Saturday, 4 February 2017

हकीम लुकमान के नुमाइंदे 🔔🔔

  हकीम लुकमान के नुमाइंदे :

जनता स्टोर परिसर  के चौक में मैं अच्छा भला चला जा रहा था कि एक नौजवान रुककर पीछे  मुड़कर देखता है और  अजब तदनुभूति   से मुझसे पूछता है :
   "  आपके पैर में तकलीफ  है अंकल ? "
  मैं   उसमें  छिपे हकीम लुकमान को पहचान जाता हूं  , सतर्क हो जाता हूं और  एक ऐसा उत्तर  देता हूं  जिसके बाद उसके पास  बात आगे चलाने को कुछ आधार बचता नहीं है  :

    " नहीं बेटा  मेरे पैर में कोई तकलीफ नहीं है  ,  तुम को कोई वहम हुआ है ."

उसे मेरी कही बात पर भरोसा तो नहीं होता पर कुछ झींकता सा वह चला जाता है . जब मैं कोई तकलीफ मान ही नहीं रहा तो वह क्या बात आगे करे मुझसे  . ये बात ऐसे क्यों हुई इसकी भी एक पृष्टभूमि है .
बड़ा अजीब लगता है न कोई तो आपकी सेहत के बारे में  इतना  तशवीश जाहिर  करे और आप ऐसा  बेरुखा   सा जवाब दें . वजह है  पिछले दिनों का अनुभव  न तो मैं इतना बेरुखा तो नहीं हूं , मैं  तो अरस्तू का सामाजिक प्राणी हूं , राह चलतों से अटकता हूं  , छोटी ऊमर वालों से तो और ज्यादा .

सन्दर्भ और पृष्टभूमि  :    एक दो थैले लटकाए मैं  जनता स्टोर सर्किल से  बढ़ते ही ठेलों के  पास से गुजर ही रहा था कि एक मोटर सायकल पर सवार दो युवकों में अचानक आत्मीयता जागी  , दोनों  ठहरकर मेरी  सांतां  पूछने लगे . " आपके पैर में तकलीफ रहती है   अंकल.. ...? " मैंने 'हां ' क्या कह दिया  बस लंबी बात चल पड़ी  जो एक चमत्कार  की दिशा में ले जाने वाली थी  . ' किसी का भला हो जाए इसलिए '  ' हमारी अम्मा को उन्होंने ठीक कर दिया '  ' वो कोई दवा नहीं देते  बस यूं मुंह से चूंस कर ठीक कर देते हैं  घुटने का दर्द. '  ये सब बातें कर उन्होंने  किसी " नामी " हक़ीम से मुझे  मिलवाना चाहा . " अरे तेरे  पास कार्ड  है क्या ?"   एक पूछता है  , दूसराबड़ा  अहसान करता है और अपने पास से कार्ड निकालकर देता है  और बदले में मेरा टेलीफोन नंबर भी मांगता है . लुब्बो लुबाब यह कि कार्ड में पता  मुम्बई का है  , जयपुर में भी कोई केंद्र है और होते हवाते बात यहां तक  आ पहुंचती है कि आज तो वो यहीं आये हुए हैं  , पड़ोस के  पैट्रोल पम्प के पास वाली गली में ठहरे हैं , मुझे भी समय मिल सकता है .

मैं थैलों से लदा हूं , घर  पहुंच कर सामान कंधे से उतारना चाहता हूं  और ये दोनों लड़के मोटर सायकल  पर दोनों ओर पांव टिकाए बैठे बात ही किये जा रहे हैं  , मेरा ही तो कल्याण करने जा रहे हैं . किसी तरह बात पूरी कर फिर घर की ओर बढ़ता हूं  , उनसे कहता हूं कि मैं कर  लूंगा संपर्क  , मेरा कष्ट है मैं  ही निबट लूंगा . वे दोनों अपनी दिशा में जाते हैं  मैं  अपनी दिशा में अपने  घर की ओर लेकिन ये कहानी अब भी बाकी है . वैसे ही दो लडके मेरे घर के बाहर फिर मिलते  हैं , उन्हें मैं नवाजूंगा अपने प्रिय शब्द " डुप्लीकेट "  से  , उसी अंदाज में   बात शुरू करते हैं . मैं चाहता हूं  घर में घुसूं , सामान रखकर मुक्त होवूं  . ये लड़के   बात का सिलसिला बढ़ाना चाहते हैं , इस सब को  स्थगित करने की मंशा से मैं पिछली दुकड़ी का दिया कार्ड दिखा कर  मुक्त होना  चाहता हूं  , तब ये लडके  " वो भी हमारे ही भाई है , कार्ड पुराना है , टेलीफोन नंबर बदल गया " आदि बातें कहकर एक नया कार्ड थमाते हैं और पहले वाला कार्ड रख लेना चाहते हैं . मेरा टेलीफोन  नंबर मांगते हैं , मानो टेलीफोन से ही लुकमान की नेमत मुझपर बरसेगी .
घर  अहाते में भाई खड़ा है  ,
        मैं    घर के बाहर खड़ा हूं , उसे मामले का पता नहीं पर वो भी    देख रहा है . बहर हाल मैं दोनों  ही दुकड़ियों के दिए कार्ड जेब में रखकर घर में घुसता हूं . हां यह भी तो बताऊं कि आखिर में मुझे यह भी कहना पड़ा कि अब इससे ज्यादा बात करने की मुझे फुरसत नहीं है . मैं किसी  तरह भाई की पनाह में आ गया तो लगा कि हकीम लुकमान के नुमाइन्दों से जान छूटी .

दोनों कार्डों के मिलान से  स्पष्ट हुआ कि एक से ज्यादा  चमत्कारी इलॉजी सक्रिय हैं  , आस पड़ोस में उनका पड़ाव है , जन  कल्याण की भावना से ओतप्रोत उनके प्रतिनिधि  यहां वहां घूमते  रहते हैं . इससे मिलती जुलती बात भाई ने भी  बताई और जीवन संगिनी ने भी  पर मैं उसे दोहराऊंगा नहीं .  मैंने तो जितनी बताई आप बीती ही बताई  है  . प्राइवेट कॉफी ,चाय आदि में देर हो गई अतः पोस्ट बनाने में समय लगा.
आज के लिए इति .

सहानुभूति और समर्थन : Manju Pandya

सुप्रभात !

सुमन्त
गुलमोहर , बापू नगर , जयपुर .
   5  फरवरी 2015 .
#हकीमलुकमान

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