Thursday, 19 January 2017

अटकने की आदत 💐

     अटकने  की आदत :

1.

 ये तो सुना हुआ वाकया है -

देहात के एक स्कूल में माट साब ने एक भोले से बच्चे से पूछा :

" च्यों रे तूने काजल नांय लगवायो  ? "

( क्यों रे तू ने काजल नहीं लगवाया ? )

दूसरा बच्चा बताने लगा कि उसकी माँ पीहर गई हुई है .

" मास्टर जी जा की माई  पीर गई है ."

तुरत मास्टर जी बोले :

"अरे तो बावरे , चाची पै ही लगवाय आतो  !"

अर्थात पगले चाची से ही काजल लगवा आता .

मानो स्कूल आने के लिए काजल लगवाकर आना जरूरी हो .

मास्टर जी को अटकने की आदत जो थी .

2.

मुझे लगता है उन्ही मास्टर जी की रूह कभी कभी मुझ पर भी काबिज होती है .

एक बार की बात मैं  जयपुर से बनस्थली  के लिए सुबह की  बस में यात्रा कर रहा था . सहयात्री युवक सुन्दर सूट पहने था और उसके पास सामान के नाम पर कुल एक बैग था जैसा मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के पास होता है .

थोड़ा समय बीता मैं अनायास उससे पूछ बैठा :

" एम आर हो ? "

वो बोला और स्वीकृति में सर भी हिलाया :

" जी , सर ."

मैं उन्ही मास्टर जी की तरह बोला:

" तो फिर... टाई क्यों नहीं लगाईं ?  एम आर तो टाई जरूर लगाते हैं ."

वो युवक  बताने लगा कि वो किसी समारोह में जा रहा था और इस लिए ड्यूटी वाला एटीकेट उस समय लाजिमी  नहीं था .

वो मुझसे पूछने लगा :

"आप सर बनस्थली में काम करते हैं ?"

और यों  बातों का जो सिलसिला शुरु हुआ वो रास्ते भर चलता रहा .

वही अपनी अटकने की आदत .

उपसंहार :

जब जब  यात्रा में जीवन संगिनी साथ होती हैं  तो मुझे इस प्रकार गैर जरूरी  संवादों से बचाती हैं . ये एक मिसाल तो उस यात्रा की है जो मैंने अकेले की थी .

ऐसे एक आध संसमरण और लेकिन फिर कभी .....

इति .

जीवन संगिनी : Manju Pandya .

सुप्रभात good morning .

सुमन्त

आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

8 अप्रेल 2015 .

**************

आज इस पोस्ट को उपयुक्त पाकर ब्लॉग पर दर्ज किए देता हूं , अब तक डॉक्स में पड़ी थी , जब इसे दो बरस पहले फेसबुक पर डाला था तो मेरी आदत को आपने सराहा था , आज फिर देखिए एक बार .  

सुमन्त पंड्या .

@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी

 २०जनवरी २०१७ .

#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी

No comments:

Post a Comment