क्या सीखा मेरे पढ़ाए से : " खेंच दिया भाई साब " #sumantpandya जयपुर डायरी
एक सहपाठी दोस्त पढ़ाई के बाद शोध के काम में लग गए थे और मैं लग गया था पढ़ाने के काम में . दोस्त के भाई डिग्री कक्षाओं में पढ़ते थे . मेरा विषय भी पढ़ते थे . दोस्त आकर मिलवा गए और परीक्षा के पहले मेरे सुपुर्द कर गए कि मैं उनको तैयारी करवा दूं . छोटे भाई नियमित रूप से आते , मैं अपना विषय उन्हें पढ़ा देता , आखिर काम भी यही था मेरा . रोज की चर्चा के बाद छोटे भाई कहते , " भाई साब इसका एक जिस्ट भी बनवा दीजिए . " मैं हर दिन के पढ़ाए का जिस्ट भी बनवा देता और अगले दिन के लिए ये पढ़ाई स्थगित हो जाती . डिग्री कक्षा के दोनों साल वो पढ़ने आए परीक्षा के बाद कभी बताने नहीं आए कि पेपर कैसे हुए , पर दोस्त से ही पूछा तो पता चला कि मेरा पढ़ाना सफल रहा , छोटे भाई के आशा के अनुरूप अच्छे नंबर भी आए . मुझे भी गर्व हुआ कि मेरा पढ़ाना सफल रहा .साल दर साल यह क्रम चलता रहा .फिर तो बी ए का तीसरा और आखिरी साल पूरा होना ही था .
बी ए फाइनल की परीक्षा के बाद एक दिन ये छोटे भाई रास्ते में मिल गए और मैंने जानना चाहा कि पेपर कैसे हुए तो बताने लगे कि एक पेपर बहुत बढ़िया नहीं हुआ और पेपर बिगड़ने की बड़ी ' वाजिब ' वजह भी बता दी उन्होंने : " सैकिण्ड पेपर के दिन करीब डेढ़ घण्टा खराब हो गया भाई साब , फ़्लाइंग मेरे कमरे में ही रही , फिर तो मैंने खेंच दिया भाई साब . " अब मुझे ये
तो समझ में आ गया था कि छोटे भाई जिस्ट बनवा देने को क्यों कहा करते थे , पर ये समझ में नहीं आ रहा था कि उनकी इस साफगोई पर कुर्बान जाऊं या अपना करम पीट लूं ! सहयोग : Manju Pandya
सुप्रभात
सुमन्त
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर . 19 फरवरी 2015 .
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