Wednesday, 8 February 2017

बातों बातों में : न बखत का पता....(२)

         बातों बातों में  : न बखत का पता , न दूरी का . ( भाग दो )
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#sumantpandya
(2)
बातों में बखत का पता ही नहीं रहता यही है उस चर्चा का दूसरा खंड जो मैंने कल शुरु की थी और जिसमें उल्लेख आया था कि बातों बातों में मामाजी और “ बादशाह “ जीजाजी  वसुंधरा कॉलोनी से चलते चलते सांगानेर जा पहुंचे थे .

उस किस्से में दूरी की ख़ास बात थी और इस किस्से में बखत की ख़ास बात है  जिस किस्से के कथा नायक हैं रमेश भाई और उनके अभिन्न मित्र दीना बाबू .

पात्र परिचय  और देश काल :
~~~~~~~~~~~~~~~~~  ये बात है बहुत पहले की जब हमारे रमेश भाई  जयपुर शहर  के तत्कालीन सबसे बड़े टेलीफोन एक्सचेंज में  सीनियर मॉनिटर हुआ करते थे  और उसी प्रतिष्ठान में  उनके साथी और मित्र हुआ करते थे  दीना बाबू . रमेश भाई का घर वही हमारा नाहर गढ़ रोड वाला बाबा के  जमाने का घर था लाल हाथियों के मंदिर के सामने जिस घर की एक पहचान ये भी थी कि इस घर के चौक में एक बड़ा नीम का पेड़ हुआ करता था . रमेश भाई की विट और मंद  मुस्कान मुझे आज भी बहुत याद आती है . उनकी किस्सागोई की कई एक बातें हैं ,  जो कोई उनसे मिलता था बात करके खुश हो जाता था . पर अभी बात उस ख़ास मौके की  जो आज मेरा बताने का विचार है .

ख़ास बात अभी आज बताने की :
-----------------------------------    रमेश भाई और दीना बाबू दोनों दोस्त  टेलीफोन एक्सचेंज से अपनी ड्यूटी पूरी कर के  अपनी अपनी साइकिलों पर सवार आपस में बतियाते घर की दिशा में चले आ रहे थे . इस तरह वो दोनों  चांदपोल बाजार में नाहर गढ़ की सड़क के नुक्कड़ तक आ पहुंचे  . रमेश भाई को यहां से मुड़ना था और दीना बाबू को आगे जाना था . बीच में छोटी चौपड़ से खरीदी साग सब्जी के थैले भी साइकिलों के हैंडल पर  टके थे .
बिछुड़ने की बेला आ गई तो दोनों दोस्त साइकिलों से उतर गए और खड़े खड़े बातें करने लगे  . बातें पूरी ही नहीं हो रही थीं . एक बात पर उनका ध्यान जरूर गया कि बनबिहारी के घर के नींचे चाय की थड़ी वाला  अपनी थड़ी बंद कर के जाने लगा जिसके पास से आस पड़ोस के दूकानदार चाय मंगवाया करते थे , वो कर गया बंद अपनी थड़ी और चला गया घर इससे इनको क्या फरक पड़ने वाला था . बातें जारी रहीं…….

फिर क्या हुआ ?
~~~~~~~~~ इन दोस्तों की बातों में तल्लीनता तब भंग हुई जब भोर से पहले बड़े सवेरे वो चाय की थड़ी वाला अपनी दूकान खोलने  घर से वापस आ गया क्योंकि सुबह सुबह उजाला होने से पहले उसकी ग्राहकी रिक्शा वालों की वजह से शुरु हो जाया करती थी .
रमेश भाई और दीना बाबू तो मेरी यादों में बसे हैं . किस्से की प्रमाणिकता मैं सत्यापित करता हूं क्योंकि एक जमाने में मैंने उनसे ही ये प्रसंग सुना था  .
आज मिलवाता हूं मैं आप को गोपेश से जिसकी मुस्कान और बात करने का लहजा बहुत कुछ रमेश भाई जैसा है , बेटा है उनका .
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पुराने दिनों को याद करते हुए .
सुप्रभात
सुमन्त पंड्या
समीक्षा और हस्तक्षेप : Manju Pandya
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
   मंगलवार 9 फरवरी 2016 .
#स्मृतियोंकेचलचित्र #जयपुरडायरी

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