अटकने की आदत :
1.
ये तो सुना हुआ वाकया है -
देहात के एक स्कूल में माट साब ने एक भोले से बच्चे से पूछा :
" च्यों रे तूने काजल नांय लगवायो ? "
( क्यों रे तू ने काजल नहीं लगवाया ? )
दूसरा बच्चा बताने लगा कि उसकी माँ पीहर गई हुई है .
" मास्टर जी जा की माई पीर गई है ."
तुरत मास्टर जी बोले :
"अरे तो बावरे , चाची पै ही लगवाय आतो !"
अर्थात पगले चाची से ही काजल लगवा आता .
मानो स्कूल आने के लिए काजल लगवाकर आना जरूरी हो .
मास्टर जी को अटकने की आदत जो थी .
2.
मुझे लगता है उन्ही मास्टर जी की रूह कभी कभी मुझ पर भी काबिज होती है .
एक बार की बात मैं जयपुर से बनस्थली के लिए सुबह की बस में यात्रा कर रहा था . सहयात्री युवक सुन्दर सूट पहने था और उसके पास सामान के नाम पर कुल एक बैग था जैसा मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के पास होता है .
थोड़ा समय बीता मैं अनायास उससे पूछ बैठा :
" एम आर हो ? "
वो बोला और स्वीकृति में सर भी हिलाया :
" जी , सर ."
मैं उन्ही मास्टर जी की तरह बोला:
" तो फिर... टाई क्यों नहीं लगाईं ? एम आर तो टाई जरूर लगाते हैं ."
वो युवक बताने लगा कि वो किसी समारोह में जा रहा था और इस लिए ड्यूटी वाला एटीकेट उस समय लाजिमी नहीं था .
वो मुझसे पूछने लगा :
"आप सर बनस्थली में काम करते हैं ?"
और यों बातों का जो सिलसिला शुरु हुआ वो रास्ते भर चलता रहा .
वही अपनी अटकने की आदत .
उपसंहार :
जब जब यात्रा में जीवन संगिनी साथ होती हैं तो मुझे इस प्रकार गैर जरूरी संवादों से बचाती हैं . ये एक मिसाल तो उस यात्रा की है जो मैंने अकेले की थी .
ऐसे एक आध संसमरण और लेकिन फिर कभी .....
इति .
जीवन संगिनी : Manju Pandya .
सुप्रभात good morning .
सुमन्त
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
8 अप्रेल 2015 .
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आज इस पोस्ट को उपयुक्त पाकर ब्लॉग पर दर्ज किए देता हूं , अब तक डॉक्स में पड़ी थी , जब इसे दो बरस पहले फेसबुक पर डाला था तो मेरी आदत को आपने सराहा था , आज फिर देखिए एक बार .
सुमन्त पंड्या .
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी
२०जनवरी २०१७ .
#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी
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