जमादार साब :
उस दिन न जाने किन दबावों के चलते मैंने साथियों का आग्रह मान लिया था कि मैं बनस्थली विद्यापीठ कर्मचारी बचत एवं साख सहकारी समिति का अध्यक्ष बन गया . अगले दिन सुबह अनेक इष्ट मित्रों का रास्ते भर अभिवादन स्वीकार करना पड़ा जब मैं पक्के क्वाटर से कच्चे क्वाटर तक काम से गया . सारे रास्ते मित्रों से मिलते और बात करते गया तो बचपन में सुनी बिल्ल्या काजाजी की, बात याद हो आई .
पात्र परिचय : उनका नाम वैसे तो विजय कृष्ण था पर वे घर के नाम बिल्ल्या के रूप में जाने और पुकारे जाते थे . क्रॉनिक बैचलर बिल्ल्या काकाजी समय समय पर कई प्रकार के काम कर चुके थे , इस बार वे म्युनिसिपालिटी में जमादार नियुक्त हो गए थे . बिल्ल्या काकाजी कभी किसी भाई के तो कभी किसी भाई के यहां गेस्ट ऑफ़ ऑनर होते . उस दिन वो पहली पहली बार म्युनिसिपालिटी के दफ्तर जाकर लौटते हुए हमारे घर आये थे . वो यहां आकर बोले : "आ हाथ मैं दरद थई गयो ." अर्थात् उनके हाथ में दर्द हो गया था. दर्द हो जाने की उन्होंने बड़ी वाज़िब वजह भी बताई जो इस प्रकार थी : " दफ्तर थीं चाल्यो तो रस्ता मैं लोग मळता गया , जमादार साब - जमादार साब कहता गया , सलाम झेलतां झेलतां म्हारो हाथ दूखी आव्यो ."
अभिप्राय यह था कि जब वो दफ्तर से चले तो लोग जमादार साब - जमादार साब कहकर उनसे मिलते गए और उनके सलाम झेलते झेलते बिल्ल्या काकाजी का हाथ दुःख गया . बात समझ में आने वाली थी . उनके हाथ के दर्द का सम्बन्ध उस पद भार से था जो उनपर आन पड़ा था .
उस दिन सोसाइटी का चेयरमैन क्या बन गया मुझे भी इतने लोगों का सलाम झेलना पड़ा , मुझे लगा कि वाकई ऐसे हाथ में दर्द भी हो जाया करता है . इतनी सलाम मिले तो झेलना जरूरी और नतीजे में हाथ दर्द लाजिमी .
वो भी क्या दिन थे बनस्थली में दोस्तों ने कह दिया था आप तो आम सभा की अध्यक्षता कर लेना बाकी सब हम लोग देख लेंगे . कैसे कैसे प्रसंग आये पर निभ गई अपनी भी .
समीक्षा : Manju Pandya .
#सोसाइटी की बातें .
सुप्रभात
Good morning .
सुमन्त
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
23 जनवरी 2015 .
#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी #sumantpandya
ReplyDeleteआज इन पुरानी स्मृतियों के साथ आशियाना आँगन , भिवाड़ी से सुप्रभात 🔔🔔🔔🔔
नमस्कार 🎌
सोमवार २३ जनवरी २०१७ .. .