एक भूली बिसरी याद .
~~~~~~~~~~~~~ #sumantpandya एक बहुत पुरानी बात याद आ गई . ये तब की बात है जब मैं राजस्थान विश्वविद्यालय में अपनी शिक्षा पूरी कर बनस्थली में ज्ञान विज्ञान महाविद्यालय में राजनीतिशास्त्र पढ़ाने लगा था . ये वो जमाना था जब बी वी जी वी कॉलेज ऑफ आर्ट्स एण्ड साइंस राजस्थान विश्वविद्यालय का ही एक एफिलिएटेड कॉलेज था . जयपुर मेरा घर था और यहां माता पिता के पास मेरा नियमित आना जाना था . मुझसे पहले से वहां कॉलेज में श्यामनाथ अर्थशास्त्र के प्राध्यापक थे जो बी एच यू के पढ़े थे और बनारस से ही आए थे .जल्दी ही वे एक अच्छे दोस्त बन गए . श्यामनाथ अपने एक भतीजे और एक भानजे को भी बनस्थली ले आए थे और उनकी आगे की पढ़ाई का इंतजाम देख रहे थे. भतीजा उदय तो निवाई जाकर लड़कों के स्कूल में पढ़ आता था पर भानजे राजेंदर की आगे की पढ़ाई का सतूना नहीं बैठ रहा था ,वो केवल मैट्रिक पास कर पढ़ाई छोड़ बैठा था और और आगे कुछ साल गंवा भी बैठा था . तब यहां तो प्रांत में तीन साल के डिग्री कोर्स की प्रणाली आ चुकी थी पर अन्यत्र अभी इंटर , बी ए के सोपान कायम थे , शिक्षा और सनद की थोड़ी ठेकेदारी तब यहां भी शुरु हो चुकी थी . बहरहाल राजेंदर को मध्यप्रदेश से इंटर करवाने का सोचा गया और इस बाबत जयपुर से जानकारी हासिल करके लाने का काम श्यामनाथ ने मुझे सौंपा . मैंने काम ओढ़ लिया .विवेकानंद कालेज में .
---------------------- अगले जयपुर के फेरे में मैं नाहरगढ़ की सड़क के नुक्कड़ पर चांदपोल बाजार में ऊपर की मंजिल में चलने वाले विवेकानंद कालेज में जीना चढ़कर चला गया पता करने . जब मैंने प्रायवेट इंटर की परीक्षा का मीजान पूछा तो संस्थान के संचालक दीनदयाल जी ने मुझे सीधे सीधे अपना क्लाइंट समझ लिया और पूरा पैकेज ठीक से समझाया . विषयों के चयन से लेकर परीक्षा में अतिरिक्त सहायता की सब बातें समझाईं और बहुत विश्वास के साथ बोले,” आप को इंटर करा देंगे “ इतने जिम्मेदारी से बोले कि जो उनकी मदद से इंटर करेगा वो आगे एक दिन बी ए की भी सोच लेगा . खैर ये जानकारी अच्छी रही और मैंने जिसके लिए हासिल की थी उसे पहुंचा ही दी पर ये बात दीन दयाल जी को अज्ञात ही रही पूछ कौन रहा है और क्यों , वो जो समझे सो समझे.अब क्यों याद आया ये प्रसंग ?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~ इन दिनों कुछ ‘ भक्त ‘ और कुछ इच्छाधारी ‘ देश भक्त ‘ मुझे राजनीति शास्त्र का ककहरा सिखाने और सुझाने लगते हैं और तो और मुझे ' देश भक्ति ' के मायने सिखाते हैं तो अनायास ही दीनदयाल जी की याद हो आती है और बड़ा अच्छा तो तब लगता है जब समझदार दोस्त मुझे कहते हैं : "सर , इन्हें माफ़ कर दीजिए . “और इन स्वनियुक्त देशभक्तों को ऐसे कहते हैं :
“ बच्चे घर जाओ !”
वाह रे दीनदयाल खूब ही याद आए !
समीक्षा Manju Pandya
~~~~~~~~ सुप्रभात . सुमन्त पंड्या @ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर . मंगलवार 16 फरवरी 2016 .
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