यादगार गुड़ वाला प्रसंग .
सर्दी में गुड़ खाना सभी को बढ़िया लगता हैं . मैं भी सर्दी आने पर सभी को थोड़ा बहुत गुड़ नियमित खाने की सलाह देता आया हूं . चीनी के मुकाबले गुड़ कई तरह से बेहतर उत्पाद है इसमे कोई संदेह नहीं है . मेरा गुड़ खाना तो अब डाइबिटीज के चलते लगभग बंद ही हो गया पर इससे गुड़ का महत्त्व कोई कम नहीं हो जाता . गुड़ से जुडी हुई कुछ यादें हैं जो आज भी मेरी स्मृतियों में चली आती हैं .
मैं और मेरा छोटा भाई विनोद जयपुर में चांदपोल बाजार में एक बड़ी दूकान से नियमित रूप से गुड़ खरीदने जाया करते थे और उसके माल से हमें किसी प्रकार की कोई शिकायत भी नहीं थी . एक दिन उस दूकान के खम्बे पर लगे बोर्ड पर मेरा ध्यान गया जिस पर लिखा था :
" यहां पशु आहार का गुड़ मिलता है . "
इसका अर्थ यह हुआ कि अब तक हम पशु आहार का गुड़ खाते आए हैं ? हमने दूकानदार से भी स्पष्टीकाण मांगा . दूकानदार ने हमें भरोसा दिलाया कि बोर्ड का केवल वैधानिक निमित्त है ताकि कोई फ़ूड इन्स्पेक्टर उन्हें गुड़ का नमूना लेकर परेशान न करे . वैसे उसके यहां बेचा जाने वाला गुड़ इंसानी मानकों पर खरा उतरने वाला ही है . हमारा उस दूकान से गुड़ खरीदना आगे भी जारी रहा .
आगे मैं गुड़ से जुड़ा एक और प्रसंग याद करता हूँ जो बार बार एक वाक्य के रूप में मेरी जबान पर आ ही जाता है :" छोरा थारै शेर त्र्यंण पाव गोळ बांध द्यू छूं ." इस रस भरे वाक्य से मामी की याद जुड़ी हुई है जिसका अर्थ है :" छोरे, तुझे एक सेर या तीन पाव गुड़ बांध देती हूं ."
मामाजी बीमार थे और जून के महीने में अम्मा ने मुझे मामाजी को देखकर आने और समाचार लाने को ननिहाल भेजा था . मैं जब गांव से आने लगा तो मामी ने बहुत लाड़ जताते हुए मेरे बैग में गुड़ रख दिया और तभी यह वाक्य भी कहा था :" छोरा थारै शेर त्र्यंण पाव गोळ बांध द्यू छूं . "
मेरे पास एक ही तो कंधे लटकने वाला बैग था जिसमे मेरे कपड़ों के साथ अखबार के कागज़ में लिपटा हुआ वह गुड़ रखा हुआ था और जून महीने की गर्मी में मेरे साथ साथ मेरा बैग और उसमे रखा वह गुड़ भी तप रहा था . मैं जिस गति से पसीने से लथपथ हो रहा था उसी गति से बैग में गुड़ भी पिघल रहा था . मुझे उस समय दीनानाथ जी की गली के वो गुड़ के गोदाम याद आ रहे थे जिन में गुड़ पिघलकर बाहर आने लगता था और गायें उसके दरवाजे के बाहर गुड़ चाटा करती थीं . ये गुड़ , जैसा मुझे बताया गया चिलम की तम्बाकू में मिलाया जाता था . मामी का प्यार मुझे उस पिघलते गुड़ से जोड़े हुए था .
तीन घंटे से कुछ अधिक की टूटती बसों में यात्रा पूरी कर मैं जब जयपुर पहुंचा तो ऊपर की मंजिल में रसोई के बाहर रखी डायनिंग टेबल पर अपना बैग रख कर मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हुआ और बोला " : आ ल्यो गोळ , मामी यें मोकलायो छै ." अर्थात ये सम्हालो गुड़ , मामी ने भेजा है .
आज जब मामाजी और मामी नहीं रहे , अम्मा भी नहीं रही ये सब यादें है , मैं अक्सर गुड़ देखकर बोल पड़ता हूं :
" छोरा, थारै शेर त्र्यंण पाव गोळ बांध द्यू छूं . "
मकर संक्रांति की बधाई .
सुप्रभात .
Good morning .
साथ में : Manju Pandya .
सुमन्त
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
१५ जनवरी २०१७ .
No comments:
Post a Comment