Friday, 27 January 2017

बनस्थली में डिग्री क्लास : भाग दो

   बनस्थली में डिग्री क्लास : भाग दो

कल की पोस्ट  में मैंने  उस  घड़ी का जिक्र किया है  जब मैं  बनस्थली में पहली बार डिग्री क्लास लेने गया था .  आज सोचा  उसी बात को आगे बढ़ाऊं . एक तो यह कि  वहां  ये अनोखी बात थी कि  सप्ताह की गणना  अलग प्रकार से होती थी , शायद आज भी होती होगी  . सारी दुनिया  बाइबिल के सप्ताह विधान से चलती है  , बाइबिल के  इस बाध्यकारी विधान से बनस्थली  मुक्त रहा . कई बार ऐसा भी हुआ  कि संरक्षक  छुट्टी के दिन दाखिला करवाने चले आये और  नतीजे में लड़की को हमारे भरोसे छोड़ गए  . मैंने और जीवन संगिनी ने  अगले दिन दाखिला करवाया . उस समय  कई एक लड़कियों के लिए  छात्रावास से पहले 44  रवीन्द्र निवास एक आवश्यक पड़ाव बना .
जिस लड़की ने  मुझ से क्लास  में आने की  इजाजत मांगी थी  उसके बाबत भी यहां कहूँगा . लड़की साड़ी पहने थी  इस पर टिपण्णी यह है कि  कम से कम उस समय  यह ड्रैस कोड प्रचलित था  कि पढ़ाने वाली लड़की साड़ी अवश्य पहनेगी . पढने वाली लड़की सप्ताह में दो दिन  यूनोफॉर्म की  पोशाक पहनेगी और  बाकी दिन  किसी  रंग के और कपड़े . जो उस दिन पढ़ाने वाली  लड़की इतिहास की प्राध्यापिका  बनकर आई वो भी  बनस्थली की ही लड़की थी . वो लड़की एक और कारण से  सेलेब्रिटी थी  , कुछ ही दिनों पहले उसे प्राइवेट पायलेट लाइसेंस मिला था और फ्लाईंग की ट्रेनिंग उसने बनस्थली फ़्लाइंग  क्लब से ही पाई थी . इस प्रकार वो  भारत में पी पी एल  पाने वाली पहली महिला उड़ाका बन गई थी .
आकाश में उड़ने  वाली यशवंत कौर अखबारों  की खबर बनी  और  केवल उसी सत्र में वहां रही  और आगे मैं कुछ नहीं कहूंगा अन्यथा  कहा जाएगा कि रवीश कुमार  से इस बार मिलने के बाद मैं भी लप्रेक लिखने लगा हूं .

कल की पोस्ट में  टिप्पणी  में बुधवार की प्रार्थना का भी  उल्लेख आया था . कहते हैं कि पहले प्रतिदिन  सायंकालीन प्रार्थना  हुआ  करती थी , मेरे सामने ये बुधवारीय प्रार्थना बन गई थी  . हम लोगों  में यह भी कहावत प्रचलित थी कि  सोलह बुधवार बिला नागा कोई  इस सामूहिक उपक्रम में जाए तो उसका  शुभ फल अवश्य मिलता है . नई पीढ़ी प्रार्थना के लिए समय न देने लगी तब आगे चलकर इस प्रार्थना को स्थगित भी किया गया  . आज की पीढ़ी को तो अपने  लिए ही समय निकालना  मुश्किल होता है  प्रार्थना के लिए कहां समय बचता है !
पता नहीं अब क्या होता होगा .
मैंने लिखा था कि आई बात समझ में  , वो एक बात यह थी  मेरा साक्षात्कार इतिहास  के  प्रोफ़ेसर जी सी पांडे ने ही शुरू किया था और इतिहास -राजनीतिशास्त्र  की संयुक्त चयन समिति  बैठी थी अतः इतिहास के तत्कालीन विभागाध्यक्ष मोहन लाल विद्यार्थी भी वहां  थे  मैं और यशवंत कौर एक ही चयन समिति के उत्पाद थे .  उस सत्र में  शाम का समय विद्यार्थी जी  के साथ अच्छा  बीता वो भी वहां  एक सत्र ही रहे .
ये यादों का सिलसला तो अंत हीन है , आगे बात बढ़ाऊंगा .
आज के लिए इति .
सहयोग : Manju Pandya

सुप्रभात
Good morning .

सुमन्त
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
28 जनवरी 2015 .
#Banasthali .

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