गुस्सा नाक पे : भिवाड़ी डायरी
-------------- --------------- अभी दो दिन पहले की बात है मैं और जीवन संगिनी आशियाना आँगन के बाहर से सैर के बाद सब्जी के थैले लेकर परिसर में घुस रहे थे कि वहां एक रंबाद होते देखा उसी की बात आज बता रहा हूं फिर आप बीती भी सुनाऊंगा , बताऊंगा .
बाहर का सीन :
------------- मेन गेट पर सिक्योरिटी पोस्ट पर खड़ी लड़की अपनी कैफियत में बड़बड़ाए जा रही थी और उधर सिक्योरिटी चीफ के सामने एक अपेक्षाकृत युवा आशियाना रहवासी का गुस्सा पूरे उबाल पर था . फटे में पैर देने की मेरी आदत , जो हमेशा से है , उसके मुताबिक़ मैं तो मामले में उलझना ही चाहता था पर जीवन संगिनी के रोके से मैं वो न कर पाया , ये तो अब अफ़सोस ही रह गया , खैर .
गेट पर लड़की क्यों ?
------------------- ये शायद इसलिए है क्योंकि वहां उसे आती जाती घरों में काम करने वाली सेविकाओं की गतिविधि पर नज़र रखनी होती है . ये लड़की हम दोनों से रोज तो मुस्कुराकर मिलती है जब हम पैडिस्ट्रियन वे से अंदर आते हैं पर इस मौके पर वो भी गुस्से में बड़बड़ा रही है , ऐसा क्या हो गया आखिर ?
लेना एक न देना दो , हुआ सिर्फ इत्ता बताया कि उसने नौजवान से उसका फ्लैट या के टावर नंबर पूछ लिया बताया और वो ही उसे बुरा लग गया . बोलो वो यहां रहते हैं और उन्हीं से उनकी पहचान पूछी जा रही है , ये क्या बात हुई भला ? हो गया रंबाद .
अगर दरवाजे पर पूछताछ होती है तो इसमें आपकी ही हिफाजत है ये तो उल्टे अच्छी बात है , पर कोई न समझे उसका क्या ?
एक और भी बात है ये नई पीढी के लोग अपने काम से दिन भर तो बाहर रहते हैं और रात बिरात घर लौटते हैं तो द्वार प्रहरी अगर न पिछाणे तो इसमें अच्चम्भे की कोई बात नहीं .
अब हमारी सुणो :
-------------- जब कभी लंबे अरसे बाद बाहर से आते हैं तो बाहर की मोटर देख द्वारपाल टोकते हैं और आने का सबब पूछते हैं . देखिए संवाद :
" मिलने आए हैं ? "
" मां बाप हैं , केवल मिलने नहीं रहने आए हैं ।"
और इसका फायदा ये कि द्वारपाल बच्चों को फोन से सूचित करते हैं और बच्चे टॉवर के नीचे खड़े मिलते हैं हमारे पहुंचने पर . ये हर बार की बात है . वैसे ये अपडेट सेल फोन से भी आ जाती है पर कभी नैटवर्क न भी होवे तो अच्छा ही है ये सूचना कि ये हलचल द्वारपालों की बदौलत होती है . अब बोलो बुरा मानें के राजी होवें !
कल तो हद हो गई :
------------------- हम दोनों एक ऑटो रिक्शा से आशियाना में एन्ट्री ले रहे थे और नियमानुसार हमने दरवाजे पर अपना टॉवर नंबर बताया तो द्वारपाल ने जल्दी से फंटा तो उठाया ही बड़ा गहक कर ये और बोला :
" जानते हैं ..जानते हैं ."
अब लो कर लो बात ! और ये सुनकर जो चित्त प्रसन्न हुआ है उसका तो क्या कहना मानों हम और किसी के नहीं उस द्वारपाल के ही माँ बाप होवें ।
अब कल क्या लेणे को बाहर गए थे और ऑटो से क्यों आए ये एक अलग कहानी है वो आगे कभी आएगी बात .
अभी तो युवा पीढी के लिए इत्ती सी बात :
" काहे इत्ता गुस्सा नाक पे ?"😊✋✋
नमस्कार
सुप्रभात 🔔🔔
बसंत पंचमी की बधाई 🌕🌕
सुमन्त पंड्या .
@ भिवाड़ी .
बुधवार १ फरवरी २०१७ .
#स्मृतियोंकेचलचित्र #भिवाड़ीडायरी
No comments:
Post a Comment