हकीम लुकमान के नुमाइंदे :
जनता स्टोर परिसर के चौक में मैं अच्छा भला चला जा रहा था कि एक नौजवान रुककर पीछे मुड़कर देखता है और अजब तदनुभूति से मुझसे पूछता है :
" आपके पैर में तकलीफ है अंकल ? "
मैं उसमें छिपे हकीम लुकमान को पहचान जाता हूं , सतर्क हो जाता हूं और एक ऐसा उत्तर देता हूं जिसके बाद उसके पास बात आगे चलाने को कुछ आधार बचता नहीं है :
" नहीं बेटा मेरे पैर में कोई तकलीफ नहीं है , तुम को कोई वहम हुआ है ."
उसे मेरी कही बात पर भरोसा तो नहीं होता पर कुछ झींकता सा वह चला जाता है . जब मैं कोई तकलीफ मान ही नहीं रहा तो वह क्या बात आगे करे मुझसे . ये बात ऐसे क्यों हुई इसकी भी एक पृष्टभूमि है .
बड़ा अजीब लगता है न कोई तो आपकी सेहत के बारे में इतना तशवीश जाहिर करे और आप ऐसा बेरुखा सा जवाब दें . वजह है पिछले दिनों का अनुभव न तो मैं इतना बेरुखा तो नहीं हूं , मैं तो अरस्तू का सामाजिक प्राणी हूं , राह चलतों से अटकता हूं , छोटी ऊमर वालों से तो और ज्यादा .
सन्दर्भ और पृष्टभूमि : एक दो थैले लटकाए मैं जनता स्टोर सर्किल से बढ़ते ही ठेलों के पास से गुजर ही रहा था कि एक मोटर सायकल पर सवार दो युवकों में अचानक आत्मीयता जागी , दोनों ठहरकर मेरी सांतां पूछने लगे . " आपके पैर में तकलीफ रहती है अंकल.. ...? " मैंने 'हां ' क्या कह दिया बस लंबी बात चल पड़ी जो एक चमत्कार की दिशा में ले जाने वाली थी . ' किसी का भला हो जाए इसलिए ' ' हमारी अम्मा को उन्होंने ठीक कर दिया ' ' वो कोई दवा नहीं देते बस यूं मुंह से चूंस कर ठीक कर देते हैं घुटने का दर्द. ' ये सब बातें कर उन्होंने किसी " नामी " हक़ीम से मुझे मिलवाना चाहा . " अरे तेरे पास कार्ड है क्या ?" एक पूछता है , दूसराबड़ा अहसान करता है और अपने पास से कार्ड निकालकर देता है और बदले में मेरा टेलीफोन नंबर भी मांगता है . लुब्बो लुबाब यह कि कार्ड में पता मुम्बई का है , जयपुर में भी कोई केंद्र है और होते हवाते बात यहां तक आ पहुंचती है कि आज तो वो यहीं आये हुए हैं , पड़ोस के पैट्रोल पम्प के पास वाली गली में ठहरे हैं , मुझे भी समय मिल सकता है .
मैं थैलों से लदा हूं , घर पहुंच कर सामान कंधे से उतारना चाहता हूं और ये दोनों लड़के मोटर सायकल पर दोनों ओर पांव टिकाए बैठे बात ही किये जा रहे हैं , मेरा ही तो कल्याण करने जा रहे हैं . किसी तरह बात पूरी कर फिर घर की ओर बढ़ता हूं , उनसे कहता हूं कि मैं कर लूंगा संपर्क , मेरा कष्ट है मैं ही निबट लूंगा . वे दोनों अपनी दिशा में जाते हैं मैं अपनी दिशा में अपने घर की ओर लेकिन ये कहानी अब भी बाकी है . वैसे ही दो लडके मेरे घर के बाहर फिर मिलते हैं , उन्हें मैं नवाजूंगा अपने प्रिय शब्द " डुप्लीकेट " से , उसी अंदाज में बात शुरू करते हैं . मैं चाहता हूं घर में घुसूं , सामान रखकर मुक्त होवूं . ये लड़के बात का सिलसिला बढ़ाना चाहते हैं , इस सब को स्थगित करने की मंशा से मैं पिछली दुकड़ी का दिया कार्ड दिखा कर मुक्त होना चाहता हूं , तब ये लडके " वो भी हमारे ही भाई है , कार्ड पुराना है , टेलीफोन नंबर बदल गया " आदि बातें कहकर एक नया कार्ड थमाते हैं और पहले वाला कार्ड रख लेना चाहते हैं . मेरा टेलीफोन नंबर मांगते हैं , मानो टेलीफोन से ही लुकमान की नेमत मुझपर बरसेगी .
घर अहाते में भाई खड़ा है ,
मैं घर के बाहर खड़ा हूं , उसे मामले का पता नहीं पर वो भी देख रहा है . बहर हाल मैं दोनों ही दुकड़ियों के दिए कार्ड जेब में रखकर घर में घुसता हूं . हां यह भी तो बताऊं कि आखिर में मुझे यह भी कहना पड़ा कि अब इससे ज्यादा बात करने की मुझे फुरसत नहीं है . मैं किसी तरह भाई की पनाह में आ गया तो लगा कि हकीम लुकमान के नुमाइन्दों से जान छूटी .
दोनों कार्डों के मिलान से स्पष्ट हुआ कि एक से ज्यादा चमत्कारी इलॉजी सक्रिय हैं , आस पड़ोस में उनका पड़ाव है , जन कल्याण की भावना से ओतप्रोत उनके प्रतिनिधि यहां वहां घूमते रहते हैं . इससे मिलती जुलती बात भाई ने भी बताई और जीवन संगिनी ने भी पर मैं उसे दोहराऊंगा नहीं . मैंने तो जितनी बताई आप बीती ही बताई है . प्राइवेट कॉफी ,चाय आदि में देर हो गई अतः पोस्ट बनाने में समय लगा.
आज के लिए इति .
सहानुभूति और समर्थन : Manju Pandya
सुप्रभात !
सुमन्त
गुलमोहर , बापू नगर , जयपुर .
5 फरवरी 2015 .
#हकीमलुकमान
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