बनस्थली डायरी : मेरा यार राम निवास - भाग दो . #बनस्थली #रामनिवास
ये उस जमाने की बातें हैं जब न तो आज की तरह बोतल बंद पानी का चलन हुआ था और न आज की तरह बनस्थली में कैंटीन संस्कृति का प्रचलन हुआ था . उस जमाने में पानी से श्रेष्ट कोई पेय नहीं था और न था राम निवास जैसा कोई दोस्त . तभी की बात है मैंने अखबार में पहली बार पाउच बंद पानी का विज्ञापन देखा था जो आने वाले समय में बदलाव का सूचक था . मेरी तब से यह कह बैठने की आदत है , " आई नैवर से नो फॉर ए ग्लास ऑफ़ वाटर ." मैंने कभी ज्यादा पानी पीकर किसी को जान गंवाते नहीं देखा , हां पानी की कमी से डी हाइड्रेशन जरूर देखा है . ये तो बहुत बाद की बात है जब मैंने यह भी कहना शुरु कर दिया था कि क्या मैं सतीश अग्रवाल * हूं जो एक गिलास पानी के लिए मने करूं .
(* सतीश अग्रवाल जनता पार्टी के नेता थे जिनके सामने सभा में भाषण देते कोई व्यक्ति पानी का गिलास लेकर आया था और उसे परे हटाते हुए वो बोले थे ,' जिसके सर पर लोक नायक जय प्रकाश नारायण का हाथ हो उसे कौन पानी पिला सकता है ?")
मैं तो अपने यार राम निवास के लिए कहूंगा कि उसने अच्छे अच्छों को पानी पिला दिया . कल मेरे बच्चों में से किसी ने रामनिवास का जयकारा लगाया . अब साथ में जय बोलो भगवान् देव नारायण की जो उसके समुदाय के लोक देवता हैं . देव नारायण मंदिर बनस्थली के परिसर से थोड़ी ही दूरी पर कितना सुरम्य स्थान है , ट्रैक्टर ट्रॉली से जाने कितनी बार उस मंदिर की यात्रा की होगी . रास्ते भर देबू जी महाराज की जय लोक अभिवादन का कितना सुन्दर तरीका होता है उस यात्रा में . एक बार की बात मैंने राम निवास को गीत प्रेस गोरखपुर की छपी भगवद्गीता का हिंदी अनुवाद बांचते देखा , ये उन दिनों की बात है जब इंडियन थॉट के दायरे में इन कृतियों और विभिन्न टीकाओं को मैं भी पढने का प्रयास कर रहा था . लगा राम निवास की आस्था लोक देवता तक ही सीमित नहीं है . मेरे समझ के दायरे में उससे बात भी हुई . लगभग मेरा समवयस्क राम निवास मेरे आगे पीछे ही सेवा प्रभार से मुक्त हुआ . ऐसे दोस्त सब को मिलें इसी कामना के साथ ,
देबू जी महाराज की जय. इति. समर्थन : Manju Pandya
सुप्रभात Good morning.
सुमन्त आशियाना आंगन , भिवाड़ी . 10 अप्रेल 2015 .
आज खोजकर ये दूसरी कड़ी प्रकाशित की है .
@ भिवाड़ी
२२ फ़रवरी २०१७ .
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