चा छेड़ी .

बीमार डोकरी ( वृद्धा) को लेकर मांगी लाल कारीगर सवाई मान सिंह अस्पताल पहुंचा जो उसे  जयपुर  शहर के उत्तर पूर्व में आमेर के भी आगे अपने गांव ढाणी से लेकर आया था  और बाबू साथ था उसे  इमरजेंसी में दिखाने के लिए .  ड्यूटी डाक्टर ने देखा  , ई सी जी हुआ , निदान हुआ , ये निश्चित हो गया  कि दिल  का दौरा पड़ा है  . डोकरी को तुरंत स्ट्रेचर पर लिटा दिया गया  और ऊपर की मंजिल में ले  जाने के लिए   लिफ्ट के पास ले आया गया . होनहार की बात  कि किसी तकनीकी गड़बड़ या बिजली बंद होने से लिफ्ट वहीँ अटक गई और ऊपर नहीं बढ़ी .  कारीगर को जो सूझा उसने वही किया इस परिस्थिति में   , आ जा री मां चालां  " कहकर उसने  मां  को स्ट्रेचर  से उठाया  , नहीं माना , सीढ़ियों से पैदल  ऊपर ले गया हालांकि बाबू ने मना भी किया पर मांगी लाल कारीगर  बोला  :"  जद हवा   महलां सैं ही पगां पगां आगी जद इं   मैं कांई बात छै . " (  जब हवा महल से यहां तक पैदल आ गई तो इसमे भला क्या बात है ? )    और कारीगर अपनी मां को पैदल ही ले गया , कोई  अनहोनी नहीं हुई .

डिस्क्लेमर - खबरदार !  कोई मेरी पोस्ट से ये न समझ ले कि ऐसे दिल के मरीज को पैदल चलाना चाहिए  , तो फिर निष्कर्ष क्या निकाला  ?

निष्कर्ष :  बीमारी से ज्यादा बड़ा होता है बीमारी के नाम से उपजा भय , इसी सन्दर्भ में रोहित ने यह बात मुझे बताई थी .
आज के लिए  बात को विराम दूं . इति प्रातःकालीन सभा .

कथा के सन्दर्भ के लिए : DrRohit Pandya
वैचारिक  सहमति : Manju Pandya

सुप्रभात .

सुमन्त
गुलमोहर , बापू नगर , जयपुर .
9 फरवरी  2015 .
#हवामहलांसैंपगांपगां

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