Friday, 6 January 2017

लिफ़्ट के इर्दगिर्द - भाग एक



    लिफ़्ट के इर्द गिर्द - भाग एक  : भिवाड़ी डायरी 
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लिफ़्ट के इर्द गिर्द : भिवाड़ी डायरी -- भाग एक .
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कल के एक दो तज़ुर्बे बताता हूं  .

बहुमंज़िला इमारत में  लिफ़्ट के महत्व को अतिरिक्त रेखांकित करने की आवश्यकता नहीं वो एक ज़रूरी सुविधा है . ज़हां दस दस मंज़िला इमारत होवें , और अब तो कोई कोई इमारत बारह मंज़िल की भी है , तो लिफ़्ट तो होवे ही होवे .आशियाना आँगन में यही है , कोई कोई लोग लिफ़्ट को बरतें और कोई न भी बरतें उस बात पर भी आवूँगा , वजहें अलग अलग . अभी एक आध बात उसी तज़ुर्बे की बताता हूं , बात पूरी होते तो समय लगेगा और ये बात देश काल और समाज से जुड़ेगी इसलिए बिंदुवार बात चलाता हूं :
१.
दिन में ज़रा देर को मैं टावर के नीचे से ऊपर आया और फिर वापस लिफ़्ट से ही नीचे जाने लगा तब की बात है .
मैं तीसरे फ़्लोर पर लिफ़्ट के सामने खड़ा हूं , मेरी पीठ की तरफ़ जीना है जो भी ऊपर से नीचे तक आने जाने का ज़रिया हो सकता है , मैं अलबत्ता उसे कम  ही बरतता हूं , लिफ़्ट का नीचे जाने का संकेत  बटन दबाता हूं , लिफ़्ट अभी चौथे फ़्लोर पर है . नीचे की ओर चल पड़ी लिफ़्ट और मेरे सामने पट खुल गए  एक फ़्लोर उतरने में देर ही क़ित्ती लगती है अगर च लिफ़्ट चल पड़े . मैं दाख़िल हो जाता हूं लिफ़्ट के कैबिनेट में पर रवाना होते होते मुझे लिफ़्ट स्थगित करनी पड़ती है , क्यों  ? यही वजह साफ़ करता हूं .
“ अंकल अंकल  “  या शायद  “ अंकल जी अंकल जी “ बोलती एक लड़की जीने से अपना सामान लिए  तेज़ी से उतर कर आती है और लिफ़्ट के कैबिन  में दाख़िल हो जाती है . ऊपर से आ रही है तो नीचे ही जाना चाहती है ये मानकर मैं ० ज़ीरो बटन दबा देता हूं . मैं जानता भी हूं इस लड़की को , ये नीलम की बहन है और प्रेस के कपड़े लेने आती है इस इमारत में .
अब मैं इस लड़की से एक सवाल पूछता हूं :

“ ये लिफ़्ट भी  चार नम्बर से आई और तू भी चार नम्बर से आ रही है फिर तू लिफ़्ट से ही क्यों नहीं आई  सीढ़ी से क्यों  आई  ? “

तब वो बोली :

“ मैं चार नम्बर से नहीं छह नम्बर से आ रही हूं  , और लिफ़्ट का कोई भरोसा नहीं बीच में बंद हो जाय , अटक जाय .”
उसे लिफ़्ट पर भरोसा नहीं था  मुझ पर भरोसा था इसलिए तो उसने अब दाख़िला लिया था .

अब हमारी सुणो हम तो ख़ुद अटक गए थे वो भी क़िस्सा आएगा अगली किसी कड़ी में .

अपना वही सोच : जब हम हैं तो क्या ग़म है .

पहले ज़माने में लिफ़्ट राखी देखी चीज़ हुआ करती थी तब लिफ़्ट के साथ लिफ़्टमैन हुआ करते थे आजकल तो ज़्यादातर ख़ुद को ही ख़ुद का लिफ़्टमैन बनना पड़ता है .

आशियाना से नमस्कार 🙏

सुमन्त पंड़्या 
@ भिवाड़ी .
बुधवार ४ जनवरी २०१७.
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