सेवा बाबत - वेतन कटोती : बनस्थली डायरी
----------- ------------ ----------------- बनस्थली में अपने पहले साल की बातें याद करते हुए एक छोटी सी बात याद हो आई जिसका सम्बंध समझ के फेर से है . इसे बताने के लिए संदर्भ का बखाण करना पड़ेगा .
जुलाई उन्नीस सौ सत्तर में मैं तो अपने विभाग में नया नियुक्त होने वाला अकेला ही था पर उधर केमिस्ट्री में कई एक नई नियुक्तियां हुई थीं जिनमें दो सहेलियाँ शकुंतला और सेवा भी थीं . सेवा डाक्टर राम विलास शर्मा की बेटी हुआ करती थी और बेटी की वजह से आचार्य प्रवर भी बनस्थली आए थे उस साल और उनका भाषण सुनने का सौभाग्य हम लोगों को मिला था , ख़ैर ये तो दीगर बात है .
उल्लेखनीय प्रसंग :
------------------ वेतन लेते समय जब जब दोनों सहेलियाँ हिसाब विभाग में अपना हिसाब देखने रोकड़िया के पास पहुँचीं तब की बात है . शकुंतला को पंद्रह रुपए की एक कटोती जब समझ नहीं आई तो उसने पूछा कि ये रुपए किस बात के कटे , रोकड़िया का सीधा जवाब था :
“ ये सेवा के हैं .”
और शकुंतला का इस कटोती पर सख़्त ऐतराज़ था :
“ सेवा के हैं तो सेवा के वेतन से काटते मेरे वेतन से क्यों काट लिए ? “
पर उधर ऐसी ही कटोती सेवा के वेतन खाते में भी थी इस लिए उसकी भी इसमें कोई बचत नहीं थी , लो हो गया न टंटा !
असल बात क्या थी ?
------------------- असल में तो “ सेवा” मद में सब रहवासियों से थोड़ा थोड़ा धन लेकर एक रक़म इकठ्ठा की जाती थी जिस से परिसर का रख रखाव का ख़र्च पट जाता था . हम जैसों की पांती में ये पंद्रह रुपए की देनदारी आती थी . वही कटोती सेवा - शकुंतला के वेतन से हुई थी और थोड़ी मेहनत से ये बात रोकड़िया ने समझाई , विशेषकर शकुंतला को .
आगे जाकर तो फिर ये कटोती मद ही समाप्त कर दिया गया था जिससे सेवा शर्मा जैसों का नाम कटोती मद से जुड़े ही नहीं .
ख़ैर ये तो तब की बात है
नोट : जिस कटोती का ऊपर उल्लेख आया है वो कुछ ऐसा ही है जैसे सामूहिक रहवास में “ मेंटेनेन्स “ अमाउंट लिया जाता है .
बनस्थली के पुराने दिनों को याद करते हुए …
प्रातःक़ालीन सभा स्थगित ….
सुप्रभात 🌻
नमस्कार 🙏
सुमन्त पंड़्या .
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
शुक्रवार १० फ़रवरी २०१७ .
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