लड़की को पढ़ाया तो भी क्या ?
एक दिन बनस्थली में अचानक एक नौजवान मेरे घर आया जो दिल्ली पुलिस का अधिकारी था , उसने अपना परिचय तो बाद में दिया पहले पूरा झुककर मेरे पांव छुए . ऐसे नहीं जैसे घुटना छूकर आजकल लोग सम्मान जता देते हैं . कोई मिलने आए यह तो हम लोगों को बहुत अच्छा लगता पर पुलिस वाला घर आए तो अटपटा तो लगता ही है , एक दिन निवाई थाने का सिपाही एक मोटर साइकल दौड़ाता वॉरेंट लेकर चला आया था उसकी याद अभी ताजा थी , जितनी देर इस सुन्दर नवयुवक का परिचय न मिला मुझे तो वही प्रसंग याद आता रहा और कौतुहल बना रहा . परिचय मिलने के बाद भी प्रश्न बना रहा कि पुलिस वाला क्यों आया और ऐसा व्यवहार भला क्यों कर रहा है जब कि कोई पूर्व परिचय भी नहीं है . सारा माजरा तब समझ में आया जब थोड़ी देर बाद जाली का किंवाड़ हटाकर गीता अंदर दाखिल हुई , गीता कुछ ही समय पहले हमारे पास पढकर गई थी , उसने एम फिल तक की पढ़ाई पूरी की थी और इस नौजवान से उसका विवाह हुआ था . अब ये दोनों 44 रवीन्द्र निवास में मिलने आए थे और हमारे सामने बैठे थे . जीवन संगिनी ऐसा जोड़ा पाकर खुश थी और उनकी आवभगत कर रही थी .
हमारे साथी एस बी माथुर साब प्रायः लड़की से पूछते ,' कहां है तुम्हारा डैम
फूल ?' जब उसका मंगेतर आया होता और दूसरी सांस में मुझसे कहते , ' यार क्या करें आगे चलकर उसे ' कंवर साब ' कहना पड़ता है . मुझे अब लगने लगा था कि लड़की के कारण ही तो यह लड़का भी तो हम से जुड़ गया है . ये सम्बोधन की बात तो केवल शिष्टाचार और आत्मीयता है , दामाद भी तो अपना ही बच्चा है , उस पर भी वैसा ही भरोसा किया जा सकता है .
गीता ने जिस तरह अपने पति को आगे आगे मेरे घर भेजा , मुझे लगा लड़की को पढ़ाया तो भी क्या बात लडके का भी तो दिल जीत लिया इस माध्यम से .
जाते जाते यह युवक बोला :" सर , कभी दिल्ली आओ तो सौ नंबर पर फोन करके रामनिवास को बुला लेना , आप जहां भी होंगे मैं आकर मिलूँगा .'
समर्थन :1 Manju Pandya .
सुप्रभात
Good morning .
सुमन्त
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
30 जनवरी 2015 .
#बनस्थलीडायरी
#स्मृतियोंकेचलचित्र
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