सर , अब तो मान लीजिए ..... #sumantpandya #बनस्थलीडायरी
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एक पुराना प्रसंग याद हो आया वही आज कहता हूं .
ये तब की बात है जब मेरा कालेज राजस्थान विश्वविद्यालय से जुड़ा था और मैं साझे में डिग्री कक्षा को ' मॉडर्न गवर्नमेंट्स ' का पेपर पढ़ाता था . परीक्षा से पहले कुछ जरूरी सवाल तैयार करने को बता दिए लड़कियों को और ताकीद भी कर दी :
अगर इससे इतर पेपर में सवाल आ जाएं तो मुझे मत कोसना और अगर ऐसा ही पेपर आ जाय तो ये मत समझना कि पेपर मैंने बनाया है .
पेपर बनाने वाले तंत्र से मेरा तो कुछ लेना देना नहीं था पर पेपर कैसे बनते हैं इतना तो मैं भी समझने लगा था . एक बारी तो विश्वविद्यालय ने कार्यशाला करके ' प्रश्नबैंक ' ही बनवा डाला था . ये भी कुछ आगे पीछे उसी जमाने की बात है . खैर ..
पेपर के दिन परीक्षा समाप्त होने के बखत मैं कालेज चला गया यह देखने कि बच्चों ने किला फ़तेह कर लिया कि नहीं . लड़कियां प्रसन्नचित्त बाहर आयीं और उनमे से एक तो बड़े आत्म विशवास से जो बोली वो मुझे आज तक याद है :
" सर , अब तो मान जाइए कि पेपर आपने ही बनाया था ? "
अब इस भोले विश्वास पर मैं भला क्या कहता . मैंने तो खंडन ही किया और मन में कहा " बावळी , पेपर बनाता तो क्या ऐसे क्लास में पेपर बताता ? "
पर उसको मेरी आखिरी बात कुछ जची नहीं थी .
#पेपर
#बनस्थली
सहयोग : Manju Pandya
सुप्रभात
सुमन्त .
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
1 मार्च 20015 .
आज इस पोस्ट को पढकर बीते दिनों की याद आ गई .
कितनी बातें याद आने लगती हैं उस बखत की जब पढ़ता था और जब पढ़ाता था .
अब तो लगता है फेसबुक पर ही मेरी क्लास चलती है .
आज का अपडेट
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#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी
पुरानी पोस्ट को आज ब्लॉग पर भी जोड़ने का प्रयास किया है . कमेंट बॉक्स में लिंक भी जोड़ूंगा .
@ गुलमोहर कैम्प , जयपुर
१ मार्च २०१७ मार्च २०१७ .
आज इस ब्लॉग पोस्ट को फिर याद किया ।
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